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Incest बेटा है या.....घोड़(ALL IN ONE)

फीर मचायेगें है की नही?

  • हां

    Votes: 9 81.8%
  • जरुर मचायेगें

    Votes: 8 72.7%
  • स्टोरी कैसी लगी

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    11
  • Poll closed .

Shikari_golu

Well-Known Member
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Hello frnd....aapki story padhi....base saandaar hai aur ab tak sahi chal raha hai....
Bas updates thoda bade doge to jyada maza aayga...
Aur haa...yaha kafi log bol rahe hai ki kajri ko sirf uske bete se faswana....par is tarah ki situation humne almost har kahani me dekha hai....
Main bas yahi kahuga ki kajri ko thoda badmas type banao....matlab sirf bete tak hi na rahe.....

Baki aap hi soch kar decide kare...exitement tab jyada badta hai jab aourat gair mard ke sath ho wo bhi apno ko bina khabar lage....

At last....aapki story aapke ideas...bas updates dete rahe aur hum enjoye karte rahege....
Thanks.......
 
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Ritesh111

New Member
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अपडेट---4






रितेश अजय के घर पहुचता है......जंहा अजय पहले से ही चुनाव प्रचार की तैयारी में था।

अजय-- अरे भाई इतनी देरी से आ रहा है.....।

रितेश-- अरे.....हाँ यार खल थोड़ा देर से सोया था तो नीद नही खुली...॥

अजय-- चल कोइ बात नही......वैसे आज तुझे चुनाव प्रचार करने में बहुत मज़ा आयेगा!

रितेश-- वो क्यूं बे?
अजय-- अरे भाई क्यूकीं आज तेरी जान आई है....मेरी बहन के साथ चुनाव प्रचार करने में॥

ये सुनकर एक समय के लीये रितेश के चेहरे पर चमक आ जाती है....जो साफ साफ अजय देख सकता था....लेकीन कुछ पल बाद ही उसका चेहरा उतर जाता है.....।

अजय-- क्या हुआ बे....तेरा चेहरा उतर क्यूं गया? तूझे खुशी नही हुइ क्या?

रितेश-- अरे काहे की खुशी बे......वो मुझे पसंद ही नही करती......मेरी शिकायत अपने मां से करती है की मै उसे छेड़ता हूं।

अजय-- चल ठीक है.....यारा छोड़ जाने दे। ऐसी लड़कीयां प्यार को नही समझती.....सुना है.....आंचल के पीछे ठाकुर का छोटा बेटा लगा है.....स्कूल में दोनो की बहुत पटती है....।

रितेश-- तू सही कह रहा है.....मेरे जीवन का कालचक्र ये ठाकुर का ही परीवार है......एक तो ये ठाकुर मेरी मां के पीछे लगा है.....और ये दुसरा उसका बेटा मेरी जान के पीछे......कुछ समझ ही नही आता की क्या करुं?

अजय -- यार सही कह रहा है तू.....जब कोई अपनी मां को गदीं नीगाह से देखता है ना तो खून खौल जाता है.....।

रितेश-- हां सही कहा तूने.....और हद तो तब हो जाती है जब वही मां हंस हंस कर उन लोगो से बात करने लगती है.....।

अजय-- एक बात बोलू भाई?
रितेश-- हां बोल ना।
अजय-- ये जो मां है ना......भाई ये भी औरत ही है.....भगवान ने इनको भी भोसड़ा दीया है.....तो लंड तो चाहीए ही ना।

रितेश-- तो इसका मतलब कीसी का भी लंड ले लेंगी ये लोग।

अजय-- सही कहा यारा......कभी कभी तो मन करता है की मै ही चोद दू और जीतना लंड चाहीए उतना अंदर डाल कर इनका भोसड़ा फाड़ दूं।

ये सुनकर रितेश हंसने लगता है और बोला--

रितेश-- अरे तो तू अपनी मां चोदेगा?
अजय-- हां तो क्या करुं ? दुसरे से चुदवायेगीं तो इससे अच्छा हमसे ही चुदवाले ना....। साला घर की बात घर में.
....और मज़ा अलग से...।

रितेश-- अरे भोसड़ी के 5 इचं का लंड लेकर तू अपनी मां के भोसड़े में क्या गदर मचायेगा?

अजय-- तो भोसड़ी के तू चोद ना.....तेरे पास तो घोड़े का है ना......कसम से तेरे जैसा लंड मेरे पास होता ना तो अपनी मां कब का चोद देता।

रितेश.......ये सुनकर सोच में पड़ गया की यार अजय के बात में तो दम है......साला ठाकुर पिछे पड़ा है......कही साले ने कुछ इधर उधर की पट्टी पढ़ा कर मां को फंसा लीया तो गड़बड़ हो जायेगा.....कहीं मुह दीखाने लायक नही रहूंगा......लेकीन क्या मां के साथ ये सब करना......मां क्या सोचेगी......वो तो जान से मार देगी मुझे।

रितेश यही सब सोच रहा था की तभी अजय ने उसे झींझोड़ा....।

अजय-- क्या सोचने लग गया बे?
रितेश-- क......कुछ तो नही। चल......प्रचार करते है।

और रितेश जाने ही वाला था की अजय ने कहा--

अजय-- भाई तू जो सोच रहा था ना एक बार कर के देख.....कसम से उससे ज्यादा मज़ा जींदगी में और कुछ नही।

ये सुनकर रितेश थोड़ा मुस्कुराया और बोला@

रितेश-- भाई अगर कही गड़बड़ हो गया तो उससे बड़ा तकलीफ भी जींदगी में कही नही...।

ये सुनकर अजय भी हंस पड़ा......दोनो हंस ही रहे थे की तभी अजय के घर के अँदर से उसकी बहन निलम के साथ आंचल बाहर नीकली.....

दोनो को हंसता देख आंचल ने नीलम से कहा-

आंचल-- नीलम तूझे एक बात बता दूं की तू अपने भाई को इस लोफड़ से दूर रखा कर नही तो वो भी बर्बाद हो जायेगा।

नीलम-- मुझे तू एक बात बता ? आखीर तू रितेश से इतना जलती क्यूं है?

आंचल-- तो इसमें पसंद करने जैसा है ही क्या? दीन भर आवारा गरदी करता है.....बेचारी काकी इधर उधर से हाथं पैर मार के पैसा लाती है तो इसको खीलाती है....ईसको जब अपनी मां की नही पड़ी है तो मेरा क्या खयाल रखेगा?

आंचल की बात सुनकर नीलम हंसने लगी....नीलम को हंसता देख आंचल न कहा-

आंचल-- तू हंस क्यू रही है?
निलम-- हंस इसलीये रही हूँ की तेरे ख्याल रखने वाली तो मैने की नही.....तू ही बोल रही है की....वो मेरा खयाल क्या रखेगा? इसका मतलब वो तूझे पंसद है सीर्फ वो कुछ काम धाम नही करता इसलीये तू उसपे गुस्सा होती है.....!

निलम की बात सुनकर आंचल शरम से लाल हो जाती है....जो नीलम अच्छी तरह से देख सकती थी।

निलम-- ओ....हो शरमा क्यूं रही हो.....प्यार करती है की नही....अगर नही करती तो बोल दे मैं अपना जुगाड़ लगा लूं........।

आंचल-- मुंह तोड़ दूंगी तेरे....जो उसकी तरफ देखा भी तो।

निलम-- ओ हो....बड़ा प्यार आ रहा है....।
हां तो आ रहा है तो तूझे क्या चल चुनाव प्रचार करने.....।

और फीर सब लोग.....चुनाव प्रचार मेँ चल देते है॥


दोपहर का समय था......कजरी घर पर थी....पेड़ के छांव में अपनी बकरीया बांध कर उसे चारा डाल रही थी.....की तभी उसके घर पर एक गाड़ी आकर रुकती है....कजरी गाड़ी को देख कर बकरीयो को चारा डाल छोड़ खड़ी हो जाती है....।

गाड़ी में से ठाकुर बाहर नीकलता है.....जीसे देख कजरी हील जाती है.....उसने सोचा की ठाकुर क्यूं आया है उसके घर?

ठाकुर मुनीम के साथ सीधा कजरी के पास आता है.....।

ठाकुर-- अरे......कजरी कैसी हो तूम?
कजरी-- ठ.....ठीक हूं ठाकुर साहब.....बोलीये कैसे आना हुआ?

ठाकुर-- अगर कुछ काम होगा तो ही आ सकता हूं क्या?

कजरी-- न....नही ठाकुर साहब मेरे कहने का मतलब ये नही था....।

ठाकुर-- अच्छा ठीक है.....मैं तो ये पुछने आया था.....की आज तुम चुनाव प्रचार में क्यूं नही आयी?

कजरी-- वो.....वो ठाकुर साहब.....घर पर इतना काम है की.....मैं आ नही पाती...।

ठाकुर-- अरे......घर का काम तो रोज ही रहता है.....लेकीन मेरा चुनाव प्रचार तो कुछ ही दीनो का है.....मुझे तो लगता है की तुम जानबुछ कर नही आती....।

कजरी-- नही.....ठाकुर साहब ऐसी कोई बात नही है......दरशल बात ये है की....मेरे बेटे को अच्छा नही लगता की मैं गांव में घुमु। तो इसीलीये मैं नही आती....।

ठाकुर-- ये तो बिल्कुल सही बात है कजरी....की कीसी का भी बेटा ऐसा नही चाहता की उसकी मां पुरे गांव में घुमे.....खास कर वो बेटा जीसका बाप ना हो...। कोई बात नही कजरी अगर तुम्हारे बेटे को अच्छा नही लगता तो मुझे तुम्हारे उपर जोर जबरदस्ती करके कुछ मतलब नही है.....ठीक है तो फीर मैं चलता हूं.....।

ठाकुर जाने के लीये जैसे ही मुड़ा.....की अचानक रुक कर बोला-

ठाकुर-- अच्छा.....तुम्हारा वोट तो मीलेगा ना.....की वोट भी बेटे के मन से डालोगी?

कजरी-- वो...वो.....मै.....तो।
ठाकुर-- कोई बात नही जंहा मन हो वहीं डालना.....लेकीन फीर भी एक बार हाथ जोड़ कर विनती करुगां की वोट खाट के चुनाव चिन्ह पर डालना.....और बोलकर ठाकुर मुनीम के साथ गाड़ी में बैठकर चल देता है......।

कजरी वही खड़ी ठाकुर को देखती रहती है......उसे समझ में नही आ रहा था.....क्यूकीं जीस तरीके से ठाकुर ने आज बात की थी....कही ना कही कजरी को ठाकुर के बारे में सोचने पर मजबुर कर दीया था.....।

कजरी(मन में)-- आज ठाकुर साहब कीतने अच्छे से बात कर रहे थे......क्या सच में ठाकुर साहब ऐसे ही है.....या फीर कुछ और.....।


और इधर ठाकुर के साथ गाड़ी में मुनीम बैठा था.....और गाड़ी हवेली की तरफ बढ़ रही थी....।

ठाकुर-- मुनीम.....क्या लगता है तूझे.....तेरा तरकीब काम करेगा?

मुनीम-- 100 प्रतिशत ठाकुर साहब.....बस मैं जैसा कह रहा हूं बस आप वैसा करते जाइये.......याद है आपको जब कजरी के...।

ठाकुर-- खामोश मुनीम! वो बात अगर कभी दुबारा तेरी जुबां पर आया तो.....हलक से जुबान खींच लूगा....मुझे तेरी तरकीब पर भरोसा है....।

मुनीम-- गलती माफ हो ठाकुर साहब......लेकीन कजरी के जवानी का रस आपको लूटना है.....तो उसके बेटे का कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा...।

ठाकुर-- अब तू ही कोई तरकीब लगा मुनीम की उसका क्या करना है....।

और फीर गाड़ी तेज रफ्तार के साथ हवेली में दाखील हो जाती है........


दीन भर चुनाव प्रचार करके आंचल अपने घर आ चुकी थी.....वो आज थोड़ा परेशान लग रही थी.....वो सीधा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी.....यहां तक की बाहर उसकी मां संगीता बैठी थी....उसे भी बीना कुछ बोले वो अंदर चली गयी..।

ये देख संगीता भी हैरान रह गयी की इसको क्या हो गया बीना कुछ बोले ही अंदर चली गयी...।
तो संगीता भी उठ कर आंचल के कमरे में चली आती है.....।

आंचल खाट पर लेटी .....अपना चेहरा तकीये में घुसा कर रो रही थी....।

संगीता-- आंचल.....क्या हुआ बेटी क्यूं रो रही है...।
आंचल वैसे ही पड़ी रो रही थी......और बोली-

आंचल-- कुछ नही मां तू जा...।

संगीता आंचल के सिरहाने बैठ जाती है और प्यार से उसकै सर पर हाथ फीराती हुई बोली-

संगीता-- रितेश ने फीर छेड़ां क्या तूझे.....तू बोल मैं उसकी खबर लेती हूं.....छेंड़ा क्या उसने तूझ?

आंचल रोते हुए खाट पर उठकर बैठते हुए बोली-

आंचल-- नही छेंड़ा मां ......इसी लीये तो रो रही हूं।

'आंचल की बात सुनकर संगीता दंग रही है.....उसने सोचा की ये लड़की क्या बोल रही हो।

संगीता-- तू क्या बोल रही है....मुझे कुछ समझ नही आ रहा है....।

आंचल(अपने आंशु पोछते)-- अ...आज मै.....नीलम के यहां चुनाव प्रचार में गयी थी.....पुरा दीन मेरे आजू बाजू ही था.....लेकीन एक बार भी मेरी तरफ नही देखा.....उसने....वो क्या सोचता है मां......की मै उसको नीचा दीखाती हूं तो क्या मैं उससे प्यार नही करती....।

आंचल की बातो ने तो संगीता के बदन में चीटीया दौड़ा दी.....वो सोचने लगी की ये कैसी लड़की है.....जीस लड़के की बुराईया करते थकती नही थी......आज उसी के लीये ये रो रही है वो भी इसलीये की उसने आज एक बार भी इसे देखा नही..।

संगीता-- तो तू रितेश को पंसद करती है?
आंचल-- पसंद.......मेरी तो दीन उसके खयालो से और रात उसके हसीं सपनो से कटती है.....मै उस पर चिल्लाती थी की ताकी वो अपनी जीम्मेदारीयो को समझे और घर परीवार के बारे में सोचे.....।

कसम से संगीता के लीये ये सब एक सपना सा लग रहा था.....क्यूकीं उसने आज तक आंचल के जुबान पर रितेश के लिये कड़वे शब्द छोड़ कुछ नही सुनी थी...।

वह यह जानती थी की रितेश ने आंचल को क्यूं नही देखा एक बार भी! क्यूकीं उस दीन उसने रितेश को इतना सुना जो दीया था.....।

संगीता ने ठहरे हुए लफ्जो में कहा-- कुछ नही मेरी बीटीया रानी अगर तुझे रितेश पंसद है तो तेरी शादी मैं उससे करा कर ही रहूंगी।

ये सुनते ही आंचल खुश हो जाती है....और अपनी माँ के सीने से लग जाती है.....॥

कुछ समय बाद संगीता.......कजरी के घर की तरफ नीकल देती है......कजरी घर पर बैठी थी.....और रितेश का इतंजार कर रही थी.....की तभी वहां संगीता पहुचं जाती है....।

संगीता(पहुचंते ही)-- क्या हो रहा है....कजरी मुझे तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है।

कजरी-- मुझे भी कुछ समझ में नही आ रहा है....।

ये सुन संगीता बोली-- तेरे साथ क्या हुआ जो तुझे समझ में नही आ रहा है.....।

फीर कजरी ने आज की बात संगीता से बताई और संगीता ने आंचल की बात कजरी को बताई....॥

दोनो हैरान परेशान थे.....की तभी संगीता बोली-

संगीता-- देख कजरी कभी कभी सच्चाई वो नही जो हमे दीखता है.... मुझे तो लगता है.....ठाकुर साहब भी भले इंसान है......वो तो गांव वालो ने उनके बारे मे खीचड़ी कर रखी है...। हां ठाकुर की नज़र तेरे उपर है.....लेकीन वैसे देखा जाये तो खुबसुरत औरतो पर नज़र तो हर कीसी पर होती है.....तो इसका मतलब ये तो नही की वो इंसान ही बुरा है.....।

संगीता की बात सुनकर कजरी सोच मे पड़ गयी फीर बोली-

कजरी-- मुझे तो कुछ समझ में नही आ रहा है की खौन बुरा है और कौन भला!

संगीता-- तो ठीक है.....ये सारी चीजें हालात पर छोड़ दे....क्यूकीं हालात सबकी सच्चाई बाहर लाती है....।


इधर रितेश अजय के घर से सिधा अपने घर चला आ रहा था........और आज उसके भी मन में बहुत सारे खयाल उठ रहे थे......एक तो आज सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये थी की सुबह ही अजय ने उसके लंड मे जो आग लगाई थी की अपनी ही मां पटा के चोदो.....घर की बात घर मे और मज़े भी।
दुसरी ये की आज रात रज्जो पता नही उसके साथ क्या गुल खीलाने वाली है......और तीसरी ये की ठाकुर भी उसके मां के पिछे पड़ा है......और उसका बेटा उसके प्यार के।

इतने सारे सवालों से झुझता......रितेश के कदम उसके घर की तरफ बढ़ रहे थे......


सबसे पहले तो sorrrrrrry dosto ki itne dino se update nahi de paya.....thoda busy tha!

Dusra ye ki update dene ke chakkar me update chhota hi rah gaya.....aur tisra ye ki ritesh ke sare sawal ke jawab isi kahani me milenge.......to padhte rahiye......update kabhi kabhi late ho sakte hai....aur kabhi kabhi chhota hamesha nahi!

Thanks frnds.
 

dirty-u.k

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Superb update yaar
Der aaye durust aaye
Dekhte hai aage kya hota hai
Thakur kajri ko patata hai ya
Beta apni maa ko thakur se bachaane me
Kamyab hota hai
Or, beta maa ke dil me apne liye pyar jaga pata hai ya nhi



Waiting for your next update yaar
 
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