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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

parkas

Prime
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अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन

Update - 8

रावण सुकन्या के कहने पर सो जाता हैं लेकिन रावण को नींद नही आ रहा था। रावण कभी इस करवट तो कभी उस करवट बदलता रहता। उसका मन विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहा था। उसे आगे किया करना चाहिए। जिससे उसके रचे साजिश का पर्दा फाश होने से बचा रह सके। रावण यह भी सोच रहा था। उससे कहा चूक हों गया। जब उसे कोई रस्ता नज़र नहीं आता तो वकील दलाल को इस विषय में बताना सही समझा। इसी सोचा विचारी में रात्रि के अंतिम पहर तक जगा रहता फ़िर सो जाता। सुबह सुकन्या उठ कर बैठें बैठे अंगड़ाई लेती तभी उसकी नज़र घड़ी पर जाती, समय देखकर सुकन्या अंगड़ाई लेना भूल जाती हैं और बोलती हैं…..


सुकन्या...आज फिर लेट हों गयी पाता नहीं कब ये जल्दी उठने के नियम में बदलाव होगी।


सुकन्या रावण को जगाने के लिऐ हिलती हैं और बोलती…….


सुकन्या…… ए जी जल्दी उठो कब तक सोओगे।


रावण…... कुनमुनाते हुए अरे क्या हुआ सोने दो न बहुत नींद आ रही हैं।


सुकन्या…. ओर कितना सोओगे सुबह हों गई हैं जल्दी उठो नहीं तो दोपहर तक भूखा रहना पड़ेगा।


रावण…... उठकर बैठते हुए इतना जल्दी सुबह हों गया अभी तो सोया था।


सुकन्या….. नींद में ही भांग पी लिया या रात का नशा अभी तक उतरा नहीं जल्दी उठो हम लेट हों गए हैं।


सुकन्या कपड़े लेकर बाथरूम में जाती है। रावण आंख मलते हुए उठकर बैठ जाता हैं। सुकन्या के बाथरूम से निकलते ही रावण बाथरूम में जाता हैं। फ्रैश होकर आता हैं और दोनों नाश्ता करने चल देता हैं। रावण नीचे जाते हुए ऐसे चल रहा था जैसे किसी ने उस पर बहुत बड़ा बोझ रख दिया हों। रावण जाकर डायनिंग टेबल पर बैठ जाता हैं। जहां पहले से सब बैठे हुए थे। रावण को देखकर राजेंद्र पूछता हैं…...


राजेन्द्र……. रावण तू कुछ चिंतित प्रतीत हों रहा हैं। कोई विशेष बात हैं जो तुझे परेशान कर रहा हैं।


रावण की नींद पुरा नहीं हुआ था जिससे उसे अपने ऊपर एक बोझ सा लग रहा था और राजेंद्र के सवाल ने उसके चहरे के रंग उड़ा दिया था। रावण रंग उड़े चहर को देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली………


सुरभि…... देवर जी आप दोनों भाइयों ने पाला बदल बदल कर चिंतित होने का ठेका ले रखा हैं जो एक चिंता मुक्त होता हैं तो दूसरा चिंता ग्रस्त हों जाता हैं।


राजेंद्र सुरभि की ओर देखकर मुस्करा देता हैं। रावण दोनों को एक टक देखता रहता। रावण समझ नहीं पा रहा था की सुरभि कहना क्या चहती थी। लेकिन रावण इतना तो समझ गया था। उसके अंतरमन में चल रहा द्वंद उसके भाई और भाभी ने परख लिया था। इसलिए रावण हल्का हल्का मुस्कुराते हुए बोला…..


रावण….. दादाभाई ऐसी कोई विशेष बात नहीं हैं कल रात लेट सोया था। नींद पूरा नहीं होने के करण थोड़ थका थका लग रहा हूं। इसलिए आपको चिंतित दिख रहा हूं।


सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देते और नाश्ता करने लगते हैं। रावण भी नाश्ता करने में मगन हों गया। नाश्ता करते हुए राजेंद्र बोलता हैं…..


राजेंद्र……. अपस्यू बेटा इस सत्र में पास हों जाओगे या इसी कॉलेज में ढेरा जमाए बैठे रहना हैं।


अपस्यू….. बड़े पापा पूरी कोशिश कर रहा हूं इस बार पास हों जाऊंगा।


राजेंद्र…. कोशिश कहां कर रहें हों कॉलेज के अदंर या बहार। तुम कॉलेज के अदंर तो कदम रखते नहीं दिन भर आवारा दोस्तों के साथ मटरगास्ती करते फिरते हों, तो पास किया ख़ाक हों पाओगे।


अपश्यु….. बड़े पापा मैं रोज कॉलेज जाता हूं। कॉलेज के बाद ही दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।


राजेंद्र…… सफेद झूठ तुम घर से कॉलेज के लिए जाते हों। तुम्हारा कॉलेज घर से इतना दूर हैं कि तुम दिन भर में कॉलेज पहुंच ही नहीं पाते।


रावण……. अपश्यु ये क्या सुन रहा हूं। तुम कॉलेज न जाकर कहा जाते हों। ऐसे पढ़ाई करोगे तो आगे जाकर हमारे व्यापार को कैसे सम्हालोगे।


अपश्यु….. पापा मैं पढ़ाई सही से कर रहा हूं और रोज ही कॉलेज जाता हूं लेकिन कभी कभी बंक करके दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।


राजेन्द्र….. प्रधानाध्यपक जी कह रहे थे तुम बहुत कम ही कॉलेज जाते हों। बेटा ऐसे पढ़ाई करने से काम नहीं चलेगा।


इन सब की बाते सुनकर सुकन्या का बहुत कुछ कहने का मान कर रहा था। सुकन्या की जीभ लाप लापाकर शब्द जहर उगलना चाहती थी। इसलिए सुकन्या किसी तरह अपनी जिह्वा को दांतो तले दबाए बैठी रहीं। अपश्यु सर निचे किए बैठा था और प्रधानाध्यपक को मन ही मन गाली दे रहा था। अपश्यु को चुप चाप बैठा देखकर रावण बोलता हैं……


रावण…… तुम्हारे चुप रहने से यह तो सिद्ध हों गया। जो दादाभाई कह रहें हैं सच कह रहें। अपश्यु कान खोल कर सुन लो आज के बाद एक भी दिन कॉलेज बंक किया तो। तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।


अपश्यु….. जी पापा।


राजेन्द्र…… आज के लिए इतना खुरख काफी हैं। अब जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जाओ। रघु आज तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगे।


रघु….. जी पापा।


नाश्ता करने के बाद अपश्यु कॉलेज के लिए निकाल जाता। सुकन्या भुन्न्या हुआ कमरे में जाता हैं और रावण बोलता हैं….


रावण…... दादाभाई आप रघु को अपने साथ ले जाइए मुझे जानें में थोडा लेट होगा।


राजेंद्र…… ठीक हैं।


रावण कमरे में चला जाता हैं। सुकन्या रावण को देखकर बोलता हैं…..


सुकन्या….. क्या हुआ आज ऑफिस नहीं जाना।


रावण…… जाऊंगा थोड़ी देर बाद ।


रावण फिर से सोने की तैयारी करने लगता हैं। राजेंद्र को दुबारा सोता देखकर सुकन्या कहता हैं…….


सुकन्या……. मैं भी आ रहीं हूं मुझे भी सोना हैं।


रावण…… नहीं तम मत आना नहीं तो मैं सोना भूलकर कुछ ओर ही शुरू कर दुंगा।


सुकन्या ……. मैं नहीं आ रहीं हूं आप सो लिजिए।


राजेंद्र ऑफिस जाते हुए सुरभि से बोलता हैं।


राजेंद्र …… सुरभि मैं एक घंटे में ऑफिस से लौट आऊंगा तुम तैयार रहना हम कलकत्ता चल रहे हैं।


सुरभि….. कलकत्ता पुष्पा से मिलने।


राजेंद्र….. पुष्पा से भी मिलेंगे लेकिन उसे पहले हम एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में जायेंगे जहां मुझे मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।


सुरभि…… ठीक हैं मैं अभी से तैयार होने लगती हु जब तक आप आओगे तब तक मैं तैयार हों जाऊंगी।


राजेंद्र कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराकर सुरभि की ओर देखता हैं फिर बहार आकर रघु के साथ ऑफिस चल देता हैं। रास्ते में चलते हुए राजेंद्र कहता हैं……


राजेंद्र…… रघु बेटा अब से तुम बच्चो को पढ़ना बंद कर ऑफिस का कार्य भार सम्हालो।


रघु….. जैसा आप कहो।


राजेंद्र…… रघु कोई सवाल नहीं सीधा हां कर दिया।


रघु…... इसमें सवाल जवाब कैसा अपने कहा था बच्चों को पढ़ाने के लिए तो मैं बच्चों को पढ़ा रहा था। अब आप ऑफिस का कार्य भार समालने को कह रहे हैं तो मैं ऑफिस जाना शुरू कर दुंगा।


राजेंद्र…… तुम्हें बच्चों को पढ़ाने इसलिए कहा क्योंकि एक ही सवाल बार बार पूछने पर तुम अपना आपा खो देते थे और तुम्हें गुस्सा आने लगता था। बच्चो को पढ़ाने से तुम अपने गुस्से पर काबू रखना सीख गए और एक सवाल का कई तरीके से ज़बाब देना भी सीख गए। जो आगे चलकर तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद होगा।


ऐसे ही बाते करते हुए दोनों ऑफिस पहुंच गए। राजेंद्र ने रघु के लिए अलग से एक ऑफिस रूम तैयार करवाया था। राजेंद्र रघु को लेकर उस रूम में गए और बोला…….


राजेंद्र…… रघु इसी रूम में बैठकर तुम काम करोगे। जाओ जाकर बैठो मैं भी तो देखू मेरा बेटा इस कुर्सी पर बैठकर कैसा दिखता हैं।


रघु कुर्सी पर बैठने से पहले राजेंद्र का पैर छूता हैं फिर कुर्सी की पास जाता हैं और कुर्सी पर बैठ जाता हैं। रघु के कुर्सी पर बैठते ही कुछ लोग ऑफिस रूम आते हैं। उन लोगों को देखकर रघु उठकर खड़ा होता हैं और जाकर राजेंद्र के उम्र के एक शक्श का पैर छूता हैं और बोलता हैं…….


रघु…… मुंशी काका आप कैसे हैं।


मुंशी रघु के हाथ में एक गुलदस्ता देता हैं और बधाई देता हैं। मुंशी के साथ आए ओर लोग भी रघु को बधाई देता हैं। फिर मुंशी को छोड़कर उसके साथ आए लोग चले जाते हैं तब मुंशी बोलता हैं……


मुंशी……. मालिक मैं यह कम करने वाला एक नौकर हूं इसलिए मेरा पैर छुना अपको शोभा नहीं देता।


रघु…… भले ही आप यह कम करते हों। लेकिन आप मेरे दोस्त के पिता हैं तो आप मेरे भी पिता हुए। तो फिर मैं आज के दिन अपका आशीर्वाद लेना कैसे भूल सकता हूं।


राजेंद्र….. बिलकुल सही कहा रघु। अब बता मेरे यार रघु के इस सवाल का क्या जवाब देगा।


मुंशी…… राना जी मेरे पास रघु बेटे के सवाल का कोई जबाब नहीं हैं। रघु बेटे ने मुझे निशब्द कर दिया हैं।


रघु मुस्कुराता हुआ जाकर कुर्सी पर बैठ जाता हैं और बोलता हैं…..


रघु….. मुंशी काका देखिए तो जरा मैं इस कुर्सी पर बैठा कैसा लग रहा हूं।


मुंशी... आप इस कुर्सी पर जच रहे हों। अपको इस कुर्सी पर बैठा देखकर ऐसा लग रहा हैं जैसे राजा राजशिंघासन पर बैठा हैं। बस एक रानी की कमी हैं।


रघु…… मुस्कुराते हुए मुंशी काका रानी की कमी लग रहा हैं तो आप मेरे लायक कोई लड़की ढूंढ़ लिजिए और मेरी रानी बाना दीजिए।


रघु की बाते सुनकर राजेंद्र और मुंशी मुस्करा देते हैं और राजेंद्र बोलता हैं……


राजेंद्र…... रघु बेटा कुछ दिन और प्रतीक्षा कर लो फिर तुम्हारे लायक लड़की ढूंढ़ कर तुम्हारा रानी बाना देंगे।


मुंशी….. हां रघु बेटा राना जी बिल्कुल सही कह रहे हैं।


राजेंद्र….. रघु मेरे साथ चलो तुम्हें कुछ लोगों से मिलवाता हूं।


रघु को लेकर राजेंद्र ऑफिस में काम करने वाले लोगों से मिलवाता हैं और उनका परिचय देता हैं। यह मेल मिलाप कुछ वक्त तक चलता रहता फिर राजेंद्र रघु को उसके ऑफिस रूम ले जाता हैं और बोलता हैं…..


राजेंद्र…. रघु तुम कम करों कहीं सहयोग की जरूरत हों तो मुंशी से पुछ लेना।


रघु….. जी पापा।


राजेंद्र…… रघु मैं तुम्हारे मां के साथ कलकत्ता जा रहा हूं कल तक लौट आऊंगा।


रघु….. आप कलकत्ता जा रहे हैं कुछ विशेष काम था।


राजेन्द्र…. हां रघु मुझे एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।


रघु….. ठीक हैं पापा आप आते समय पुष्पा को भी साथ लेकर आना बहुत दिन हों गए उसे मिले हुए।


राजेंद्र…. ठीक हैं अब मैं चलता हूं।


राजेंद्र वह से निकल कर मुंशी के पास जाता हैं। मुंशी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाता जिससे राजेंद्र उसे फिर से डांटता डटने के बाद बोलता……


राजेन्द्र…… मुंशी जैसे तू मेरा सहयोग करता आया हैं वैसे ही अब से रघु का सहयोग करना।


मुंशी…… वो तो मैं करूंगा ही लेकिन एक बात समाझ नहीं आया अचानक रघु बेटे के हाथ में ऑफिस का कार्यभार सोफ दिया।


राजेंद्र…. यह दुनियां हमारे सोच के अनुरूप नहीं चलता मैं भी एक शुभ मूहर्त पर रघु बेटे के हाथ में सारा कार्य भार सोफना चाहता था लेकिन कुछ ऐसी बातें पता चला हैं जिसके चलते मुझे यह फैसला अचानक ही लेना पडा।


मुंशी…… बात क्या हैं जो अचानक ऐसा करना पडा।


राजेंद्र… अभी बताने का समय नहीं हैं मैं कलकत्ता जा रहा हूं वह से आने के बाद बता दुंगा।


मुंशी….. ठीक हैं।


राजेंद्र ऑफिस से घर को चल देत हैं। ऊधर अपश्यू कॉलेज पहुंच गया। कॉलेज में एंट्री करते ही गेट पर उसके कुछ लफंगे दोस्त खडे थे उन्हें देखकर अपश्यु बोलता हैं…..


अपश्यु….. अरे ओ लफंगों यह खडे खडे किसको तड़ रहे हों।


दोस्त 1….. ओ हों सरदार आज आप किस खुशी में यह पधारे हों।


दोस्त 2…… सरदार आज क्यों आ गए सीधा पेपर के बाद रिजल्ट लेने आते


अपश्यु… चुप कर एक तो बड़े पापा ने सुबह सुबह बोल बच्चन सुना दिया अब तुम लोग भी शुरू हों गए।


दोस्त 3….. ओ हों तो राजा जी ने डंडा करके सरदार को कॉलेज भेजा। राजाजी ने अच्छा किया नहीं तो बिना सरदार के गैंग दिशा विहीन होकर किसी ओर दिशा में चल देता।


अपश्यु…….सरदार आ गया हैं अब सरदार का गैंग दिशा से नहीं भटकेगा। चलो पहले प्रधानाध्यापक से मुक्का लात किया जाएं।


दोस्त 1…… आब्बे मुक्का लात नहीं मुलाकात कहते हैं। कम से कम शब्द तो सही बोल लिया कर।


अपश्यु… अरे हों साहित्य के पुजारी मैंने शब्द सही बोला हैं मुझे प्रधानाध्यापक के साथ मुक्का लात ही करना हैं।


दोस्त 4….. ओ तो आज फिर से प्रधानाध्यापक महोदय जी की बिना साबुन पानी के धुलाई होने वाला हैं। निरमा डिटर्जेंट पाउडर कपडे धुले ऐसे जैसे दाग कभी था ही नहीं।


दोस्त1….. अरे हों विभीध भारती के सीधा प्रसारण कपडे नहीं धोने हैं प्रधानाध्यापक जी को धोना हैं। आज की धुलाई के बाद उनकी बॉडी में दाग ही दाग होंगे।


अपश्यु…अरे हों कॉमेडी रंग मंच के भूतिया विलन चल रहे हों या तुम सब की बिना साबुन पानी के झाग निकाल दू।


अपश्यु अपने दोस्तों के साथ चल देता। प्रधानाध्यापक के ऑफिस तक जाते हुए रस्ते में जितने भी लड़के लड़कियां मिलता था सब को परेशान करते हुए जा रहे थे। लड़के और लड़कियां कुछ कह नहीं पा रहे थे। सिर्फ दांत पीसते रह जाते थे। कुछ वक्त में अपश्यु प्रधानाध्यापक जी के ऑफिस के सामने पहुंच जाते। ऑफिस के बहार खड़ा चपरासी उन्हे रोकता लेकिन अपश्यु उन्हे धक्का देकर ऑफिस मे घूस जाता हैं। प्रधानाध्यापक उन्हें देखकर बोलता हैं……


प्रधानाध्यापक…… आ गए अपना तासरीफ लेकर लेकिन तुम्हें पाता नहीं प्रधानाध्यापक के ऑफिस के अदंर आने से पहले अनुमति मांग जाता हैं।


अपश्यु……. तासरीफ इसलिए लेकर आया क्योंकि तेरी तासरीफ की हुलिया बिगड़ने वाला हैं और रहीं बात अनुमति कि तो मुझे कहीं भी आने जाने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ता।


प्रधानाध्यापक….. लगाता हैं फिर से राजा जी से तुम्हारी शिकायत करना पड़ेगा।


अपश्यु जाकर प्रधानाध्यापक को एक थप्पड़ मरता हैं। थप्पड़ इतना जोरदार था कि प्रधानाध्यापक अपनी जगह से हिल जाता हैं। प्रधानाध्यापक को एक के बाद एक कई थप्पड़ पड़ता थप्पड़ ही नहीं लात घुसे मुक्के सब मारे जाते हैं। कुछ ही वक्त में प्रधानाध्यापक को मार मार कर हुलिया बिगड़ दिया जाता फिर अपश्यु प्रधानाध्यापक को चेतावनी देता…..


अपश्यु… अब की तूने बड़े पापा से कुछ कहा तो हम भी रहेगें, यह कॉलेज भी रहेगा लेकिन तू नहीं रहेगा। तू इस दुनियां में रहना चाहता हैं तो मेरी बातों को घोल कर पी जा और अपने खून में मिला ले जिससे तुझे हमेशा हमेशा के लिए मेरी बाते याद रह जाएं।



प्रधानाध्यापक को जमकर धोने के बाद अपश्यु चला जाता हैं। अपश्यु के जानें के बाद प्रधानाध्यापक चपरासी को बुलाता हैं और उसके साथ अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास चल देता हैं। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे।
Bahut hi badhiya update diya hai bhai..
Nice and awesome update..
 

Naik

Well-Known Member
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अजनबी हमसफ़र - रिश्तों का गठबंधन

Update - 8

रावण सुकन्या के कहने पर सो जाता हैं लेकिन रावण को नींद नही आ रहा था। रावण कभी इस करवट तो कभी उस करवट बदलता रहता। उसका मन विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहा था। उसे आगे किया करना चाहिए। जिससे उसके रचे साजिश का पर्दा फाश होने से बचा रह सके। रावण यह भी सोच रहा था। उससे कहा चूक हों गया। जब उसे कोई रस्ता नज़र नहीं आता तो वकील दलाल को इस विषय में बताना सही समझा। इसी सोचा विचारी में रात्रि के अंतिम पहर तक जगा रहता फ़िर सो जाता। सुबह सुकन्या उठ कर बैठें बैठे अंगड़ाई लेती तभी उसकी नज़र घड़ी पर जाती, समय देखकर सुकन्या अंगड़ाई लेना भूल जाती हैं और बोलती हैं…..


सुकन्या...आज फिर लेट हों गयी पाता नहीं कब ये जल्दी उठने के नियम में बदलाव होगी।


सुकन्या रावण को जगाने के लिऐ हिलती हैं और बोलती…….


सुकन्या…… ए जी जल्दी उठो कब तक सोओगे।


रावण…... कुनमुनाते हुए अरे क्या हुआ सोने दो न बहुत नींद आ रही हैं।


सुकन्या…. ओर कितना सोओगे सुबह हों गई हैं जल्दी उठो नहीं तो दोपहर तक भूखा रहना पड़ेगा।


रावण…... उठकर बैठते हुए इतना जल्दी सुबह हों गया अभी तो सोया था।


सुकन्या….. नींद में ही भांग पी लिया या रात का नशा अभी तक उतरा नहीं जल्दी उठो हम लेट हों गए हैं।


सुकन्या कपड़े लेकर बाथरूम में जाती है। रावण आंख मलते हुए उठकर बैठ जाता हैं। सुकन्या के बाथरूम से निकलते ही रावण बाथरूम में जाता हैं। फ्रैश होकर आता हैं और दोनों नाश्ता करने चल देता हैं। रावण नीचे जाते हुए ऐसे चल रहा था जैसे किसी ने उस पर बहुत बड़ा बोझ रख दिया हों। रावण जाकर डायनिंग टेबल पर बैठ जाता हैं। जहां पहले से सब बैठे हुए थे। रावण को देखकर राजेंद्र पूछता हैं…...


राजेन्द्र……. रावण तू कुछ चिंतित प्रतीत हों रहा हैं। कोई विशेष बात हैं जो तुझे परेशान कर रहा हैं।


रावण की नींद पुरा नहीं हुआ था जिससे उसे अपने ऊपर एक बोझ सा लग रहा था और राजेंद्र के सवाल ने उसके चहरे के रंग उड़ा दिया था। रावण रंग उड़े चहर को देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली………


सुरभि…... देवर जी आप दोनों भाइयों ने पाला बदल बदल कर चिंतित होने का ठेका ले रखा हैं जो एक चिंता मुक्त होता हैं तो दूसरा चिंता ग्रस्त हों जाता हैं।


राजेंद्र सुरभि की ओर देखकर मुस्करा देता हैं। रावण दोनों को एक टक देखता रहता। रावण समझ नहीं पा रहा था की सुरभि कहना क्या चहती थी। लेकिन रावण इतना तो समझ गया था। उसके अंतरमन में चल रहा द्वंद उसके भाई और भाभी ने परख लिया था। इसलिए रावण हल्का हल्का मुस्कुराते हुए बोला…..


रावण….. दादाभाई ऐसी कोई विशेष बात नहीं हैं कल रात लेट सोया था। नींद पूरा नहीं होने के करण थोड़ थका थका लग रहा हूं। इसलिए आपको चिंतित दिख रहा हूं।


सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देते और नाश्ता करने लगते हैं। रावण भी नाश्ता करने में मगन हों गया। नाश्ता करते हुए राजेंद्र बोलता हैं…..


राजेंद्र……. अपस्यू बेटा इस सत्र में पास हों जाओगे या इसी कॉलेज में ढेरा जमाए बैठे रहना हैं।


अपस्यू….. बड़े पापा पूरी कोशिश कर रहा हूं इस बार पास हों जाऊंगा।


राजेंद्र…. कोशिश कहां कर रहें हों कॉलेज के अदंर या बहार। तुम कॉलेज के अदंर तो कदम रखते नहीं दिन भर आवारा दोस्तों के साथ मटरगास्ती करते फिरते हों, तो पास किया ख़ाक हों पाओगे।


अपश्यु….. बड़े पापा मैं रोज कॉलेज जाता हूं। कॉलेज के बाद ही दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।


राजेंद्र…… सफेद झूठ तुम घर से कॉलेज के लिए जाते हों। तुम्हारा कॉलेज घर से इतना दूर हैं कि तुम दिन भर में कॉलेज पहुंच ही नहीं पाते।


रावण……. अपश्यु ये क्या सुन रहा हूं। तुम कॉलेज न जाकर कहा जाते हों। ऐसे पढ़ाई करोगे तो आगे जाकर हमारे व्यापार को कैसे सम्हालोगे।


अपश्यु….. पापा मैं पढ़ाई सही से कर रहा हूं और रोज ही कॉलेज जाता हूं लेकिन कभी कभी बंक करके दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।


राजेन्द्र….. प्रधानाध्यपक जी कह रहे थे तुम बहुत कम ही कॉलेज जाते हों। बेटा ऐसे पढ़ाई करने से काम नहीं चलेगा।


इन सब की बाते सुनकर सुकन्या का बहुत कुछ कहने का मान कर रहा था। सुकन्या की जीभ लाप लापाकर शब्द जहर उगलना चाहती थी। इसलिए सुकन्या किसी तरह अपनी जिह्वा को दांतो तले दबाए बैठी रहीं। अपश्यु सर निचे किए बैठा था और प्रधानाध्यपक को मन ही मन गाली दे रहा था। अपश्यु को चुप चाप बैठा देखकर रावण बोलता हैं……


रावण…… तुम्हारे चुप रहने से यह तो सिद्ध हों गया। जो दादाभाई कह रहें हैं सच कह रहें। अपश्यु कान खोल कर सुन लो आज के बाद एक भी दिन कॉलेज बंक किया तो। तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।


अपश्यु….. जी पापा।


राजेन्द्र…… आज के लिए इतना खुरख काफी हैं। अब जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जाओ। रघु आज तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगे।


रघु….. जी पापा।


नाश्ता करने के बाद अपश्यु कॉलेज के लिए निकाल जाता। सुकन्या भुन्न्या हुआ कमरे में जाता हैं और रावण बोलता हैं….


रावण…... दादाभाई आप रघु को अपने साथ ले जाइए मुझे जानें में थोडा लेट होगा।


राजेंद्र…… ठीक हैं।


रावण कमरे में चला जाता हैं। सुकन्या रावण को देखकर बोलता हैं…..


सुकन्या….. क्या हुआ आज ऑफिस नहीं जाना।


रावण…… जाऊंगा थोड़ी देर बाद ।


रावण फिर से सोने की तैयारी करने लगता हैं। राजेंद्र को दुबारा सोता देखकर सुकन्या कहता हैं…….


सुकन्या……. मैं भी आ रहीं हूं मुझे भी सोना हैं।


रावण…… नहीं तम मत आना नहीं तो मैं सोना भूलकर कुछ ओर ही शुरू कर दुंगा।


सुकन्या ……. मैं नहीं आ रहीं हूं आप सो लिजिए।


राजेंद्र ऑफिस जाते हुए सुरभि से बोलता हैं।


राजेंद्र …… सुरभि मैं एक घंटे में ऑफिस से लौट आऊंगा तुम तैयार रहना हम कलकत्ता चल रहे हैं।


सुरभि….. कलकत्ता पुष्पा से मिलने।


राजेंद्र….. पुष्पा से भी मिलेंगे लेकिन उसे पहले हम एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में जायेंगे जहां मुझे मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।


सुरभि…… ठीक हैं मैं अभी से तैयार होने लगती हु जब तक आप आओगे तब तक मैं तैयार हों जाऊंगी।


राजेंद्र कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराकर सुरभि की ओर देखता हैं फिर बहार आकर रघु के साथ ऑफिस चल देता हैं। रास्ते में चलते हुए राजेंद्र कहता हैं……


राजेंद्र…… रघु बेटा अब से तुम बच्चो को पढ़ना बंद कर ऑफिस का कार्य भार सम्हालो।


रघु….. जैसा आप कहो।


राजेंद्र…… रघु कोई सवाल नहीं सीधा हां कर दिया।


रघु…... इसमें सवाल जवाब कैसा अपने कहा था बच्चों को पढ़ाने के लिए तो मैं बच्चों को पढ़ा रहा था। अब आप ऑफिस का कार्य भार समालने को कह रहे हैं तो मैं ऑफिस जाना शुरू कर दुंगा।


राजेंद्र…… तुम्हें बच्चों को पढ़ाने इसलिए कहा क्योंकि एक ही सवाल बार बार पूछने पर तुम अपना आपा खो देते थे और तुम्हें गुस्सा आने लगता था। बच्चो को पढ़ाने से तुम अपने गुस्से पर काबू रखना सीख गए और एक सवाल का कई तरीके से ज़बाब देना भी सीख गए। जो आगे चलकर तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद होगा।


ऐसे ही बाते करते हुए दोनों ऑफिस पहुंच गए। राजेंद्र ने रघु के लिए अलग से एक ऑफिस रूम तैयार करवाया था। राजेंद्र रघु को लेकर उस रूम में गए और बोला…….


राजेंद्र…… रघु इसी रूम में बैठकर तुम काम करोगे। जाओ जाकर बैठो मैं भी तो देखू मेरा बेटा इस कुर्सी पर बैठकर कैसा दिखता हैं।


रघु कुर्सी पर बैठने से पहले राजेंद्र का पैर छूता हैं फिर कुर्सी की पास जाता हैं और कुर्सी पर बैठ जाता हैं। रघु के कुर्सी पर बैठते ही कुछ लोग ऑफिस रूम आते हैं। उन लोगों को देखकर रघु उठकर खड़ा होता हैं और जाकर राजेंद्र के उम्र के एक शक्श का पैर छूता हैं और बोलता हैं…….


रघु…… मुंशी काका आप कैसे हैं।


मुंशी रघु के हाथ में एक गुलदस्ता देता हैं और बधाई देता हैं। मुंशी के साथ आए ओर लोग भी रघु को बधाई देता हैं। फिर मुंशी को छोड़कर उसके साथ आए लोग चले जाते हैं तब मुंशी बोलता हैं……


मुंशी……. मालिक मैं यह कम करने वाला एक नौकर हूं इसलिए मेरा पैर छुना अपको शोभा नहीं देता।


रघु…… भले ही आप यह कम करते हों। लेकिन आप मेरे दोस्त के पिता हैं तो आप मेरे भी पिता हुए। तो फिर मैं आज के दिन अपका आशीर्वाद लेना कैसे भूल सकता हूं।


राजेंद्र….. बिलकुल सही कहा रघु। अब बता मेरे यार रघु के इस सवाल का क्या जवाब देगा।


मुंशी…… राना जी मेरे पास रघु बेटे के सवाल का कोई जबाब नहीं हैं। रघु बेटे ने मुझे निशब्द कर दिया हैं।


रघु मुस्कुराता हुआ जाकर कुर्सी पर बैठ जाता हैं और बोलता हैं…..


रघु….. मुंशी काका देखिए तो जरा मैं इस कुर्सी पर बैठा कैसा लग रहा हूं।


मुंशी... आप इस कुर्सी पर जच रहे हों। अपको इस कुर्सी पर बैठा देखकर ऐसा लग रहा हैं जैसे राजा राजशिंघासन पर बैठा हैं। बस एक रानी की कमी हैं।


रघु…… मुस्कुराते हुए मुंशी काका रानी की कमी लग रहा हैं तो आप मेरे लायक कोई लड़की ढूंढ़ लिजिए और मेरी रानी बाना दीजिए।


रघु की बाते सुनकर राजेंद्र और मुंशी मुस्करा देते हैं और राजेंद्र बोलता हैं……


राजेंद्र…... रघु बेटा कुछ दिन और प्रतीक्षा कर लो फिर तुम्हारे लायक लड़की ढूंढ़ कर तुम्हारा रानी बाना देंगे।


मुंशी….. हां रघु बेटा राना जी बिल्कुल सही कह रहे हैं।


राजेंद्र….. रघु मेरे साथ चलो तुम्हें कुछ लोगों से मिलवाता हूं।


रघु को लेकर राजेंद्र ऑफिस में काम करने वाले लोगों से मिलवाता हैं और उनका परिचय देता हैं। यह मेल मिलाप कुछ वक्त तक चलता रहता फिर राजेंद्र रघु को उसके ऑफिस रूम ले जाता हैं और बोलता हैं…..


राजेंद्र…. रघु तुम कम करों कहीं सहयोग की जरूरत हों तो मुंशी से पुछ लेना।


रघु….. जी पापा।


राजेंद्र…… रघु मैं तुम्हारे मां के साथ कलकत्ता जा रहा हूं कल तक लौट आऊंगा।


रघु….. आप कलकत्ता जा रहे हैं कुछ विशेष काम था।


राजेन्द्र…. हां रघु मुझे एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।


रघु….. ठीक हैं पापा आप आते समय पुष्पा को भी साथ लेकर आना बहुत दिन हों गए उसे मिले हुए।


राजेंद्र…. ठीक हैं अब मैं चलता हूं।


राजेंद्र वह से निकल कर मुंशी के पास जाता हैं। मुंशी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाता जिससे राजेंद्र उसे फिर से डांटता डटने के बाद बोलता……


राजेन्द्र…… मुंशी जैसे तू मेरा सहयोग करता आया हैं वैसे ही अब से रघु का सहयोग करना।


मुंशी…… वो तो मैं करूंगा ही लेकिन एक बात समाझ नहीं आया अचानक रघु बेटे के हाथ में ऑफिस का कार्यभार सोफ दिया।


राजेंद्र…. यह दुनियां हमारे सोच के अनुरूप नहीं चलता मैं भी एक शुभ मूहर्त पर रघु बेटे के हाथ में सारा कार्य भार सोफना चाहता था लेकिन कुछ ऐसी बातें पता चला हैं जिसके चलते मुझे यह फैसला अचानक ही लेना पडा।


मुंशी…… बात क्या हैं जो अचानक ऐसा करना पडा।


राजेंद्र… अभी बताने का समय नहीं हैं मैं कलकत्ता जा रहा हूं वह से आने के बाद बता दुंगा।


मुंशी….. ठीक हैं।


राजेंद्र ऑफिस से घर को चल देत हैं। ऊधर अपश्यू कॉलेज पहुंच गया। कॉलेज में एंट्री करते ही गेट पर उसके कुछ लफंगे दोस्त खडे थे उन्हें देखकर अपश्यु बोलता हैं…..


अपश्यु….. अरे ओ लफंगों यह खडे खडे किसको तड़ रहे हों।


दोस्त 1….. ओ हों सरदार आज आप किस खुशी में यह पधारे हों।


दोस्त 2…… सरदार आज क्यों आ गए सीधा पेपर के बाद रिजल्ट लेने आते


अपश्यु… चुप कर एक तो बड़े पापा ने सुबह सुबह बोल बच्चन सुना दिया अब तुम लोग भी शुरू हों गए।


दोस्त 3….. ओ हों तो राजा जी ने डंडा करके सरदार को कॉलेज भेजा। राजाजी ने अच्छा किया नहीं तो बिना सरदार के गैंग दिशा विहीन होकर किसी ओर दिशा में चल देता।


अपश्यु…….सरदार आ गया हैं अब सरदार का गैंग दिशा से नहीं भटकेगा। चलो पहले प्रधानाध्यापक से मुक्का लात किया जाएं।


दोस्त 1…… आब्बे मुक्का लात नहीं मुलाकात कहते हैं। कम से कम शब्द तो सही बोल लिया कर।


अपश्यु… अरे हों साहित्य के पुजारी मैंने शब्द सही बोला हैं मुझे प्रधानाध्यापक के साथ मुक्का लात ही करना हैं।


दोस्त 4….. ओ तो आज फिर से प्रधानाध्यापक महोदय जी की बिना साबुन पानी के धुलाई होने वाला हैं। निरमा डिटर्जेंट पाउडर कपडे धुले ऐसे जैसे दाग कभी था ही नहीं।


दोस्त1….. अरे हों विभीध भारती के सीधा प्रसारण कपडे नहीं धोने हैं प्रधानाध्यापक जी को धोना हैं। आज की धुलाई के बाद उनकी बॉडी में दाग ही दाग होंगे।


अपश्यु…अरे हों कॉमेडी रंग मंच के भूतिया विलन चल रहे हों या तुम सब की बिना साबुन पानी के झाग निकाल दू।


अपश्यु अपने दोस्तों के साथ चल देता। प्रधानाध्यापक के ऑफिस तक जाते हुए रस्ते में जितने भी लड़के लड़कियां मिलता था सब को परेशान करते हुए जा रहे थे। लड़के और लड़कियां कुछ कह नहीं पा रहे थे। सिर्फ दांत पीसते रह जाते थे। कुछ वक्त में अपश्यु प्रधानाध्यापक जी के ऑफिस के सामने पहुंच जाते। ऑफिस के बहार खड़ा चपरासी उन्हे रोकता लेकिन अपश्यु उन्हे धक्का देकर ऑफिस मे घूस जाता हैं। प्रधानाध्यापक उन्हें देखकर बोलता हैं……


प्रधानाध्यापक…… आ गए अपना तासरीफ लेकर लेकिन तुम्हें पाता नहीं प्रधानाध्यापक के ऑफिस के अदंर आने से पहले अनुमति मांग जाता हैं।


अपश्यु……. तासरीफ इसलिए लेकर आया क्योंकि तेरी तासरीफ की हुलिया बिगड़ने वाला हैं और रहीं बात अनुमति कि तो मुझे कहीं भी आने जाने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ता।


प्रधानाध्यापक….. लगाता हैं फिर से राजा जी से तुम्हारी शिकायत करना पड़ेगा।


अपश्यु जाकर प्रधानाध्यापक को एक थप्पड़ मरता हैं। थप्पड़ इतना जोरदार था कि प्रधानाध्यापक अपनी जगह से हिल जाता हैं। प्रधानाध्यापक को एक के बाद एक कई थप्पड़ पड़ता थप्पड़ ही नहीं लात घुसे मुक्के सब मारे जाते हैं। कुछ ही वक्त में प्रधानाध्यापक को मार मार कर हुलिया बिगड़ दिया जाता फिर अपश्यु प्रधानाध्यापक को चेतावनी देता…..


अपश्यु… अब की तूने बड़े पापा से कुछ कहा तो हम भी रहेगें, यह कॉलेज भी रहेगा लेकिन तू नहीं रहेगा। तू इस दुनियां में रहना चाहता हैं तो मेरी बातों को घोल कर पी जा और अपने खून में मिला ले जिससे तुझे हमेशा हमेशा के लिए मेरी बाते याद रह जाएं।



प्रधानाध्यापक को जमकर धोने के बाद अपश्यु चला जाता हैं। अपश्यु के जानें के बाद प्रधानाध्यापक चपरासी को बुलाता हैं और उसके साथ अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास चल देता हैं। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे।
Bahot behtareen shaandaar update bhai
Tow jaisa baap h waisa hi beta itni kameengi ki principal n shikayat kerdi ladka school nahi aata tow gher thodi dant pad gayi tow uske balde m principal ko thonk baja dia
 

Destiny

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Bahot behtareen shaandaar update bhai
Tow jaisa baap h waisa hi beta itni kameengi ki principal n shikayat kerdi ladka school nahi aata tow gher thodi dant pad gayi tow uske balde m principal ko thonk baja dia

शुक्रिया naik जी
 
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Destiny

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awesome update bhai
apasyu ko koi hona chahiye pelne wala i think kamla
rajendra kalkatta ja raha hai to kamla se bhi mulaqat hogi avashya
intezaar rahega agle update ka
शुक्रिया HRP 2020 जी
 
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दोस्तों काम में व्यस्त होने के करण अपडेट लिखने में लेट हों रहा हैं और ऐसा दिवाली तक चलने वाला हैं क्योंकि त्यौहार के सीजन में काम का लोड हद से ज्यादा बड़ गया हैं। आप सब को प्रतीक्षा करवाने के लिए माफी चाहूंगा।
 

Naik

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दोस्तों काम में व्यस्त होने के करण अपडेट लिखने में लेट हों रहा हैं और ऐसा दिवाली तक चलने वाला हैं क्योंकि त्यौहार के सीजन में काम का लोड हद से ज्यादा बड़ गया हैं। आप सब को प्रतीक्षा करवाने के लिए माफी चाहूंगा।
Okay bhaya
Koyi baat nahi
 

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Update - 9


अपश्यु प्रिंसिपल की धुनाई कर ऑफिस से निकलकर थोड़ा सा आगे बडा वह अनुराग खड़ा था। अपश्यु को आया देख अनुराग बोला...प्रिंसिपल का काम तमाम करके आ गए अब देखना प्रिंसिपल फिर से तेरे घर शिकायत करेगा फिर से तुझे डांट पड़ेगा। क्यों करता हैं ऐसा छोड़ दे भाई सोच जिस दिन तेरे घर में पाता चलेगा तू क्या क्या करता हैं तब उन पर किया बीतेगा।

अपश्यु…घर पे जब पाता चलेगा तब की तब देखूंगा। अभी तू ओर ज्ञान न दे सुबह से बहुत ज्ञान मिल चुका हैं। अब चल कहीं चलकर बैठते हैं।

अनुराग आगे कुछ नहीं बोला बस अपश्यु के पीछे पीछे चल दिया। सभी जा'कर मेन गेट के सामने खड़े हों गए। एक लड़की फैशनेबल कपड़ो में कॉलेज गेट से एंट्री करती हैं। अपश्यु की नज़र अनजाने में उस पर पड़ गया। लडकी खुबसूरत थी नैन नक्श तीखे थे। साथ ही कपडे भी फैशनेबल पहने हुए थे तो सभी मनचलों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी। अपश्यु भी उन्हीं मनचलों में एक था तो अपश्यु लडकी को देख खो सा गया। कुछ वक्त तक मन भरकर देखने के बाद अपश्यु बोला…अरे ये खुबसूरत बला कौन हैं? जिसने अपश्यु के दिल दिमाग में हल चल मचा दिया। जिसकी सुंदरता का मैं दीवाना हों गया।

अनुराग…ये वो बला हैं जिसके करण कईं मजनू बने कइयों के सिर फूटे कइयों के टांग टूटे अब तू बता सिर फुटवाएगा, टांग तुड़वाएगा या मजनूं बनेगा।

अपश्यु…तोड़ने फोड़ने में, मैं माहिर हूं अब सोच रहा हूं मजनूं बनने का मजा लिया जाएं।

विभान…अरे ओ मजनूं तेरे लिए मजनूं गिरी नहीं हैं तू तो दादागिरी कर, मौज मस्ती कर ओर हमे भी करवा।

अपश्यु…आज से दादागिरी बंद मौज मस्ती बंद ओर मजनूं गिरी शुरू, चलो सब मेरे पिछे पिछे आओ, पाता तो करूं ये खुबसूरत बला हैं कौन?

लडकी अपने धुन में चलते हुए चली गई। अपश्यु दोस्तों को साथ लिए लडकी को ढूंढने चल पड़ा। लडकी कौन से क्लास में गया? ये अपश्यु नहीं देख पाया। इसलिए अपश्यु एक एक क्लॉस रूम में जा'कर लड़की को ढूंढने लग गया। लेकिन लड़की उसे कहीं पर नहीं मिला। थक हर कर अपश्यु अपने क्लास में गया, दरवाजे से एंट्री करते ही अपश्यु रूक गया, सामने वह लडकी खड़ी थीं। अपश्यु लडकी को देखकर दरवाजे से टेक लगकर खड़ा हों गया ओर लडक़ी को मोहित हो'कर देखने लग गया। अपश्यु के दोस्त बातों में मग्न हो'कर एक के पीछे एक चलते हुए आ रहे थे। उनका ध्यान अपश्यु पर न होने के कारण एक के बाद एक अपश्यु से टकरा गए। अपश्यु पर इस टकराव का कोई असर नहीं पड़ा, जैसे का तैसे खड़ा रहा। अचानक सामने आईं बाधा से टकराकर अनुराग बोला…अरे ये दरवाजे पर खंबा किसने गाड़ दिया। उसको पकड़ो ओर खंबा उखड़वाकर कही ओर गड़वाओ।

विभान…अरे ये खंबा नहीं मजनूं खड़ा हैं ओर लैला को देखने में खोया हुआ हैं। सामने से मजनूं को हाटा इसके कारण हमारा सिर फूटते फूटते बचा हैं।

संजय आगे गया फिर अपश्यु के सामने खड़ा हों गया अपश्यु को सामने का नज़ारा दिखना बंद हों गया जिससे अपश्यु का ध्यान भंग हों गया। संजय को सामने खड़ा देख अपश्यु बोला…क्यों तड़ का पेड़ बने खड़ा हैं? हट न सामने से, तुझे दिख नहीं रहा मजनूं लैला से नैन मटका कर रहा हैं।

संजय…अरे ओ दो टाके के मजनूं तेरा दाल नहीं गलने वाला उसके पीछे पहले से ही, कई मजनूं बने फिर रहे हैं।

अपश्यु...कैसे दोस्त हों मैं घर बसाना चाहता हूं तुम उजड़ने कि बात कर रहें हों। साले देख लेना दाल भी गालेगा ओर उससे चोंच भी लडाऊंगा तुम सभी देखते रह जाओगे।

विभान…तू कह घर बसाने वाला, एक बार गुल्ली डंडा खेल लिए, फिर इसे भी ओर लड़कियों की तरह छोड़ देगा।

अपश्यु…नहीं यार ये दिल में बस गया हैं। अब तो इसके साथ घर ही बसाना है। घर बसाने के बाद तो गुल्ली डंडा खेलना ही हैं।

अनुराग…देख लेंगे तू कौन सा घर बसता हैं अब चल बैठा जाए खड़े खड़े मेरा टांग दुख रहा हैं।

सारे दोस्त एक के पिछे एक आगे बढ़ गए। लडक़ी भी बैठने के लिए सीट के पास जा'कर खड़ी हों गई। तब तक अपश्यु लडक़ी के पास पहुंच गया। अपश्यु लडक़ी से कन्नी काट निकल रहा था कि उसका पैर अड़ गया जिससे अपश्यु खुद को संभाल नहीं पाया ओर लडक़ी पर गिर गया। अपश्यु को लडकी पर गिरता देख क्लास में मौजूद सभी लडके लडकियां खिलखिला कर हंस पड़े, जैसे अपश्यु का खिल्ली उड़ा रहे हों।

अपश्यु गिरे हुए ही सभी को एक नाराज़ देख बस अपश्यु का देखना ही काफ़ी था पल भर में ही क्लास में सन्नाटा पसर गया। लडकी ने अपश्यु को गुस्से में देख ओर परे धकेल दिया फिर उठकर खड़ी हों गई। अपश्यु लडकी की ओर देखते हुए खड़ा हुआ। जैसे ही अपश्यु खड़ा हुआ पूरा क्लास chatakkk chatakkk की आवाज़ से गूंज उठा ये देख पुरा क्लॉस अचंभित हों गया ओर लङकी के हिम्मत को दाद देने लग गए क्योंकि कॉलेज में किसी में इतना हिम्मत नहीं था कि अपश्यु पर हाथ उठा सके सभी जानते थे अपश्यु कितना कमीना हैं। थप्पड पड़ते ही अपश्यु भी चौक गया उसे यकीन नहीं हों रहा था किसी लङकी ने भरे क्लास में उसे थप्पड मरा। इसलिए लङकी को घूरकर देखने लग गया। अपश्यु का घूरना लङकी से बर्दास्त नहीं हुआ। लडकी खिसिया गई ओर chatakkk chatakkk दो थप्पड ओर जड़ दिया फिर बोली...अरे ओ रतौंधी के मरीज दिन में भी दिखना बंद हों गया। जो मुझ पर आ'कर गिरा। तुम जैसे लड़कों को मैं अच्छे से जानती हूं खुबसूरत लडकी देखते ही लार टपकाते हुए आ जाते हों। मजनूं कहीं के।

लडकी की बाते सून अपश्यु गाल को सहलाते हुए मुस्कुरा दिया। लडकी पहले से ही गुस्से में थी अपश्यु को मुस्कुराते देख गुस्सा ओर बढ़ गया। लडकी कुछ कर पाती उससे पहले ही अपश्यु के दोस्त अपश्यु को पकड़कर पिछे ले गया फिर विभान बोला...अरे ओ मजनूं होश में आ पूरे क्लॉस के सामने नाक कटवा दिया, जा जा'कर बता दे तू कौन हैं?

अपश्यु…कितने कोमल कोमल हाथ हैं कितना मीठा बोलती हैं। मैं तो गया कम से कोई मुझे डॉक्टर के पास ले चलो ओर प्रेम रोग का इलाज करवाओ।

मनीष…लगाता हैं थप्पड़ों ने तेरे दिमाग के तार हिला दिया, तू बावला हों गया हैं। वो लडकी कोई मीठा बिठा नहीं बोलती तीखी मिर्ची खाकर तीखा तीखा बोलती हैं। उसके हाथ कोमल हैं तो हार्ड किसे कहेगा देख अपने गालों को पांचों उंगलियां छप गया हैं।

अपश्यु…सालो तुम सब ने एक बात गौर नहीं किया आज तक किसी ने भरे क्लॉस में मुझ पर हाथ नहीं उठाया इस लड़की में कुछ तो बात हैं ये लडक़ी मेरे टक्कर की हैं अब ये तुम सब की भाभी बनेगी।

अनुराग…जब तूने तय कर लिया तुझे आगे भी इस लङकी से पीटना हैं तो बोलना पड़ेगा भाभी। हम कर भी क्या सकते हैं

अपश्यु बैठें बैठे लड़की को ताड़ रहा था। सामने बैठा लडके का सिर बीच में आ रहा था। लडके सिर को दाएं बाएं कर रहा था इससे अपश्यु परेशान हों लडके को धक्का दे नीच गिरा दिया। लड़का उठकर चुप चाप दूसरे सीट पर जा बैठ गया।

लडक़ी थाप्पड़ मरने के बाद सीट पर बैठ गई ओर बार बार अपस्यू को पलट पलट कर देख रहीं थीं। अपश्यु भी लड़की को देख रहा था तो लड़की ने आंख मार दिया फिर बगल मे बैठी लड़की जो उसकी सहेली हैं। उससे बोली...सुगंधा देख कैसे घूर रहा हैं मन कर रहा हैं जाकर एक किस कर दूं।

सुगंधा...वो तो घुरेगा ही तुझ पर फिदा जो हों गया। जा कर ले किस, तू तो हैं ही बेशर्म, कहीं भी शुरु हों जाती हैं। डिंपल तू जानती नहीं किसे थप्पड़ मारा हैं?

डिंपल…कौन हैं ? बहुत बड़ा तोप हैं जो मैं उसे थप्पड़ नहीं मार सकती। मैं तो किसी को भी थप्पड मार दू ओर जिसे मन करे उसे किस भी कर दू।

सुगंधा…हमारे कॉलेज के कमीनों का सरदार महाकमीना अपश्यु हैं। उससे कॉलेज के स्टूडेंट के साथ साथ टीचर और प्रिंसिपल बहुत डरते हैं ओर तूने उसके ही गाल लाल कर दिया जिसने भी उस पर हाथ उठाया वो सही सलामत घर नहीं पहुंचा। अब तेरा क्या होगा?

डिंपल…मुझे कुछ भी नहीं होगा देखा न तूने कैसे देख रहा था जैसे पहली बार लडकी देख रहा हों। ये महाकमिना हैं तो मैं भी महाकमिनी हूं।

सुगंधा…वो तो तू हैं ही लेकिन देर सवेर ये महाकमिना इस महाकमिनी से आपमान का बदला लेकर रहेगा। तब किया करेगी?

डिंपल…करना कुछ नहीं हैं ये तो मुझ पर लट्टू हों ही गया अब सोच रहीं हूं मैं भी डोरे डाल देती हूं फिर मजनूं बना आगे पीछा गुमाती रहूंगी।

सुगंधा...तेरा दिमाग तो ठीक हैं पहले से ही इतने सारे मजनूं पाल रखी हैं अब एक ओर कहा जाकर रुकेगी।

डिंपल…सारे मजनूं को रिटायरमेंट देकर अपश्यु पर टिक जाती हूं ओर परमानेंट मजनूंं बना लेती हूं।

सुगंधा...हां हां बना ले ओर मजे कर तुझे तो बस मौज मस्ती करने से मतलब हैं।

डिंपल…यार इस अपश्यु नाम के मजनूं को आज पहली बार देख रहीं हूं न्यू एडमिशन हैं।

सुगंधा...कोई न्यू एडमिशन नहीं हैं ये तो पुरानी दाल हैं जो आज ही कॉलेज आय हैं। कॉलेज आते ही तूने उसके गाल सेंक दिया।

दोनों बात करते करते चुप हों गए क्योंकि क्लॉस में टीचर आ गया था। टीचर क्लॉस का एटेंडेंस लेने लग गया जब अपश्यु का नाम आया ओर कोई ज़बाब नहीं मिला तो टीचर बोला...आज भी नहीं आया लगाता हैं फिर से प्रिंसिपल से शिकायत करना पड़ेगा।

टीचर कि बात सुन अपश्यु का दोस्त विभान बोला...सर अपश्यु आज कॉलेज आया हैं। फ़िर अपश्यु से बोला अरे लङकी ताड़ना छोड़ ओर मुंह खोल नहीं तो फ़िर से शिकायत कर देगा

अपश्यु…पार्जेंट सर।

टीचर…ओ तो आप आ गए आज क्यों आए हों सीधा रिजल्ट लेने आ जाते।

अपश्यु...सर अब से रोज कॉलेज आऊंगा एक भी दिन बंक नहीं करूंगा।

टीचर…कुछ फायदा नहीं होने वाला अगले हफ्ते से एग्जाम शुरू होने वाला हैं। पढ़ाई तो कुछ किया नहीं तो लिखोगे क्या? जब लिखोगे कुछ नहीं तो नंबर न मिलकर बड़ा बड़ा अंडा मिलेगा। उन अंडो का आमलेट बनाकर खा लेना।

टीचर कि बात सुन क्लॉस में मौजूद सभी लडके और लड़किया ठाहाके मारने लग गए। उन सभी को डांटते हुए टीचर बोला….मैंने कोई जॉक नहीं सुनाया जो सब ठाहाके मार रहें हों। पढ़ने पर ध्यान दो नहीं तो अपश्यू की तरह आधार में लटक जाओगे।

टीचर कि बाते सुन अपश्यु मन ही मन बोला...ये तो सरासर बेइज्जती हैं तुझे तो बाद में देखूंगा एक ही दिन में सभी को धो दिया तो पढ़ाने के लिए कोई नहीं बचेगा।

टीचर पढ़ना शुरू कर दिया ऐसे ही रेसेस टाईम तक पढ़ाई चलता रहा। फिर रेसेस होने पर सब कैंटीन में चले गए अपश्यु भी दोस्तों के साथ कैंटीन में जा'कर बैठ गया और चाय कॉफी पीने लग गए तभी डिंपल और सुगंधा कैंटीन में आई। डिंपल अपश्यु के पास गया फिर बोला...सॉरी मैंने अपको पूरे क्लॉस के सामने थाप्पड मारा

अपश्यु एक खाली कुर्सी कि ओर इशारा किया डिंपल उस पर बैठ गईं फिर अपश्यु बोला…अपके लिए इतना बेइज्जती तो सह ही सकता हूं।

डिंपल खिला सा मुस्कान बिखेर दिया जिसे देख अपश्यु भी मुस्कुरा दिया फिर डिम्पल बोला...क्या हम दोस्त बन सकते हैं।

अपश्यु…आप'से दोस्ती नहीं करना है आप'को गर्लफ्रेंड बनना चाहता हू। गर्लफ्रेंड बननी हैं, तो बोलो।

डिंपल मुस्कुरा दिया फिर मन ही मन बोली...ये तो सीधा सीधा ऑफर दे रहा हैं मैं तो ख़ुद ही इसे बॉयफ्रेंड बाना चाहती हूं चलो अच्छी बात हैं बकरा खुद हलाल होना चाहता हैं तो मैं किया कर सकती हूं लेकिन अभी हां कहूंगी तो कहीं ये मुझे गलत न समझ बैठें।

डिंपल…हम आज ही मिले हैं ओर आज ही गर्लफ्रेंड बनने का ऑफर दे रहे हों, ऑफर तो अच्छा हैं लेकिन मुझे सोचने के लिए कुछ टाइम चाहिए।

अपश्यु…दिया टाइम लेकिन ज्यादा नहीं तीन दिन इतना काफी हैं सोचने के लिए।

डिंपल…हां इतना काफी हैं।

बातों बातों में रेसेस टाईम खत्म हों गया फिर सभी अपने अपने क्लॉस में चले गए। अपश्यु क्लास में आया ओर दोस्तों को छोड़ डिम्पल के साथ बैठ गया फिर बीच बीच में बात करते हुए क्लास अटेंड करने लग गए।

घर पर सुरभि तैयार होकर बहार आई सुरभि को सजा धजा देख सुकन्या बोली... कहीं जा रहे हों।

सुरभि... हां छोटी कलकत्ता जा रही हूं तू घर का ध्यान रखना।

सुकन्या... ठीक हैं! आते वक्त पुष्पा को लेकर आना। उससे मिले हुए बहुत दिन हों गया।

सुरभि हां बोला फिर दूसरी बाते करने लग गए। राजेंद्र घर आया फिर दोनों सभी को बोल कलकत्ता के लिए चल दिया। रस्ता लंबा था तो दोनों पति पत्नि बातों में मग्न हों टाइम काट रहे थें। बातों बातों में राजेंद्र बोला...सुरभि आज रघु को ऑफिस का सारा कार्य भर सोफ दिया हैं।

सुरभि…रघु को एक न एक दिन सब जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेना ही था अपने सही किया लेकिन एक शुभ मूहर्त पर करते तो अच्छा होता।

राजेन्द्र...अभी सिर्फ कार्य भर सोफ़ा हैं उसके नाम नहीं किया हैं। रघु के शादी के बाद एक शुभ मूहर्त देखकर बहू और रघु के नाम सब कुछ कर दुंगा।

सुरभि…पता नहीं कब बहु के शुभ कदम हमारे घर पड़ेगी। कब मुझे बहु को गृह प्रवेश करवाने का मौका मिलेगा।

राजेन्द्र...वो शुभ घडी भी आयेगा। मैंने फैसला किए हैं अब जो भी लङकी देखने जाऊंगा उसके बारे में किसी को नहीं बताऊंगा।

सुरभि…ये आपने सही सोचा।

दोनों ऐसे ही बाते करते हुए सफर के मंजिल तक पहुंचने की प्रतिक्षा करने लग गए। उधर कलकत्ता में कमला घर पर मां बाप के साथ नाश्ता कर रही थीं। नाश्ता करने के बाद कमला बोली...पापा आज आप और मां टाइम से कॉलेज आ जाना नहीं आए तो फिर सोच लेना।

महेश…ऐसा कभी हुए हैं हमारी लाडली ने किसी प्रतियोगिता मे भाग लिया हों ओर हम उसे प्रोत्शाहीत करने न पहुंचे हों।

मनोरमा…हम जरूर आयेंगे लेकिन तु ने हमे बताया नहीं तू भाग किस प्रतियोगिता में ले रहीं हैं। इस बार भी हर बार की तरह चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया हैं क्या?

कमला…हां मां इस बार भी चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया ओर एक अच्छा सा चित्र बनाया हैं।

महेश…तो फिर हमे भी दिखा दो, हम भी तो देखे हमारी चित्रकार बेटी ने कौन सा चित्र बनाया हैं?

कमला…वो तो आप को वार्षिक उत्सव में आने के बाद ही देखने को मिलेगा अब मैं चलती हूं आप समय से आ जाना।

कमला रूम में गई एक फोल्ड किया हुए पेपर बंडल उठाकर नीचे आई। नीचे उसकी सहेली चंचल और शालु बैठी हुई थीं। उनको देखकर कमला बोली...तम दोनों कब आए?

शालु...हम अभी अभी आए हैं जल्दी चल हमे देर हों रहीं हैं।

मनोरमा…अरे रूको चाय बन गई हैं। तुम दोनों चाय तो पीती जाओ।

चंचल…आंटी हम चाय बाद में पी लेंगे हमे देर हों जायेगी।

इतना कह तीनों चल दिया जाते हुए तीनों एक दूसरे से मजाक कर रहे थे। मजाक मजाक में चंचल बोली...कमला अगले हफ्ते से पेपर हैं फिर कॉलेज खत्म हों जायेगी। उसके बाद का कुछ सोचा हैं क्या करेंगी?

शालु…मुझे पाता हैं कमला किया करेंगी। कॉलेज खत्म होने के बाद कमला शादी करेंगी और पति के साथ दिन रात मेहनत करके ढेरों बच्चे पैदा करेंगी।

ये कहकर शालू दौड़ पड़ी कमला भी उसके पीछे पीछे उसे मरने दौड़ पड़ी कुछ दूर दौड़ने के बाद शालू को कमला पकड़ लिया ओर दे तीन धाप पीठ पर जमा दिया फिर बोली...शालु बेशर्म कहीं कि कुछ भी बोलती हैं थोड़ा तो शर्म किया कर।

शालु…मैं बेशर्म कैसे हुआ शादी के बाद पति के साथ मेहनत करके ही तो बच्चे पैदा होगा तुझे कोई और तरीका पता हों तो बता।

कमला…बच्चे पैदा करने की तुझे बड़ी जल्दी पड़ी हैं तो तू ही शादी कर ले मुझे अभी शादी नहीं करनी हैं न ही बच्चे पैदा करने हैं।

तब तक चंचल भी उनके पास पहुंच गई कमला की बाते सुन चंचल बोली...अभी तो न न कर रहीं हैं जब कोई हैंडसम लड़का शादी की प्रस्ताव ले'कर आएगा तब तेरे मुंह से न नहीं निकलेगा।

कमला…जब ऐसा होगा तब की तब देखेंगे अभी अपना मुंह बंद कर ओर चुप चाप कॉलेज चल।

शालु…ओ हो अभी से शादी के लड्डू फूट रहे हैं लगता हैं अंकल आंटी को बताना पड़ेगा आप'की बेटी से जवानी का बोझ ओर नहीं ढोया जा रहा हैं। जल्दी से इसके हाथ पीले कर दो।

शालु कहकर भाग गई ओर कमला पीछे पीछे भागते हुए बोली...रूक शालू की बच्ची तुझे अभी बताती हूं? किसे उसकी जवानी बोझ लग रहीं हैं।

ऐसे ही तीनों चुहल करते हुए कॉलेज पहुंच गए कॉलेज को बहुत अच्छे से सजाया गया था। कॉलेज के मैदान में टेंट लगाया गया था। जहां एक मंच बना हुआ था। मंच के सामने पहली कतार में विशिष्ट अतिथिओ के बैठने के लिए जगह बनाया गया था ओर पीछे की कतार में स्टूडेंट और उनके पेरेंट्स के बैठने के लिए कुर्सीयां लगाई गई थीं। टेंट के एक ओर एक गैलरी बना हुआ था। कमला उस गैलरी में चली गई वह जाकर कमला एक टीचर से मिली टीचर कमला को लेकर बहार की तरफ आई ओर एक रूम में लेकर गई कुछ वक्त बाद कमला हाथ में एक स्टेंड ओर एक चकोर गत्ते का बोर्ड जो कवर से ढका हुआ था, ले'कर टीचर के साथ बहार आई फिर गैलरी में जा'कर स्टेंड को खड़ा किया। गत्ते के बोर्ड को स्टेंड पर रख दिया फिर पास में ही खड़ी हों गई। दूसरे स्टुडेंट आते गए अपने साथ लाए स्टेंड को खड़ा कर उस पर गत्ते का बोर्ड रखकर पास में खड़े हों गए। कुछ वक्त सारे बोर्डो पर से कवर हटा दिया गया कवर हटते ही पूरा गैलरी आर्ट गैलेरी में परिवर्तित हों गया जहां विभिन्न पाकर की चित्रों का मेला लगा हुआ था फिर निरीक्षण करने वाले कुछ लोग आए जिनके हाथ में पेन और नोट बुक था। स्टैंड के पास गए ओर चित्र की बारीकी से परीक्षण किया फिर बगल में खड़े स्टुडेंट से कुछ सवाल पूछा फिर नोट बुक में कुछ नोट किया ओर अगले वाले के पास चले गए। कुछ ही वक्त में सभी चित्रों का परीक्षण करने के बाद सभी चले गए।

कुछ समय बाद स्टुडेंट के पेरेंट्स आने लग गए ओर आर्ट गैलरी में जा'कर आर्ट गैलरी में लगे चित्र का लुप्त लेने लगे उन्हीं में कमला के मां बाप भी थे जो एक एक करके सभी चित्रों को देख रहे थें ओर चित्र बनाने वाले स्टूडेंट को प्रोत्शाहित कर रहे थें। एक एक कर चित्र देखते हुए कमला के पास पहुंचे कमला के बनाए चित्र को देखकर मनोरमा कमला को गले से लगा लिया ओर बोली…कमला तूने तो बहुत अच्छा चित्र बनाया हैं तेरे चित्र ने मेरे अंदर के ममता को छलका दिया हैं।

कहने के साथ ही मनोरमा की आंखे छलक आई। जब दोनों अलग हुए मां के आंखों में आंसू देख, दुपट्टे के पल्लू से आंसू पोछा फिर कमला बोली...मां आप रो क्यों रहीं हों? मैंने कुछ गलत बना दिया जिसे आप'का दिल दुखा हों अगर ऐसा हैं तो मुझे माफ कर देना।

मनोरमा कमला की बात सुन मंद मंद मुस्कुरा दिया ओर फिर से कमला को गले से लगा लिया ओर बोली...कमला तूने कुछ भी गलत नहीं बनाया हैं तूने तो मां की ममता, वात्सल्य और स्नेह को इतनी सुंदरता से वर्णित किया हैं कि जिस मां के मन में अपर ममता, वात्सल्य और स्नेह होगी इस चित्र को देखने के बाद प्रत्येक मां रो देगी। मैं भी एक मां हूं तो मैं ख़ुद को रोने से कैसे रोक पाती।

कमला खुश होते हुए बोली…सच मां! आप'को मेरी बनाई चित्र इतनी पसंद आई।

मनोरमा…हां मेरी लाडली

कमला…मां आप'को खुशी मिली इससे बढ़कर मुझे ओर कुछ नहीं चाहिएं मेरा इस प्रतियोगिता में भाग लेने का फल मिल चुका हैं अब मुझे कुछ नहीं चाहिएं।

महेश…तुम्हें पुरुस्कार नहीं चाहिएं जिसके लिए तूमने इतनी मेहनत किया।

कमला…आप लोगों की खुशी से बढ़कर मेरे लिए ओर किया पुरुस्कार हों सकता हैं मुझे मेरी पुरुस्कार मिल चूका है अब मुझे ये दिखवे का पुरस्कार नहीं चाहिएं।

महेश….ठीक हैं जैसा तुम कहो हम टेंट में बैठने जा रहे हैं तुम चल रहीं हों।

कमला…नहीं पापा अभी मुख्य अथिति आने वाले हैं उनके देखने के बाद ही मैं आ पाऊंगी।

कमला के मां बाप खुशी खुशी चले गए। इसके बाद ओर भी बहुत लोग आए। कमला के चित्र को देखने वाले अधिकतर महिलाएं जो चित्र के आशय को समझ पाए उनकी आंखे छलक आई। कुछ वक्त बाद मंच से मुख्य अतिथि के पधारने की घोषणा हुआ फिर एक एक कर कई गाडियां कॉलेज प्रांगण में आ'कर रुके, बहुत से जानें माने लोग गाडियों से उतरे उनमें राजेंद्र और सुरभि भी थे फिर सभी एक के बाद एक टेंट के अंदर जा'कर अपनें अपने निर्धारित जगह पर बैठ गए। कुछ वक्त बैठने के बाद सभी एक एक करके उठे ओर आर्ट गैलरी की ओर चल दिया। उनके साथ कॉलेज के प्रिंसिपल और कुछ टीचर हो लिए जो उन्हें एक एक चित्र के पास जा'कर चित्र दिखाए ओर उनके बारे में बताते गए। ऐसे ही चित्र देखते देखते राजेंद्र और सुरभि कमला के बनाए चित्र के पास पहुंचे, तो सुरभि की नजर सब से पहले कमला पर पड़ी। कमला को देख सुरभि मन ही मन बोली...कितनी खुबसूरत लङकी हैं अगर ये लडक़ी मेरे घर में बहु बनकर आ गई तो मेरे घर को स्वर्ग बना देगी।
कमला को देख सुरभि मन ही मन कमला को बहु बनाने की सोच रही थीं ओर कमला की धडकने बढ़ी हुई थीं। राजेंद्र भी कमला को देख मन ही मन बोला...अरे ये लडक़ी तो मेरे देखे सभी लड़कियों से खुबसूरत हैं इसके घर वाले राजी हों गए तो मुझे रघु के लिए ओर लडक़ी देखना नहीं पड़ेगा।

कमला से नज़र हटा तब दोनों ने कमला के बनाएं चित्र को देखा। चित्र देख सुरभि कभी कमला को देख रहीं थी तो कभी चित्र को देख रही थीं। राजेंद्र भी कभी कमला को देख रहा था तो कभी चित्र को देख रहा था। चित्र को देखते देखते सुरभि की आंखे छलक आयी। कमला भी इन दोनों को देख मंद मंद मुस्करा दिया। सुरभि चित्र को बहुत गौर से देखा। जीतना गौर से चित्र को देखती उतना ही सुरभि की आंखों से आंसू छलक आ रहीं थीं।


कमला के चित्र में ऐसा क्या हैं? जो एक मां के आंखो को छलकने पर मजबूर कर दिया जानेंगे अगले अपडेट में यह तक साथ बाने रहने के लिए सभी रिडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
 
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