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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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भाग ७



वो सात फूट लम्बा आदमी भागते हुए रोहित और संतोष के पास पंहुचा और उसने रोहित और संतोष पर अपनी कुल्हाड़ी से वार करने की कोशिश तो दोनों ने उसका वार बचा लिया फिर उसने संतोष की तरफ वार किया लेकिन संतोष ने असाधारण फुर्ती दिखाते हुए उसका वार नाकाम कर दिया और उसके हाथ पर लात मार कर उसके हाथ से कुल्हाड़ी निचे गिरा दी औरन सिर्फ कुल्हाड़ी गिराई बल्कि उस आदमी की छाती मैं लात मार कर उसे कुछ फूट पीछे धकेल दिया, फिर वो व्यक्ति रोहित की तरफ मुड़ा और उसे गर्दन से पकड़ कर उठा लिया

रोहित- स...संतोष कुछ कर..!

संतोष-चिंता मत करो मैं कुछ करता हु

संतोष गठीले शारीर का मालिक था लेकिन वो भी जोर लगाकर वो भरी कुल्हाड़ी नहीं उठा पा रहा था पर कुछ कोशिशो बाद उसने ताकत का एक एक कतरा लगा कर वो कुल्हाड़ी उठाई और उस लम्बे व्यक्ति की गार्डन पर जोरदार वार किया,

‘खच्च’ की आवाज उस सुनसान जंगल मैं गूंज उठी, कुल्हाड़ी उस आदमी के कंधे से होते हुए गर्दन के पार निकल गयी, हमला करने वाली की पकड़ रोहित की गर्दन पर ढीली पड़ गयी और उसका उसका निर्जीव शारीर धरती पर धराशायी हो गया. ये पूरा घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हुआ के रोहित और संतोष बिलकुल समझ नहीं पाए के आखिर ये सब था क्या .

रोहित(खस्ते हुए) – उफ़ ये कौन था?? और हमें मरना क्यों चाहता था??

संतोष हाथ मैं कुल्हाड़ी और चेहरे पर खून लिए स्तब्ध खड़ा था

संतोष-म...म..मैंने एक आदमी का खून कर दिया! उसे मार दिया!!!!

रोहित(संतोष को झंझोड़कर)- संतोष मेरि बात सुन..तूने जो कुछ भी किया है आत्मरक्षा के लिए किया है जिसमे कुछ गलत नहीं है...समझ रहा है न तू...

संतोष-तो क्या हमें पुलिस को बता देना चाहिए....

रोहित(कुछ सोचते हुए)- नहीं....देखो ये समझदारी की बात नहीं होगी उल्टा हम भी फस सकते है

संतोष-तो फिर क्या करे??

रोहित- एक काम करते है इसके शारीर को यही पास के जंगल मैं गाड देते है, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा वैसे भी यहाँ हम दोनों और इस अनजान हमलावर के अलावा इस सुनसान जंगली इलाके मैं कोई नहीं है जिसने हमें देखो हो

संतोष-क्या ये उस समूह का हिस्सा हो सकता है जिसकी बात उस इंस्पेक्टर रमण ने की थी?? जिसकी वजह से लोग लापता हो रहे है??

रोहित-क्या पता? फ़िलहाल तो इसे उठाओ ताकि जंगल मैं इसको गाड़ा जा सके

संतोष को भी रोहित की बात सही लगी, रोहित और संतोष ने सम्लावर को उठाया और जंगल मैं ले जाने लगे, जंगल भी उस समय बड़ा शांत था, चिडियों के चहचहाने की भी आवाज नहीं आ रही थी

संतोष-ह्म्फ़!! बड़ा भरी है कम्भख्त

रोहित-हा सो तो है अच एक बात बताओ तुम इतना अच्छा लड़ना कब सीखे?

संतोष-वो...वो यहाँ से जाने के बाद करते की ट्रेनिंग ली थी कुछ समय के लिए

रोहित-और तुमने इतनी भरी कुल्हाड़ी भी उठा ली ये तो वाकई काबिले तारीफ था

संतोष-आ..हा....हा...धन्यवाद पर ये भैसा बहुत भरी है

रोहित-हा सो तो है

रोहित को संतोष का जवाब सुन कर लगा की वो बस उसे टालने के प्रयास कर रहा है लेकिन उसे इस विषय मैं सोचने का ज्यादा मौका नहीं मिला क्युकी उसी वक़्त उस शांत जंगल मैं उन दोनों को अपने अलावा किसी और की हलकी चहलकदमी कि अवाज आयी, रोहित ने संतोष की तरफ देखा तो संतोष उसका इशारा समझ गया, उन्होंने लाश वही पर छोड़ दी फिर दोनों उस आवाज की दिशा मैं बढे लेकिन वहा उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया फिर वो जब वापिस लाश लेने आये तो वह से लाश भी गायब थी और इस घटना से वो बुरी तरफ घबरा गए

संतोष(हैरान होकर)- लाश कहा गयी? इतने भरी आदमी की लाश इतनी जल्दी कौन गायब कर सकता है ?

रोहित-एक बात तो साफ़ है कोई हमें मरने का प्रयास कर रहा है और हो न हो ये वही संगठन है जिसके बारे मैं इंस्पेक्टर साहब बता रहे थे

संतोष-तुम कंपनी मैं काम करते हो और मैं बैंक मैं, इंस्पेक्टर के कहे अनुसार ये उन लोप्गो को गायब करते है जो किसी धर्मिल कार्य मैं संलग्न हो जबकि हमलोग तो साधारण नौकरी करते है हमें भला कोई क्यों मरना चाहेगा?

रोहित-दिमाग बिलकुल काम नहीं कर रहा इस वक़्त इससे पहले की कोई और जानलेवा हमला हो चलो होटल लौट चले

संतोष- लेकिन वो लाश

रोहित-लाश को भूल जाओ यार यहाँ थोड़ी देर और रुके तो शायद हम ही लाश बन जायेंगे

संतोष-ठीक है

संतोष और रोहित दोनों होटल जाने के लिए लौट ही रहे थे कि न जाने कहा से काले नकाब और काले चोगे वाले लोग जंगल से निकल कर आये और उन्हें चारो तरफ से घेर लिया, रोहित और संतोष दोनों की ही धड़कने तेज हो उठी

रोहित(घबराकर)-ये...ये तो वैसी ही वेशभूषा वाले लोग है जैसी उस व्यक्ति ने पहनी थी जो हमको बालकनी से घूर रहा था उस लम्बे पहलवान की वेशभूषा भी ऐसी ही थी, अब शक की कोई गुंजाईश नहीं है के ये वही लोग है जो इतने दिनों से यहाँ राजनगर मैं आतंक मचाये हुए है

अचानक ही दो चार लोग तेजी से रोहित और संतोष की तरफ बढ़कर आये और उन्हें पकड़ लिया, उनके हाथो मैं जैसे कोई अमानवीय शक्ति थी जिसकी वजह से दोनों मैं से कोई भी छुट नहीं पा रहा था फिर उन्ही मैं से एक व्यक्ति ने सफ़ेद रुमाल पर क्लोरोफार्म डालकर उन्हें सुंघा दिया, अब उन दोनों के लिए अपने होश कायम रखना मुश्किल था, दो मिनट के अंदर ही उनकी आँखें बोझिल हो गयी और वो बेहोशी के समुन्दर मैं धुब्ते चले गए......

रमण के कहे अनुरस चन्दन रोहित और संतोष पर नजर बनाये हुए थे उसने इन्हें जंगल की तरफ जाते देखा था और कही इतनी शक न हो इसिलिओये इनके पीछे नहीं आया था जब जब काफी समय बीतने के बाद भी रोहित और संतोष जंगल से लौट कर नहीं आये तो चन्दन को थोडा अजीब लगा और उसने इस बात की जानकारी तुरंत रमण को दी

वही दूसरी तरफ शास्त्री सदन मैं सुमित्रादेवी अपनी बहु के पूछने पर उसे राघव के बारे मैं बता रही थी कि कैसी राघव उनका बीटा नहीं है बल्कि उन्होंने अपने ससुर के कहने पे उसे गोद लिया था और कैसे उनके सरुर के कहा था के राघव के हाथ से कोई महान काम होने वह है जिसे उनकी बहु श्रुति सुन रही और जब सुमित्रादेवी की बात ख़तम हुयी तब उनका और श्रुति का ध्यान दरवाजे के पास खड़े राघव पर गया जिसने उनकी सारी बाते सुन ली थी,

सुमित्रादेवी कभी नहीं चाहती थी के राघव को इस बात का कभी पता चले के उन्होंने उसे गोद लिया था, उन्होंने बचपन से ही राघव और रमण मैं कभी कोई भेदभाव नहीं किया था बल्कि राघव तो उनके लिए रमण से भी ज्यादा लाडला था और जब उन्होंने देखा ये राघव को इस बारे मैं पता चल गया है तो उनका मन घबरा रहा था ये सोच सोच कर की अब पता नहीं राघव क्या कहेगा या उसे कैसा लगेगा

राघव की आँखें पनिया गयी थी उसे समझ नहीं आ रहा था के किस बात का दुःख मनाये, वो अनिरुद्ध शास्त्री और सुमित्रादेवी का बेटा नहीं है इस बात का या अपने दादाजी की इच्छा पूर्ण न कर सकने का

राघव बस आँखों मैं पानी लिए सुमित्रादेवी को देख रहा था और फिर वो वह से निकल गया और जाते जाते अपनी माँ से ये कह गया के उसे कुछ समय अकेला रहना है

राघव को वह से ऐसे जाता देख सुमित्रादेवी की भी आँखें झलक आयी,

राघव वह से निकल कर सीधा अपने दादाजी के कमरे मैं आया, अपने दादाजी की मृत्यु के बाद वो पहली बार इस कमरे मैं आया था, यही वो जगह थी जहा उसके दादाजी उसे अभ्यास कराते थे, फिलहाल सुमित्रादेवी की कही बाते सुनने के बाद राघव का दिमाग फटा जा रहा था एक साथ कई ख्याल दिमाग मैं घूम रहे थे तभी उसकी नजर अपने दादाजी की तस्वीर पर पड़ी और उसके मन मैं ख्याल आया की अब वही राह दिखायेंगे जिन्होंने उसे इस घर मैं आया है और राघव अपने दादाजी की तस्वीर के सामने धयान की मुद्रा मैं बैठ गया, राघव ने आज कही समय बाद धयान लगाया था या हु कहे उसके दादाजी के जाने के बाद शायद पहली बार और जब राघव धयान्स्त होता तो उसे समय का भान नहीं रहता था

धयान करने से राघव का दिमाग शांत होने लगा और उसके दिमाग मैं एक सफ़ेद रौशनी कौंध उठी और उसके मानसिक पटल पर एक छवि उभरने लगी............
Wah adi.. kya action scene create kiya hai ju ne.. Superb :yourock:
are ye kya indono ko padhkar le gaye wo logis.. :cold:
yaar ye raman kya kar raha hai.. bachane kyun nahi jata...
hmm... to raghav ko pata chal sab kuch...
waise is sach ke baad shayad ab parivartan aaye usme.. ya phir aa gaya hai shayad.. yeh jo dhyan mein baitha hai iske jariye shayad wo jaan paaye ki uska karm kya hai.. aur shayad janm ka rahasya bhi udghatan ho..
Khair update kaafi dilchasp tha
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills Adirshi saheb :applause: :applause:
 
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