अंकित कहानी पढ़ चुका था और कहानी पढ़ने के बाद जो भाव अंकित के चेहरे पर नजर आ रहे थे वही भाव उसकी मां के चेहरे पर नजर आ रहे थे दोनों कहानी को पढ़कर मंत्र मुग्ध हो चुके थेदोनों की आंखों में वासना का तूफान नजर आ रहा था दोनों एक दूसरे को एक तक देख रहे थे ऐसा लग रहा था कि जैसे दोनों के बीच अभी कुछ हो जाएगा कहानी की गर्माहट दोनों बदन को उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुकी थी,,, दोनों की सांसों की गति एक दूसरे की सांसों की गति से मानो जैसे आगे बढ़ने की शर्त लगाई हो दोनों की सांस बड़ी तेजी से चल नहीं रही थी बल्कि दौड़ रही थी। अंकित के हाथों में वह गंदी किताब थी जिसने मां बेटे दोनों को आपस में खुलने में काफी मदद किया था,,, अंकित को समझ में नहीं आ रहा था कि इस समय का क्या करें जिस तरह के दोनों के हालात थे अंकित के मन में हो रहा था किसी समय अपनी मां को अपनी बाहों में भर ले और उसके होठों पर उसके गालों पर चुंबनों की बौछार कर दें,,, लेकिन ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
दोनों के बीच एकदम से खामोशी छा गई थी,,, सुगंधा के तन-बदन में आग लगी हुई थी सुगंधा अपने मन में यही सोच रही थी कि, जिस तरह से बाथरूम में घुस किया था काश उसका बेटा भी उसी तरह की हिम्मत दिखा कर उसे पलंग पर पटक कर चोद डाले तो मजा आ जाए,,,, यही सोच कर उसकी बुर पानी छोड़ रही थी उसका खुद का मन कर रहा था कि इस समय अपने बेटे को लेकर पलंग पर पसर जाए लेकिन यह भी उसके मन की केवल सोच थी जिसे अंजाम देने में उसे डर लग रहा था,,, दोनों के खामोशी के बीच अंकित की आवाज आई।
क्या सच में इन दोनों ने ऐसा ही किया होगा जैसा की किताब में लिखा हुआ है।
बिल्कुल किताब में सही लिखा हुआ है मैं कह रही थी ना दोनों के बीच जो भी होगा हालात को देखते हुए होगा,,
मेने कुछ समझा नहीं हालात को देखते हुए से मतलब,,,,(अंकित हैरान होते हुए अपनी मां से पूछा)
मैं तुझे कही थी नादोनों के बीच अगर आगे कुछ भी होता है तो हालात को देखते हुए होगा हालात का मतलब की दोनों के बीच घर के अंदर किस परिस्थिति से दोनों गुजर रहे हैं,,,।
अभी भी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है सीधी शादी भाषा में समझाओ।
देख मैं तुझे बताती हूं बरसों सेवह औरत अकेली थी और अपने बेटे के साथ ही घर में रहती थी,,,, इसका मतलब साफ करके वह बरसों से अपने पति के प्यार से दूर थी,,,, जिसके चलते उसके बेटे ने उसके हालात का फायदा उठाते हुए,,बाथरूम में घुस गया था क्योंकि वह अपनी मां को गंदी हरकत करते हुए देख लिया था और वह समझ गया था कि उसकी मां के मन में क्या चल रहा है,,,,।
अच्छा तो वह पेशाब करते हुए हरकत कर रही थी अपनी उंगली से वही ना,,,,(अंकित भी याद करते हुए बोला)
हां वहीउसकी हरकत देखकर उसका बेटा समझ गया था कि उसकी मां को क्या चाहिए,,,,।
क्या चाहिए,,,?(जानबूझकर हैरान होने का नाटक करते हुए बोला)
इतना समझ में नहीं आता मर्द का साथ जो उसे सुख दे सके उसे खुशी दे सके जो एक पति देता है उसे सुख के लिए वह भी तड़प रही थी तभी तो बाथरूम के अंदर हरकत कर रही थी,,,।
ओहहह,,,, मतलब कि उसके बेटे को समझ में आ गया था इसलिए उसने इतना बड़ा कदम उठाया,,,।
हां इसीलिए उसने इतना बड़ा कदम उठाया और नतीजा सामने है,,,, शुरू शुरू में उसकी मां इंकार करती रही उसे यह सब गलत होने की दुहाई देती रहीं लेकिन अंदर से वह भी यही चाहती थी,,,, और फिर वह भी मान गई,,,,।
बाप रे मेरा तो माथा ठनक रहा है,,,, मां बेटे के बीच में भी यह रिश्ता संभव है पहली बार देख रहा हूं,,,,।
मैं भी तो पहली बार ही तेरे मुंह से सुन रही हूं कहानी की किताब को नहीं तो मुझे नहीं मालूम था की मां बेटे के बीच में भी ऐसे रिश्ते भी होते होंगे तब तो ऐसे ना जाने कितने घर होंगे और उनकी घर की चार दिवारी के अंदर इसी तरह के रिश्ते पनप रहे होंगे मां बेटे दोनों मजा ले रहे होंगे,,,।
तो क्या सच में यह हो सकता है,,,।
बिल्कुल हो सकता है मैं तुझसे कही थी ना की कहानी ऐसे ही नहीं लिखी जाती,,, सच्चाई छुपी होती है तभी उसे सच्चाई को कलम के जरिए किताब में लिखी जाती है,,,,,,,

बाप रे गजब की कहानी थी,,,,और वैसे देखा जाए तो कहानी के हालात और हम दोनों के हालात एक जैसे ही हैं,,,,।
(अपने बेटे की यह बात सुनकर सुगंधा के तन-बदन में भेजने की लहर उठने लगी और वह मुस्कुराते हुए अपने बेटे की तरफ देखते हुए बोली,,,)
ओहहहह कहीं तेरा इरादा भी उन दोनों की तरह तो नहीं है,,,।
नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो सिर्फ बता रहा था कि वह भी वर्षों से अपने पति के बगैर रही थी और हम दोनों भी पापा के बिना बरसों से रह रहे हैं,,,।
हम दोनों नहीं, तृप्ति भी है,,,
हां वह तो है लेकिन इस समय तो केवल हम दोनों ही हैं,,(अंकित हिम्मत करके अपने मन की बात अपनी मां से बता रहा था वह चाहता था कि उन दोनों के बीच भी कहानी वाली घटना हो जाए)
तुझे क्या लगता है अंकित कि मैं भी उस औरत की तरह हूं क्या,,,, एकदम निर्लज्ज,,,,
नहीं नहीं मैं ऐसा तो नहीं कह रहा हूं,,,।
नहीं तेरे कहने का मतलब क्या है क्या मैं भी उसे औरत की तरह गंदी हरकत करती हूं कहीं ऐसा तो नहीं कहानी पढ़कर तो भी मुझ पर उस लड़के की तरह आजमाना चाहता हो।
यह कैसी बातें कर रही हो मम्मी मैंने ऐसा तो नहीं कहा,,,,।
( अंकित अच्छी तरह से समझ रहा था कि उसकी मां केवल दिखावा कर रही थी, नाटक कर रही थी अंदर से वह क्या चाहती है यह अंकित अच्छी तरह से भली-भांति जानता था,,,,)
चाहे जो भी हो लेकिन कहानी पढ़ने के बाद मुझे तेरा इरादा कुछ अच्छा नहीं लग रहा है,,,,।
चलो कोई बात नहीं,,(कुछ देर तक वहीं बैठे रहते हुए अपनी मां की बात सुनकर कुछ सोचने के बाद इतना के करवा तुरंत उस कीताब को लेकर खड़ा हो गया,,,लेकिन उसके खड़े होने के साथ-साथ उसका लंड भी पूरी तरह से खड़ा हो गया था इसका एहसास उसके पेट में बने तंबू को देखकर अच्छी तरह से समझ में आ रहा था और उसके पेट में बने तंबू पर सुगंधा की नजर पड़ चुकी थी,,,, सुगंधा तो देखते ही रह गई सुगंधा कुछ बात का एहसास हो रहा था की कहानी पढ़ने के बाद उसके बेटे की क्या हालत हो रही है जब उसकी खुद की हालत खराब हो चुकी थी तो उसके बेटे के बारे में क्या कहना,,,, बुर लगातार पानी पर पानी छोड़ रही थी,,,, जिससे उसकी चड्डी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। जिसके गीलेपन की वजह से वह अपने आप को असहज महसूस कर रही थी। और उसे अपनी चड्डी बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था) मैं इस किताब को रख देता हूं और अब ईसे हाथ नहीं लगाऊंगा,,, क्योंकि मुझे लगता है कि,,,,,(अलमारी खोलकर उसमें किताब रखते हुए,,,, लेकिन वह अपनी बात खत्म कर पता है इससे पहले ही सुगंधा बोल पड़ी)
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क्या लगता है तुझे,,,?
मुझे लगता है कि,,,(धीरे से अलमारी बंद करके अलमारी का सहारा लेकर खड़े होकर बड़े आराम से)अगर इस किताब को पढ़ते रहे तो फिर हम दोनों के बीच भी कुछ हो जाएगा,,,,,
(इस बार अंकित की बात सुनकर सुगंधा कुछ बोल नहीं पाई क्योंकि सुगंधा को भी यही लग रहा था और वह खुद ऐसा चाहती थी लेकिन अपने बेटे से खुलकर बोलने में शर्म महसूस हो रही थी इस समय सुगंधा की नजर अपने बेटे के पेंट में बने तंबु पर थी और इस बात का एहसास अंकित को भी हो रहा थाअंकित भी यही चाहता था इसलिए अंकित अपने पेंट में बने तंबू को छुपाने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रहा था वह एक तरह से अपनी मां को यह जताना चाहता था कि देखो तुम्हारी वजह से मेरे लंड की हालत क्या हो गई है,,,, और सुगंधा अपने मन मेंअपने बेटे के पेट बने तंबू को लेकर कल्पना कर रही थी कि पेट के अंदर उसके बेटे का लंड कितना भयानक लग रहा होगा उसकी लंबाई मोटाई जब पेंट के अंदर इतना गजब का दिखाईवदे रहा है तो पूरी तरह से नंगा हो जाने के बाद तो बिना चोदे ही यह उसकी बुर से पानी निकाल देगा। अपने बेटे के तंबू को देखते हुए वह गहरी सांस लेते हुए बोली,,,)

वैसे तो तू सच कह रहा है,,,, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता,,, भले ही हम लोगों की परिस्थिति कहानी की तरह है लेकिन इन सबके बावजूद भी मेरी मर्यादा की डोरी तेरी कच्ची नहीं है कि जैसे हालात में टूट जाए मेरे माता-पिता ने मुझे जो संस्कार दिए हैं उस पर मैं हमेशा खरी उतरूंगी,,,,।
(अपनी मां के मुंह से अपनी मां का पिता के द्वारा दिए गए संस्कार की बात सुनते ही अंकित अपने मन में बोला तुम्हारे संस्कार और संस्कारी घर,,, और वाह रे तुम्हारी मांतुम्हारी मां के बारे में शायद तुम्हें पता नहीं है अगर मैं उसके बारे में बता दूं तो शायद तुम भी साड़ी उठाकर मेरे लंड पर अपनी बर रगड़ने लगोगी,,,, तुम्हें नहीं मालूम है कि तुम्हारी मां रात भर रंडी की तरह मुझसे चुदवा कर घर गई है,,,,लेकिन यह बात वह अपने मन में ही कह रहा था अपनी मां के सामने कहने में उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी,,,, अपनी मां की बात सुनने के बावजूद भी उसे उसकी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि वह जानता था कि जब उसकी मां की मांमर्यादा में इतनी कच्ची है कि अपने ही नाती के साथ है मजा कर सकती है तो फिर उसकी बेटी तो अभी भी पूरी तरह से जवानी से भरी हुई है वह भला कैसे अपने आप को संभाल कर रख पाएगी,,,,,)
मैं तो यही चाहता हूं कि हम दोनों के बीच ऐसा कुछ भी ना हो,,,, वरना अगर ऐसा कुछ हो गया तो हम दोनों के बीच मां बेटे का पवित्र रिश्ता ही नहीं रह जाएगा,,,।
हां तु सच कह रहा है,,,,।(ऐसा कहते हुए वह गहरी सांस लेने लगी और अपने मन में सोचने लगी कि यह क्या हो गया गंदी किताब की गंदी कहानी के माध्यम से वह अपना निशाना साधना चाहती थी,,, लेकिन बातो का रुख एकदम से दूसरी तरफ घूम गया था,,,, जिसका उसे पता नहीं चला था औरयह सब उसके ही कारण हुआ था इसलिए उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा थाऔर वह अपने आप से ही बोल रही थी की बड़ी सती सावित्री बनाने चली है संस्कार का चोला पहनने चली है,,, ले अब बन जा संस्कारी,,,, खुद से ही खुद की दुश्मन बनी हुई है इतना अच्छा खासा चल रहा थाऐसा नहीं की थोड़ी हिम्मत दिखा कर खेल को आगे बढ़ाने में मदद करें लेकिन खेल को एकदम से दूसरी तरफ घुमा दे जहां पर सिर्फ वही रोज की घीसी पिटी जिंदगी है संस्कारों की चादर है मर्यादा की दीवार है जहां से बाहर निकलना नामुमकिन है,,,,, सुगंधा को अपने आप पर गुस्सा आ रहा था,,, लेकिन अंकितजानता था कि उसकी मां बिल्कुल भी मर्यादा में नहीं रह पाएगी सिर्फ वह बातें कर रही है।
शाम हो चली थी सुगंधा आईने में अपने आप को देखकर बालों को संवार रही थी उसे बाजार जाना था,,, लेकिन इस समय उसके बदन में उत्साह नहीं था,,, क्योंकि अपने चरित्र को ऊंचा बात कर उसने खुद ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार दी थी लेकिन अब अपनी करनी को उसे ठीक करना था एक बार फिर से गाड़ी को पटरी पर चढ़ाना था,,,, इसलिए वह अपने बेटे को आवाज लगाने लगी।