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आप सभी ko jaise maine kaha tha 05 Oct 2025 ke baad update de paunga main hajir hu aur jaldi hi agla update aane wala hai.
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Zabardast start bhai...lekin iske hero kaun h...kamal???
But ek character toh strong rakhoThanksfor compliment Bro Yashu7979 Multi star story, everyone having own strength
बहुत ही शानदार लाजवाब और अद्भुत मनमोहक मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गयाअध्याय- 4
नए किस्सो का आरम्भ
पिछले अपडेट में आपने देखा कमल का क्या हाल हुआ जब उसकी छोटी चाची ने उसे किस किया और जब उसने लेखा चाची की गांड देख के अपने लंड को हिलाया
अब आगे
इन सब से दूर कहीं किसी खेतों में घुसने से पहले वाले रोड में जहाँ अभी फसल काटने में कुछ दिन बचे है आदमी औरत से
“कहा जा रही हो बहू ”
“कहीं नहीं बाबू जी मैं आपके पास ही आ रही थी खाना लेके”
“क्यों आज कोई बच्चे घर पे नहीं थे क्या आज सभी अपने कॉलेज निकल गए क्या”
“हा सभी बच्चे कॉलेज चले गए पर कमल था घर में मैं उसको ढूंड रही थी पर कहीं दिखा ही नहीं”
जी हा ये आदमी और औरत कोई और नहीं बल्कि हमारे अपने घर के मुखिया रमेश चंद मिश्रा जी और घर की बड़ी बहू चंचल देवी है।कुछ अंश चंचल देवी की जुबानी
ससुर जी-“और बाक़ी छोटी बहुये उनमे से किसी को भेज देती तुमने क्यों आने की तकलीफ़ की नेहा को भेज देती वो तो घर पे ही होगी”
मैं -“हा मैंने भी सोचा पर आपको तो पता ही है मुझे खेत आना कितना पसंद है और वैसे भी नेहा खाना बना रही थी बच्चों के लिए, लेखा तो दुकान के निकल गई देवर जी का फ़ोन आया तो और भगवती सिलाई में व्यस्त थी इसलिए मुझे लगा कि मैं ही चली जाती हूँ क्यों किसी को परेशान करना।
ससुर जी -“हा बहू मुझे पता है तुम्हें खेत आना कितना पसंद है अब आ ही गई हो तो खाना लेके पहुँचो मचान की तरफ़ मैं आता हूँ।”
मैं - “ठीक है बाबू जी”
मैं वहाँ से सीधे खेत की तरफ़ चलने लगी जहाँ मचान बना हुआ था। मचान एक बड़े से पेड़ के बगल में बना हुआ था, जिसपे ऊपर बैठने के लिए बना था दो तरफ़ से खुला हुआ और दो तरफ़ से बंद था। खाना खाने के लिए हम मचान के नीचे की जगह तो इस्तेमाल करते है दोपहर के समय भी वहाँ हवा ठंडी ठंडी चलती है।
वहाँ पहुँच के मैंने बाबू जी के लिए खाना निकालने लगी थी ताकि वो आए और खाना शुरू कर सके पर उससे पहले मैं प्याज को काटने के लिए कुछ लाना भूल गई थी,
तो मचान के दूसरी तरफ़ पम्प चालू बंद करने के लिए बनाये कमरे में चली गई वहाँ जाके देखने लगी कुछ मिल जाए जिससे मैं ये प्याज काट सकू पर तभी मेरी नज़र ट्यूबवेल कि तरफ़ गई जहाँ मेरे ससुर जी पैर हाथ धो रहे थे उन्होंने अपने पजामे और ऊपर के कपड़े को निकाल दिया था,
बस चड्डी और बनयान पहन रखे थे और अच्छे से पैर हाथ धोने में व्यस्त थे अचानक मुझे उनके चड्डी में झूलता बड़ा सा कुछ दिखा मैं समझ गई वो बाबू जी का लंड है पर कुछ और सोचती उससे पहले बाबू जी वहाँ से हटने लगे उन्होंने अपने पैर हाथ धो लिये थे फिर अपने गमछे से हाथों और पैरों को पोछने लगे और उसी गमछे को पहन के वापस मचान की तरफ़ जाने लगे।
मैं भी जैसे तैसे जल्दी जल्दी वहाँ रखी हशिए से प्याज को काट के मचान के तरफ़ जाने लगी, वहाँ पहुँच के मैंने अपने ससुर जी को खाना परोसने लगी साथ ही मेरी नज़र उनके गमछे के ऊपर भी बनी हुई थी, मैं मन में सोचने लगी क्या बाबू जी का बाकी समय इतना ही बड़ा झूलता रहता है तो जब उनका खड़ा होता होगा तो कितना बड़ा होता होगा, और अपने विचारों से बाहर आते हुए खाना देने के बाद ही मैंने बाबू जी से कहा
मैं-“बाबू जी खेतों में गेहूं के अलावा उस दूर वाले खेत में क्या क्या लगाएं है मैं ज़्यादा गई नहीं हूँ वहाँ ”
ससुर जी -“बहू वहाँ तो कुछ सब्जिया लगायी है पर अभी सब सब्जी छोटे है”
मैं -“क्या क्या लगाये है बाबू जी”
ससुर जी -“ज्यादातर तो वही लगे है जो मेरी बहुओं और बच्चों को पसंद है”
मैं - “फिर तो वहाँ जाके देखना पड़ेगा बाबू जी शायद अभी मेरे काम की मतलब घर के लिए कुछ सब्ज़ी मिल जाए”
ससुर जी -“हा क्यों नहीं बस ये खाना हो जाए फिर चलता हूँ वहाँ तुमको लेके”
मैं -“ठीक है बाबू जी”
चंचल अपने ही ख्यालों में कुछ सोचते हुए नज़दीक के खेतों में वहाँ जाके गेहू को देख रही थी,
और यहाँ उसके ससुर जी खाना खाते हुए एक नजर अपनी बड़ी बहू चंचल पे डालते है, साथ ही ये सोच उनके मन में आने लगता है की मेरी बड़ी बहुत कितनी अच्छी है खाना लेके आने के लिए कोई नही था तो ख़ुद लेके आ गई फिर अनायास उसकी नजर अपनी बहू के साड़ी के ऊपर से मटकती हिलती डोलती बड़ी सी गांड पे चली गई, हालाँकि नेहा की गांड को उसने कई बार देखा पर आज बड़ी बहू की गांड, फिर जब चंचल मुड़ी तो नजर उसके चूचो पर पड़ गई,
रमेश चंद ने अपने दिमाग़ को झटका ये मैं क्या देख रहा हूँ पर ना चाहते हुए नज़र जा ही रही थी खाना खाते हुए उसके मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न होने शुरू हों गये जैसे क्या मुझे इस तरह देखना चाहिए, नहीं वो मेरी बहू है, क्या हुआ बहू है तो जब नेहा का देख सकता हूँ तब अपने बाकी बहुओं का क्यों नहीं, थोड़ी देर बाद
चंचल वहाँ से अपने ससुर के पास आते हुए पूछती है,
चंचल-“ बाबू जी खाना खा लिए आपने”
रमेश चंद-“ हा बहू लो बर्तन समेट लो फिर उस खेतों की तरफ़ चलते है जहाँ से तुम्हें शायद कुछ काम की सब्ज़ी मिल जाए”
चंचल- थोड़ी सकपकाई और बोली “ठीक है बाबू जी”
रमेश चंद अपनी बहू को बर्तन समेटते हुए देख रहा था आज पहली बार इतने क़रीब से उसने चंचल की गांड और गदराए हुए बदन को गौर किया था, फिर चंचल ने कहा-“चले बाबू जी”
रमेश चंद-“हा चलो हमे इस रास्ते से होते हुए उस खेत की तरफ़ चलना है बहू” एक खेत की तरफ़ इशारा करते हुए फिर से कहता है “बहू तुम आगे चलो मैं पीछे से रास्ता बताता हूँ”
चंचल ने मन में कुछ सोच कर हँसी और रास्ते से होते हुए अपने ससुर के आगे आगे चलने लगी।
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ठीक जब चंचल अपने ससुर के लिए खाना लेके निकली उससे थोड़े देर पहले घर में चंचल पूछती है लेखा से
चंचल -“लेखा बाबू जी तो आज दोपहर खाने के लिए शायद नहीं आयेंगे उन्होंने माँ जी को बोला था खाना किसी के हाथ भेजा देना, अगर तुम कुछ काम नहीं कर रही खाली होगी तो क्या तुम चली जाओगी”
लेखा -“दीदी मैं चली तो जाऊ मुझे बाबू जी के लिए खाना ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है पर आपके देवर जी ने मुझे अभी दुकान में बुलाया है। उनका फ़ोन आया था”
चंचल -“ठीक है कोई बात नहीं मैं ख़ुद चली जाती हूँ वैसे भी हफ़्ते भर से ज़्यादा दिन हो गए खेत गई भी नहीं हूँ।”
लेखा-“ठीक है दीदी मैं जा रही हूँ हो सकता है मैं आपसे शाम को मिलूँगी।”
चंचल-“ठीक है।”
घर से निकल के लेखा जल्दी जल्दी अपनी किराने की दुकान की तरफ चली जाती है वहाँ पहुँच के देखती है दुकान का शटर हल्का बंद है वो सोच में पड़ जाती है की मुझे बुला के उनके पति दुकान के सामने नहीं दिख रहे और शटर भी आधा बंद है तो उसे ढूँड़ने वो अंदर जाती है,
और थोड़े अंदर जाने के बाद वो देखती है उसका पति एक चेयर में बैठा मोबाइल में कुछ देख रहा है वो ये देख के गुस्सा भी हो जाती है और खुश भी फिर कुछ सोच कर अपने पति से कहती है,
लेखा -“आपको कोई और जगह नहीं मिली ये सब करने के लिए”
पीताम्बर जैसे ही ये आवाज़ सुनता है वो डर की वजह से घबरा जाता है और कहता है,
पीताम्बर-“पागल है क्या, ऐसे अचानक आके कोई डराता है भला ”
दरअसल पीताम्बर वहाँ चेयर में बैठे मोबाइल में पोर्न वीडियो चालू करके एक हाथ में लिए और दूसरे हाथ से अपने 7 इंच के लंड को हिला रहा था थोड़े ही देर हुआ था तभी लेखा ने उसे डरा दिया था।
लेखा-“डरा नहीं रही मैं आपको बता रही हूँ और वैसे भी आपको क्या जरूरत पड़ गई अपने लंड को इस तरह से हिलाने की” फिर लेखा एक हाथ से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।
पीताम्बर-“आहह तुम्हारे छूते ही मुझे लंड में और भी कड़क महसूस होता है मुझे, मैंने इसलिए तो तुम्हें जल्दी दुकान आने को कहा था”
लेखा-“तो सीधे बोल दिए होते ना, आज तीन दिन तो वैसे भी हो गये मेरी चूत में लंड गए” फिर जोर जोर से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।
पीताम्बर-“तुम्हें तो पता है आहह आराम से मेरी जान दिक्कत मेरे लंड में नहीं मेरे पैरों में है, मैं तुम्हारे ऊपर नहीं आ सकता पर तुम मेरी गोद में बैठ के मजा तो पूरा लेती हो ना।”
लेखा-“ हा हा ठीक है और हिलाना जारी रखती है”
फिर लेखा का पति मोबाइल को बंद करके बगल में रख देता है और लेखा के चूचे को दबाते हुए उसके ब्लाउज को खोलने लगता है, यहाँ लेखा भी पीछे नहीं हट रही थी वो भी अपने पति के पैंट को ऊपर से खोलने लगी जिससे लंड और अच्छे से बाहर दिख सके
पीताम्बर-“आहह मेरी जान पता नहीं क्यों जब भी मैं तुम्हारे चूचे को दबाता हूँ लगता है पूरा दबा के खा जाऊ, इतने साल हो गए पर तुम्हारे चूचे हर बार पहले से और ज़्यादा बड़े लगते है”
और चूचों को मुह में लेके चूसने लगता है, वो एक हाथ में चूचे तो दूसरे में अपने मुह को लगा के दोनों को बदल बदल के चूसने लगता साथ ही अब लेखा को और ज़्यादा मजा आ रहा था अपने पति के द्वारा चूचे चूसने से,
लेखा-“आह और जोर के दबा दबा के चूसिए ना जी आह आह उम्म उम्म” कितना अच्छा लगता है जब आप इसे अपने मुंह से चूसते है थोड़ा जोर लगा के काटिए आहहह मां और एक हाथ से उसके लंड को और तेजी से हिलाने लगती है,
पीताम्बर-“आह मेरी जान लेखा 40 की उमर में आज भी तुम असली मजा देती हो” और एक हाथ ले जाके उसके गांड पे मार देता है।
लेखा चिहुक उठती है अपनी चूची से पति का हाथ और मुह हटा के वो नीचे बैठते हुए उसके लंड को पकड़े हुए कहती है,
लेखा-“मज़ा तो इसने भी बहुत दिया है और आज भी उसी तरह दे रहा है पर रोज लेने को तरसती हूँ।”
और धीरे धीरे लेखा का सर अपने पति के लंड की तरफ़ झुकती चली जाती है, पीताम्बर अपनी बीवी को लंड के नज़दीक जाते देख उससे रुका नही जाता और लंड को एक बार ठुमका मार देता है,
लेखा ये देखकर हस्ती है और अपने पति के आँखो में देखते हुए उसके लंड के सूपाड़े को अपने जीभ से छूने लगती है उसके पति की आह निकल जाती है,
पूरे कमरे में कामवेदना संचार होने लगती है सब चीजों से बेखबर एक पत्नी अपने पति को एक शारीरिक सुख देने जा रही थी पर उन्हें क्या पता था एक तूफ़ान थोड़े देर में यहाँ आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है कुछ दिनों में,
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दोपहर का समय कहीं शोर गुल तेज़ी से हो रहा था, हर कोई एक दूसरे से बात करने में लगे थे, कोई मोबाइल तो कोई किताबे लेके बैठा था, कुछ लड़कियां किसी के बारे में बाते कर रही थी, थोड़ी देर घर की बाते चली फिर किसी ने एक ऐसी बात कहदी जिसे सुन बाकी दोनों लड़कियां उसे खा जाने वाली नजरों से देखने लगी, ये सब हो रहा था गर्ल्स कॉलेज में जहाँ कैंटीन के पास ही गार्डन में बैठे ये तीनो लड़कियाँ पूजा, रिंकी और पिंकी
पूजा-“रिंकी तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो जो भी तुम कह रही मैं इसपे नहीं मानती”
पिंकी-“हा दीदी मुझे भी नहीं लग रहा है ऐसा भी होता होगा”
रिंकी-“रुको तुम लोगो को मैं वो किताब ही दिखा देती हूँ जिसे मैंने आज सुबह ही कमल भैया के कमरे में रखी किताबों के बीच से उठाया था।”
और रिंकी उस किताब के पन्नो को पलटते हुए उसमे छपे कुछ तस्वीरों को दिखाने लगती है, ये वही किताब है जिसे कुछ दिन पहले कमल ने अपने कॉलेज के दोस्तों से अनिमेष को दिखाने के लिए लाया था और अपने रूम में किताबों के बीच रख के छुपाना भूल गया था,
पूजा-“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कमल भैया ऐसी किताब भी रखते होंगे देखो इसमें कितनी नंगी तस्वीरे है।”
पिंकी-“हाँ दीदी कितनी अजीब अजीब सी है देखो कैसे ये औरत अपनी वो दिखा रही है।”
पूजा और रिंकी एक साथ हसने लगती है और पूजा पिंकी से कहती है,
पूजा-“ये वो क्या होता हैं जो हमारे पास है वो भी उसी के पास है और ये औरत अपनी वो नहीं अपनी चूचे और चूत दिखा रही है”
ये बोलके फिर से पूजा और रिंकी हसने लग जाती है, उनकी ऐसी खुली बाते सुनके पिंकी को थोड़ा अजीब भी लगता है पर कहीं ना कहीं उसके शरीर में एक सनसनाहट सी होने लगती है, जैसे किसी ने उसके बदन को छू लिया हो,
रिंकी-“पर दीदी भैया को ऐसे किताबे पड़ने या देखने की जरूरत क्यों पड़ गई”
पूजा-“बिल्कुल पागल है पिंकी को छोड़ तुझे तो पता होना चाहिए की जब जवानी में किसी चीज की लत लग जाती है तो उसके लिए इंसान क्या नहीं करता है, बस इसी तरह कमल भैया क्या मुझे तो लगता है हमारे सारे भाई एक जैसे ही है और ग़लत आदतें सीख गए है”
रिंकी-“तो क्या भैया लोग वो सब भी” इतना कहके चुप हों जाती है,
पिंकी-“दी आप लोग किस बारे में बात कर रहे मुझे भी थोड़ा अच्छे से बताओ”
पूजा-“हा रिंकी तू सही कह रही है मुझे भी ऐसा ही कुछ लगता है सभी पर हमे नजर रखके देखना होगा जब वो घर पे रहते है”
रिंकी-“पर दीदी ये ग़लत नहीं होगा इस तरह उनपे नजर रखना”
पूजा-“ग़लत बात तो है पर क्या तू ये नहीं जानना चाहती की कमल भैया ये किताब अपने पास क्यूँ लाये और उसे देख के क्या करने वाले है”
रिंकी-“हा ये देखना बड़ा मजे दार होगा की वो इस किताब को देखके क्या करेंगे।”
रिंकी-“दीदी अब चलो बहुत देर से हम यहाँ बैठे है मैं तो क्लास चली बाक़ी बाते आप लोग घर पे कर लेना।”
तीनो बहने अपने अपने क्लास के तरफ़ चल पड़ती है, फिर शाम के जैसे 4 बजते है कॉलेज से ऑटो लेके अपने घर की तरफ़ निकल जाती है,
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धन्यवाददोस्तों आज के लिए इस अपडेट में इतना ही, मिलते है अगले अपडेट में और जानेंगे की क्या होगा चंचल और उसके ससुर रमेश चंद के बीच खेतों की तरफ़, ऐसा कौनसा तूफ़ान आने वाला है लेखा और पीताम्बर के सामने जिससे उनकी ज़िंदगी बदलने वाली है और तीनो बहने मिलके ऐसा क्या करने वाली है घर पहुँच के अपने भाइयों पे नजर रखने के लिए।
Very nice start dear insotterTrailer of story
आज बहुत देर से उठा था | सायद रात की दारू उतरी नहीं थी | ओर सर भी भारी लग रहा था पिछले कुछ दिनों से उसकी मुसकेलिया थम ने का नाम नहीं ले रही थी | वो कितना भी कुछ करले हालत बद से बदतर होते जा रहे थे | इसी के चलते उसने दारू ओर सिगरेट की लत भी लगा ली थी | आज जब वो उठा तो बस यही दोहराता रहा वो मुझे मार डालेगी | खैर ये बात अनुज की अनुज मिश्रा | जैसा उसका नाम था वैसा ही उसका रिश्ता | वो घर मे सबसे छोटा था |
Sexy' updateअध्याय- 4
नए किस्सो का आरम्भ
पिछले अपडेट में आपने देखा कमल का क्या हाल हुआ जब उसकी छोटी चाची ने उसे किस किया और जब उसने लेखा चाची की गांड देख के अपने लंड को हिलाया
अब आगे
इन सब से दूर कहीं किसी खेतों में घुसने से पहले वाले रोड में जहाँ अभी फसल काटने में कुछ दिन बचे है आदमी औरत से
“कहा जा रही हो बहू ”
“कहीं नहीं बाबू जी मैं आपके पास ही आ रही थी खाना लेके”
“क्यों आज कोई बच्चे घर पे नहीं थे क्या आज सभी अपने कॉलेज निकल गए क्या”
“हा सभी बच्चे कॉलेज चले गए पर कमल था घर में मैं उसको ढूंड रही थी पर कहीं दिखा ही नहीं”
जी हा ये आदमी और औरत कोई और नहीं बल्कि हमारे अपने घर के मुखिया रमेश चंद मिश्रा जी और घर की बड़ी बहू चंचल देवी है।कुछ अंश चंचल देवी की जुबानी
ससुर जी-“और बाक़ी छोटी बहुये उनमे से किसी को भेज देती तुमने क्यों आने की तकलीफ़ की नेहा को भेज देती वो तो घर पे ही होगी”
मैं -“हा मैंने भी सोचा पर आपको तो पता ही है मुझे खेत आना कितना पसंद है और वैसे भी नेहा खाना बना रही थी बच्चों के लिए, लेखा तो दुकान के निकल गई देवर जी का फ़ोन आया तो और भगवती सिलाई में व्यस्त थी इसलिए मुझे लगा कि मैं ही चली जाती हूँ क्यों किसी को परेशान करना।
ससुर जी -“हा बहू मुझे पता है तुम्हें खेत आना कितना पसंद है अब आ ही गई हो तो खाना लेके पहुँचो मचान की तरफ़ मैं आता हूँ।”
मैं - “ठीक है बाबू जी”
मैं वहाँ से सीधे खेत की तरफ़ चलने लगी जहाँ मचान बना हुआ था। मचान एक बड़े से पेड़ के बगल में बना हुआ था, जिसपे ऊपर बैठने के लिए बना था दो तरफ़ से खुला हुआ और दो तरफ़ से बंद था। खाना खाने के लिए हम मचान के नीचे की जगह तो इस्तेमाल करते है दोपहर के समय भी वहाँ हवा ठंडी ठंडी चलती है।
वहाँ पहुँच के मैंने बाबू जी के लिए खाना निकालने लगी थी ताकि वो आए और खाना शुरू कर सके पर उससे पहले मैं प्याज को काटने के लिए कुछ लाना भूल गई थी,
तो मचान के दूसरी तरफ़ पम्प चालू बंद करने के लिए बनाये कमरे में चली गई वहाँ जाके देखने लगी कुछ मिल जाए जिससे मैं ये प्याज काट सकू पर तभी मेरी नज़र ट्यूबवेल कि तरफ़ गई जहाँ मेरे ससुर जी पैर हाथ धो रहे थे उन्होंने अपने पजामे और ऊपर के कपड़े को निकाल दिया था,
बस चड्डी और बनयान पहन रखे थे और अच्छे से पैर हाथ धोने में व्यस्त थे अचानक मुझे उनके चड्डी में झूलता बड़ा सा कुछ दिखा मैं समझ गई वो बाबू जी का लंड है पर कुछ और सोचती उससे पहले बाबू जी वहाँ से हटने लगे उन्होंने अपने पैर हाथ धो लिये थे फिर अपने गमछे से हाथों और पैरों को पोछने लगे और उसी गमछे को पहन के वापस मचान की तरफ़ जाने लगे।
मैं भी जैसे तैसे जल्दी जल्दी वहाँ रखी हशिए से प्याज को काट के मचान के तरफ़ जाने लगी, वहाँ पहुँच के मैंने अपने ससुर जी को खाना परोसने लगी साथ ही मेरी नज़र उनके गमछे के ऊपर भी बनी हुई थी, मैं मन में सोचने लगी क्या बाबू जी का बाकी समय इतना ही बड़ा झूलता रहता है तो जब उनका खड़ा होता होगा तो कितना बड़ा होता होगा, और अपने विचारों से बाहर आते हुए खाना देने के बाद ही मैंने बाबू जी से कहा
मैं-“बाबू जी खेतों में गेहूं के अलावा उस दूर वाले खेत में क्या क्या लगाएं है मैं ज़्यादा गई नहीं हूँ वहाँ ”
ससुर जी -“बहू वहाँ तो कुछ सब्जिया लगायी है पर अभी सब सब्जी छोटे है”
मैं -“क्या क्या लगाये है बाबू जी”
ससुर जी -“ज्यादातर तो वही लगे है जो मेरी बहुओं और बच्चों को पसंद है”
मैं - “फिर तो वहाँ जाके देखना पड़ेगा बाबू जी शायद अभी मेरे काम की मतलब घर के लिए कुछ सब्ज़ी मिल जाए”
ससुर जी -“हा क्यों नहीं बस ये खाना हो जाए फिर चलता हूँ वहाँ तुमको लेके”
मैं -“ठीक है बाबू जी”
चंचल अपने ही ख्यालों में कुछ सोचते हुए नज़दीक के खेतों में वहाँ जाके गेहू को देख रही थी,
और यहाँ उसके ससुर जी खाना खाते हुए एक नजर अपनी बड़ी बहू चंचल पे डालते है, साथ ही ये सोच उनके मन में आने लगता है की मेरी बड़ी बहुत कितनी अच्छी है खाना लेके आने के लिए कोई नही था तो ख़ुद लेके आ गई फिर अनायास उसकी नजर अपनी बहू के साड़ी के ऊपर से मटकती हिलती डोलती बड़ी सी गांड पे चली गई, हालाँकि नेहा की गांड को उसने कई बार देखा पर आज बड़ी बहू की गांड, फिर जब चंचल मुड़ी तो नजर उसके चूचो पर पड़ गई,
रमेश चंद ने अपने दिमाग़ को झटका ये मैं क्या देख रहा हूँ पर ना चाहते हुए नज़र जा ही रही थी खाना खाते हुए उसके मन में तरह तरह के विचार उत्पन्न होने शुरू हों गये जैसे क्या मुझे इस तरह देखना चाहिए, नहीं वो मेरी बहू है, क्या हुआ बहू है तो जब नेहा का देख सकता हूँ तब अपने बाकी बहुओं का क्यों नहीं, थोड़ी देर बाद
चंचल वहाँ से अपने ससुर के पास आते हुए पूछती है,
चंचल-“ बाबू जी खाना खा लिए आपने”
रमेश चंद-“ हा बहू लो बर्तन समेट लो फिर उस खेतों की तरफ़ चलते है जहाँ से तुम्हें शायद कुछ काम की सब्ज़ी मिल जाए”
चंचल- थोड़ी सकपकाई और बोली “ठीक है बाबू जी”
रमेश चंद अपनी बहू को बर्तन समेटते हुए देख रहा था आज पहली बार इतने क़रीब से उसने चंचल की गांड और गदराए हुए बदन को गौर किया था, फिर चंचल ने कहा-“चले बाबू जी”
रमेश चंद-“हा चलो हमे इस रास्ते से होते हुए उस खेत की तरफ़ चलना है बहू” एक खेत की तरफ़ इशारा करते हुए फिर से कहता है “बहू तुम आगे चलो मैं पीछे से रास्ता बताता हूँ”
चंचल ने मन में कुछ सोच कर हँसी और रास्ते से होते हुए अपने ससुर के आगे आगे चलने लगी।
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ठीक जब चंचल अपने ससुर के लिए खाना लेके निकली उससे थोड़े देर पहले घर में चंचल पूछती है लेखा से
चंचल -“लेखा बाबू जी तो आज दोपहर खाने के लिए शायद नहीं आयेंगे उन्होंने माँ जी को बोला था खाना किसी के हाथ भेजा देना, अगर तुम कुछ काम नहीं कर रही खाली होगी तो क्या तुम चली जाओगी”
लेखा -“दीदी मैं चली तो जाऊ मुझे बाबू जी के लिए खाना ले जाने में कोई दिक्कत नहीं है पर आपके देवर जी ने मुझे अभी दुकान में बुलाया है। उनका फ़ोन आया था”
चंचल -“ठीक है कोई बात नहीं मैं ख़ुद चली जाती हूँ वैसे भी हफ़्ते भर से ज़्यादा दिन हो गए खेत गई भी नहीं हूँ।”
लेखा-“ठीक है दीदी मैं जा रही हूँ हो सकता है मैं आपसे शाम को मिलूँगी।”
चंचल-“ठीक है।”
घर से निकल के लेखा जल्दी जल्दी अपनी किराने की दुकान की तरफ चली जाती है वहाँ पहुँच के देखती है दुकान का शटर हल्का बंद है वो सोच में पड़ जाती है की मुझे बुला के उनके पति दुकान के सामने नहीं दिख रहे और शटर भी आधा बंद है तो उसे ढूँड़ने वो अंदर जाती है,
और थोड़े अंदर जाने के बाद वो देखती है उसका पति एक चेयर में बैठा मोबाइल में कुछ देख रहा है वो ये देख के गुस्सा भी हो जाती है और खुश भी फिर कुछ सोच कर अपने पति से कहती है,
लेखा -“आपको कोई और जगह नहीं मिली ये सब करने के लिए”
पीताम्बर जैसे ही ये आवाज़ सुनता है वो डर की वजह से घबरा जाता है और कहता है,
पीताम्बर-“पागल है क्या, ऐसे अचानक आके कोई डराता है भला ”
दरअसल पीताम्बर वहाँ चेयर में बैठे मोबाइल में पोर्न वीडियो चालू करके एक हाथ में लिए और दूसरे हाथ से अपने 7 इंच के लंड को हिला रहा था थोड़े ही देर हुआ था तभी लेखा ने उसे डरा दिया था।
लेखा-“डरा नहीं रही मैं आपको बता रही हूँ और वैसे भी आपको क्या जरूरत पड़ गई अपने लंड को इस तरह से हिलाने की” फिर लेखा एक हाथ से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।
पीताम्बर-“आहह तुम्हारे छूते ही मुझे लंड में और भी कड़क महसूस होता है मुझे, मैंने इसलिए तो तुम्हें जल्दी दुकान आने को कहा था”
लेखा-“तो सीधे बोल दिए होते ना, आज तीन दिन तो वैसे भी हो गये मेरी चूत में लंड गए” फिर जोर जोर से उसके लंड को हिलाने लग जाती है।
पीताम्बर-“तुम्हें तो पता है आहह आराम से मेरी जान दिक्कत मेरे लंड में नहीं मेरे पैरों में है, मैं तुम्हारे ऊपर नहीं आ सकता पर तुम मेरी गोद में बैठ के मजा तो पूरा लेती हो ना।”
लेखा-“ हा हा ठीक है और हिलाना जारी रखती है”
फिर लेखा का पति मोबाइल को बंद करके बगल में रख देता है और लेखा के चूचे को दबाते हुए उसके ब्लाउज को खोलने लगता है, यहाँ लेखा भी पीछे नहीं हट रही थी वो भी अपने पति के पैंट को ऊपर से खोलने लगी जिससे लंड और अच्छे से बाहर दिख सके
पीताम्बर-“आहह मेरी जान पता नहीं क्यों जब भी मैं तुम्हारे चूचे को दबाता हूँ लगता है पूरा दबा के खा जाऊ, इतने साल हो गए पर तुम्हारे चूचे हर बार पहले से और ज़्यादा बड़े लगते है”
और चूचों को मुह में लेके चूसने लगता है, वो एक हाथ में चूचे तो दूसरे में अपने मुह को लगा के दोनों को बदल बदल के चूसने लगता साथ ही अब लेखा को और ज़्यादा मजा आ रहा था अपने पति के द्वारा चूचे चूसने से,
लेखा-“आह और जोर के दबा दबा के चूसिए ना जी आह आह उम्म उम्म” कितना अच्छा लगता है जब आप इसे अपने मुंह से चूसते है थोड़ा जोर लगा के काटिए आहहह मां और एक हाथ से उसके लंड को और तेजी से हिलाने लगती है,
पीताम्बर-“आह मेरी जान लेखा 40 की उमर में आज भी तुम असली मजा देती हो” और एक हाथ ले जाके उसके गांड पे मार देता है।
लेखा चिहुक उठती है अपनी चूची से पति का हाथ और मुह हटा के वो नीचे बैठते हुए उसके लंड को पकड़े हुए कहती है,
लेखा-“मज़ा तो इसने भी बहुत दिया है और आज भी उसी तरह दे रहा है पर रोज लेने को तरसती हूँ।”
और धीरे धीरे लेखा का सर अपने पति के लंड की तरफ़ झुकती चली जाती है, पीताम्बर अपनी बीवी को लंड के नज़दीक जाते देख उससे रुका नही जाता और लंड को एक बार ठुमका मार देता है,
लेखा ये देखकर हस्ती है और अपने पति के आँखो में देखते हुए उसके लंड के सूपाड़े को अपने जीभ से छूने लगती है उसके पति की आह निकल जाती है,
पूरे कमरे में कामवेदना संचार होने लगती है सब चीजों से बेखबर एक पत्नी अपने पति को एक शारीरिक सुख देने जा रही थी पर उन्हें क्या पता था एक तूफ़ान थोड़े देर में यहाँ आने वाला है जिससे इनकी ज़िंदगी बदलने वाली है कुछ दिनों में,
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दोपहर का समय कहीं शोर गुल तेज़ी से हो रहा था, हर कोई एक दूसरे से बात करने में लगे थे, कोई मोबाइल तो कोई किताबे लेके बैठा था, कुछ लड़कियां किसी के बारे में बाते कर रही थी, थोड़ी देर घर की बाते चली फिर किसी ने एक ऐसी बात कहदी जिसे सुन बाकी दोनों लड़कियां उसे खा जाने वाली नजरों से देखने लगी, ये सब हो रहा था गर्ल्स कॉलेज में जहाँ कैंटीन के पास ही गार्डन में बैठे ये तीनो लड़कियाँ पूजा, रिंकी और पिंकी
पूजा-“रिंकी तुम्हें पता भी है तुम क्या बोल रही हो जो भी तुम कह रही मैं इसपे नहीं मानती”
पिंकी-“हा दीदी मुझे भी नहीं लग रहा है ऐसा भी होता होगा”
रिंकी-“रुको तुम लोगो को मैं वो किताब ही दिखा देती हूँ जिसे मैंने आज सुबह ही कमल भैया के कमरे में रखी किताबों के बीच से उठाया था।”
और रिंकी उस किताब के पन्नो को पलटते हुए उसमे छपे कुछ तस्वीरों को दिखाने लगती है, ये वही किताब है जिसे कुछ दिन पहले कमल ने अपने कॉलेज के दोस्तों से अनिमेष को दिखाने के लिए लाया था और अपने रूम में किताबों के बीच रख के छुपाना भूल गया था,
पूजा-“मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कमल भैया ऐसी किताब भी रखते होंगे देखो इसमें कितनी नंगी तस्वीरे है।”
पिंकी-“हाँ दीदी कितनी अजीब अजीब सी है देखो कैसे ये औरत अपनी वो दिखा रही है।”
पूजा और रिंकी एक साथ हसने लगती है और पूजा पिंकी से कहती है,
पूजा-“ये वो क्या होता हैं जो हमारे पास है वो भी उसी के पास है और ये औरत अपनी वो नहीं अपनी चूचे और चूत दिखा रही है”
ये बोलके फिर से पूजा और रिंकी हसने लग जाती है, उनकी ऐसी खुली बाते सुनके पिंकी को थोड़ा अजीब भी लगता है पर कहीं ना कहीं उसके शरीर में एक सनसनाहट सी होने लगती है, जैसे किसी ने उसके बदन को छू लिया हो,
रिंकी-“पर दीदी भैया को ऐसे किताबे पड़ने या देखने की जरूरत क्यों पड़ गई”
पूजा-“बिल्कुल पागल है पिंकी को छोड़ तुझे तो पता होना चाहिए की जब जवानी में किसी चीज की लत लग जाती है तो उसके लिए इंसान क्या नहीं करता है, बस इसी तरह कमल भैया क्या मुझे तो लगता है हमारे सारे भाई एक जैसे ही है और ग़लत आदतें सीख गए है”
रिंकी-“तो क्या भैया लोग वो सब भी” इतना कहके चुप हों जाती है,
पिंकी-“दी आप लोग किस बारे में बात कर रहे मुझे भी थोड़ा अच्छे से बताओ”
पूजा-“हा रिंकी तू सही कह रही है मुझे भी ऐसा ही कुछ लगता है सभी पर हमे नजर रखके देखना होगा जब वो घर पे रहते है”
रिंकी-“पर दीदी ये ग़लत नहीं होगा इस तरह उनपे नजर रखना”
पूजा-“ग़लत बात तो है पर क्या तू ये नहीं जानना चाहती की कमल भैया ये किताब अपने पास क्यूँ लाये और उसे देख के क्या करने वाले है”
रिंकी-“हा ये देखना बड़ा मजे दार होगा की वो इस किताब को देखके क्या करेंगे।”
रिंकी-“दीदी अब चलो बहुत देर से हम यहाँ बैठे है मैं तो क्लास चली बाक़ी बाते आप लोग घर पे कर लेना।”
तीनो बहने अपने अपने क्लास के तरफ़ चल पड़ती है, फिर शाम के जैसे 4 बजते है कॉलेज से ऑटो लेके अपने घर की तरफ़ निकल जाती है,
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धन्यवाददोस्तों आज के लिए इस अपडेट में इतना ही, मिलते है अगले अपडेट में और जानेंगे की क्या होगा चंचल और उसके ससुर रमेश चंद के बीच खेतों की तरफ़, ऐसा कौनसा तूफ़ान आने वाला है लेखा और पीताम्बर के सामने जिससे उनकी ज़िंदगी बदलने वाली है और तीनो बहने मिलके ऐसा क्या करने वाली है घर पहुँच के अपने भाइयों पे नजर रखने के लिए।