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Incest बेटी की जवानी - बाप ने अपनी ही बेटी को पटाया - 🔥 Super Hot 🔥

Daddy's Whore

When in Vietnam
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कहानी में अंग्रेज़ी संवाद अब देवनागरी की जगह लैटिन में अप्डेट किया गया है. साथ ही, कहानी के कुछ अध्याय डिलीट कर दिए गए हैं, उनकी जगह नए पोस्ट कर रही हूँ. पुराने पाठक शुरू से या फिर 'बुरा सपना' से आगे पढ़ें.

INDEX:

 
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01 - सफ़र की शुरुआत

जयसिंह राजस्थान के बाड़मेर शहर के एक धनवान व्यापारी थे. उनका शेयर ट्रेडिंग व फ़र्नीचर इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का बिज़नस था. वे दिखने में ठीकठाक थे, लेकिन थोड़े पक्के रंग के थे. एक अच्छे, धनी परिवार से होने की वजह से उनका विवाह मधु से हो गया था, जो कि गोरी-चिट्टी और बेहद ख़ूबसूरत थी.

जयसिंह का विवाह हुए 23 साल बीत चुके थे और उनके तीन बच्चे थे.

सबसे बड़ी बेटी, मनिका, 22 साल की थी और उसने अभी-अभी कॉलेज की पढ़ाई ख़त्म की थी. मनिका से छोटा हितेश, जो अभी कॉलेज के सेकंड ईयर में था, और सबसे छोटी कनिका अभी 12वीं में आई थी. जयसिंह की तीनों संतानें रंग-रूप में अपनी माँ पर गई थी. जिनमें से मनिका को तो कभी-कभी लोग उसकी माँ की छोटी बहन समझ लिया करते थे.

मनिका पढ़ाई-लिखाई में हमेशा से ही अव्वल रही थी. ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद उसने MBA में दाख़िला लेने के लिए एक प्रवेश परीक्षा दी थी, जिसमें वह अच्छे अंकों से पास हो गई थी. उसके बाद उसने कुछ चुने हुए कॉलेजों में दाख़िले के लिए आवेदन कर दिया था. कुछ दिन बाद उसे दिल्ली के एक जाने-माने कॉलेज से इंटर्व्यू के लिए बुलावा आया. तय हुआ था कि जयसिंह उसे इंटर्व्यू के लिए दिल्ली लेकर जाएँगे.

छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका अपने जीवन में पहली बार घर से इतनी दूर जा रही थी, सो वह काफी उत्साहित थी. उसने दिल्ली जाने की तैयारियाँ शुरू कर दीं. जब उसकी माँ ने उसे शॉपिंग पर ज्यादा खर्चा न करने की हिदायत दी तो जयसिंह ने चुपके से उसे अपना क्रेडिट कार्ड थमा दिया था. वैसे भी पहली संतान होने के कारण वह हमेशा से जयसिंह की लाड़ली रही थी.

मनिका ने बाज़ार से नए-नए फ़ैशन के कपड़े, जूते और मेकअप का सामान ख़रीदा, जिन्हें देख एक बार तो उसकी छोटी बहन कनिका का दिल भी मचल उठा था. पैकिंग करते हुए मनिका ने हँस कर उसे ठीक से पढ़ाई पर ध्यान देने की हिदायत दी, ताकि वो भी बाहर पढ़ने जा सके.

आखिर वह दिन भी आ गया जब मनिका और जयसिंह को दिल्ली जाना था. उन्होंने पहले से ही ट्रेन में रिजर्वेशन करवा रखा था.

"मनि?" मधु ने मनिका को उसके घर के नाम से पुकारते हुए आवाज़ लगाई.
"जी मम्मी?" मनिका ने चिल्ला कर सवाल किया. उसका कमरा घर की ऊपरी मंज़िल पर था.
"तुम तैयार हुई कि नहीं? ट्रेन का टाइम हो गया है, जल्दी से नीचे आ कर नाश्ता कर लो." उसकी माँ ने कहा.
"हाँ-हाँ आ रही हूँ मम्मा."

कुछ देर बाद मनिका नीचे हॉल में आई तो देखा कि उसके पिता और भाई-बहन पहले से डाइनिंग टेबल पर बैठे ब्रेकफास्ट कर रहे थे.

“Good morning papa!" मनिका ने अभिवादन किया, और पूछा "मम्मी कहाँ है?”
"वो कपड़े बदल कर अ… आ रही है." जयसिंह ने मनिका की ओर देख कर जवाब दिया था. लेकिन मनिका के पहने कपड़ों को देख वे हकला गए.


जयसिंह एक खुली सोच के व्यक्ति थे. उनके विपरीत, उनकी पत्नी मधु का स्वभाव थोड़ा रोका-टोकी वाला था. शादी के शुरुआती सालों में ही उन्होंने अपने-आप को इस तरह से ढाल लिया था कि मधु की टोका-टोकी से बच्चों की परवरिश पर कोई फ़र्क़ ना आए. इसके चलते उनके बच्चों को कुछ ऐसी आज़ादियाँ मिली हुईं थी जो आमतौर पर भारतीय घरों में नहीं होती.

जहाँ हितेश के पास नए खिलौनों का ढेर था वहीं मनिका और कनिका के पास फ़िल्मी-फ़ैशन वाले कपड़े और मेकअप का सामान. लेकिन छोटे शहर की मर्यादा का ध्यान दोनों लड़कियों को भी था और बाहर जाते वक़्त वे सलवार-सूट या जींस-टॉप पहन कर ही निकला करतीं थी. कभी-कभी अगर मधु बच्चों को टोक भी देती थी तो जयसिंह मुस्कुराते हुए उनका साथ देने लगते थे. पर आज मनिका ने जो पोशाक पहनी थी, उसे देख जयसिंह भी सकते में आ गए थे.

मनिका ने लेग्गिंग्स के साथ टी-शर्ट पहन रखी थी.

लेग्गिंग्स एक प्रकार की पायज़ामी होती है जो बदन से बिलकुल चिपकी रहती है. लड़कियाँ अक्सर लम्बे कुर्तों या टॉप्स के साथ लेग्गिंग्स पहना करती हैं. लेकिन मनिका ने लेग्गिंग्स के ऊपर एक छोटी सी टी-शर्ट पहन रखी थी जो मुश्किल से उसकी नाभि तक आ रही थी.

मनिका के जवान बदन के उभार लेग्गिंग्स में पूरी तरह से नज़र आ रहे थे. उसकी टी-शर्ट भी स्लीवेलेस और गहरे गले की थी. जयसिंह अपनी बेटी को इस रूप में देख झेंप गए और नज़रें झुका ली.
"पापा! कैसी लगी मेरी नई ड्रेस?" मनिका उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली.

"अ… अ… अच्छी है, बहुत अच्छी है." जयसिंह ने सकपका कर कहा.

मनिका बैठ कर नाश्ता करने लगी. कुछ पल बाद उसकी माँ भी कपड़े बदल कर आ गई, लेकिन मनिका के कुर्सी पर बैठे होने के कारण मधु को उसके पहने कपड़ों का पता न चला.
"जल्दी से खाना खत्म कर लो, जाना भी है, मैं जरा दूध गरम कर लूँ तब तक…" कह मधु रसोई में चली गई.

"हर वक्त ज्ञान देती रहती है तुम्हारी माँ." जयसिंह ने धीमी आवाज़ में कहा.

तीनों बच्चे खिलखिला दिए.

नाश्ता करने के बाद मनिका उठ कर हाथ धोने चल दी. जयसिंह भी नाश्ता कर चुके थे सो वे भी मनिका के पीछे-पीछे वॉशबेसिन की तरफ़ जाने लगे. उनकी नज़र न चाहते हुए भी आगे चल रही मनिका की ठुमकती चाल पर चली गई. मनिका ने ऊँचे हील वाली सैंडिल पहन रखी थी, जिस से उसकी टाँगें और ज्यादा तन गई थी और उसके नितम्ब उभर आए थे. यह देख जयसिंह का चेहरा गरम हो गया. उधर मनिका वॉशबेसिन के पास पहुँच थोड़ा आगे झुकी और हाथ धोने लगी. जयसिंह की धोखेबाज़ नज़रें एक बार फिर ऊपर उठ गई. मनिका के हाथ धोने के साथ-साथ उसकी गोरी कमर और नितम्ब हौले-हौले डोल रहे थे. यह देख जयसिंह को उत्तेजना का एहसास होने लगा. लेकिन अगले ही पल वे अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे.

"छि:… यह मैं क्या करने लगा. हे भगवान! मुझे माफ़ करना." पछतावे से भरे जयसिंह ने प्रार्थना की.

मनिका हाथ धो कर हट चुकी थी, उसने एक तरफ हो कर जयसिंह को मुस्का कर देखा और बाहर चल दी. जयसिंह भारी मन से हाथ धोने लगे.

–​

जब तक मधु घर का काम निपटा कर बाहर आई थी तब तक उसके पति और बच्चे कार में बैठ गए थे. जयसिंह आगे ड्राईवर की बगल में बैठे थे और मनिका और उसके भाई-बहन पीछे. मधु भी थोड़ा एडजस्ट हो कर पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उसे अभी भी अपनी बड़ी बेटी के पहनावे का कोई अंदाजा नहीं था.

कुछ ही देर बाद वे लोग स्टेशन पहुँच गए.

कार पार्किंग में पहुँच कर जब सब गाड़ी से बाहर निकलने लगे तब मधु की नज़र मनिका के कपड़ों पर गई. मधु का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.

"ये क्या वाहियात ड्रेस पहन रखी है मनि?" मधु ने दबी ज़ुबान में आग बबूला होते हुए कहा.
"क्या हुआ मम्मी?" मनिका ने अनजाने में पूछा, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी माँ गुस्सा क्यूँ हो रही थी.

गलती मनिका की भी नहीं थी, उसे इस बात का एहसास नहीं था कि टीवी-फिल्मों में पहने जाने वाले कपड़े आमतौर पर पहनने लायक़ नहीं होते. उसने तो दिल्ली जाने के लिए नए फैशन के चक्कर में वो ड्रेस पहन ली थी.

"कपड़े पहनने की तमीज़ है कि नहीं तुमको? घर की इज़्ज़त का थोड़ा तो ख़याल करो." उसकी माँ का गुस्से पर काबू न रहा और वह थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोल गई थी, "ये क्या नाचने वालियों जैसे कपड़े पहन कर आई हो तुम?"

मनिका अपनी माँ की रोक-टोक पर अक्सर चुप रह कर उनकी बात सुन लेती थी. लेकिन आज दिल्ली जाने के उत्साह और ऐन वक्त पर उसकी माँ की डांट ने उसे भी गुस्सा दिया.

"क्या मम्मी आप हर वक्त मुझे डांटते रहते हो. कभी आराम से भी बात कर लिया करो." मनिका ने तमतमाते हुए जवाब दिया.
"क्या हो गया इस ड्रेस से ऐसा? फैशन का आपको कुछ पता तो है नहीं! पापा ने कहा की बहुत अच्छी ड्रेस है…"

जयसिंह उनकी ऊँची आवाजें सुन उसी तरफ आ रहे थे सो मनिका ने उनकी बात भी साथ में जोड़ दी थी.

"हाँ, एक तुम तो हो ही नालायक़ ऊपर से तुम्हारे पापा की शह से और बिगड़ती जा रही हो…" उसकी माँ दहक कर बोली.
"क्या बात हुई? क्यूँ झगड़ रही हो माँ बेटी?" जयसिंह पास आते हुए बोले.
"सम्भालो अपनी लाड़ली को, रंग-ढंग बिगड़ते ही जा रहे हैं मैडम के." मधु ने अब अपने पति पर बरसते हुए कहा.
"अरे क्यूँ बेचारी को डांटती रहती हो तुम? ऐसा क्या पहाड़ टूट पड़ा है…"

जयसिंह जानते थे कि मधु मनिका के पहने कपड़ों को लेकर उससे बहस कर रही थी पर उन्होंने आदतवश मनिका का ही पक्ष लेते हुए कहा.

"हाँ और सिर चढ़ा लो इसको आप…" मधु का गुस्सा और बढ़ गया था.

लेकिन जयसिंह उन मर्दों में से नहीं थे जो हर काम अपनी बीवी के कहे करते हैं. मधु के इस तरह उनकी बात काटने पर वे चिढ़ गए.

"ज्यादा बोलने की ज़रूरत नहीं है, जो मैं कह रहा हूँ वो करो." जयसिंह ने मधु हो आँख दिखाते हुए कहा.

मधु अपने पति के स्वभाव से परिचित थी. उनका गुस्सा देखते ही वह खिसिया कर चुप हो गई.

जयसिंह ने घड़ी में टाइम देखा और बोले, "ट्रेन चलने को है और यहाँ तुम हमेशा की तरह फ़ालतू की बहस कर रही हो. चलो अब."

–​

वे सब स्टेशन के अन्दर चल दिए.

उनका ड्राईवर, हरी, सामान उठाए पीछे-पीछे आ रहा था. जयसिंह ने देखा कि उसकी नज़र मनिका की मटकती कमर पर टिकी थी और उसकी आँखों से वासना टपक रही थी.

"साला हरामी, जिस थाली में खाता है उसी में छेद…" उन्होंने मन ही मन ड्राईवर को कोसते हुए सोचा.

लेकिन 'छेद' शब्द मन में आते ही उनका दिमाग़ भटक गया और वे एक बार फिर अपनी सोच पर शर्मिंदा हो उठे. वे थोड़ा सा आगे बढ़ मनिका के पीछे चलने लगे ताकि ड्राईवर की नज़रें उनकी बेटी पर न पड़ सकें.

उनकी ट्रेन प्लेटफ़ोर्म पर लग चुकी थी.

जयसिंह ने ड्राईवर को सीट नंबर बता कर सारा सामान वहाँ रखने भेज दिया और खुद अपने परिवार के साथ रेल के डिब्बे के बाहर खड़े हो बतियाने लगे.

लेकिन हितेश और कनिका ही थे जो इधर-उधर की बातों में लगे थे. मधु और मनिका अभी भी एक दूसरे से तल्खी से पेश आ रहीं थी. वे तीनों इसी तरह असहज से खड़े थे कि ट्रेन की सीटी बज गई. ड्राईवर भी सामान रख बाहर आ गया था. जयसिंह ने उसे कार के पास जाने को कहा और फिर हितेश और कनिका को ठीक से रहने की हिदायत देते हुए ट्रेन में चढ़ गए.

मनिका ने भी अपने छोटे भाई-बहन को प्यार से गले लगाया और अपनी माँ को जल्दी से अलविदा बोल कर ट्रेन में चढ़ने लगी. जयसिंह ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़े थे, उन्होंने मनिका का हाथ थाम कर उसे अन्दर चढ़ा लिया.

जब मनिका उनका हाथ थाम कर अन्दर चढ़ रही थी तो एक पल के लिए वह थोड़ा सा आगे झुक गई थी और जयसिंह की नज़रें उसके टी-शर्ट के गहरे गले पर चली गई. मनिका के झुकते ही उन्हें उसकी गुलाबी ब्रा में क़ैद जवान वक्ष के उभारों का दीदार हो गया था.

22 साल की मनिका के दूध से सफ़ेद उरोज देख जयसिंह फिर से विचलित हो उठे. उन्होंने जल्दी से नज़र उठा कर बाहर खड़ी मधु की ओर देखा. मधु दोनों बच्चों का हाथ थामे उन्हें देख रही थी. एक पल के लिए उन्हें अकारण ही मधु पर ग़ुस्सा करने पर बुरा सा लगा. लेकिन तभी एक हल्के से झटके के साथ ट्रेन चल पड़ी और जयसिंह भी अपने-आप को सम्भाल अपनी बर्थ की ओर चल दिए.

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02 - AC फ़र्स्ट-क्लास

मनिका और जयसिंह का रिजर्वेशन फर्स्ट-क्लास AC केबिन में था.

जब मनिका और जयसिंह केबिन में पहुँचे तो पाया कि खिड़की से सूरज की तेज़ रौशनी पूरे केबिन में फैली हुई थी. वे दोनों आमने-सामने की बर्थ पर बैठ गए.

मनिका उनकी ओर देख कर मुस्कुराई.

“Finally, हम जा रहे हैं पापा, I am so excited!" उसने चहक के कहा.
"हाहा… हाँ भई." जयसिंह भी हँस के बोले.
"क्या पापा मम्मी हमेशा मुझे टोकती रहती है…" मनिका ने अपनी माँ से हुई लड़ाई का जिक्र किया.
"अरे छोड़ो न उसे, उसका तो हमेशा से यही काम है. कोई काम सुख-शान्ति से नहीं होता उससे." जयसिंह ने मनिका को बहलाने के लिए कहा.
"हाहाहा पापा, सच में जब देखो मम्मी चिक-चिक करती ही रहती है, ये करो-ये मत करो और पता नहीं क्या क्या?"

मनिका ने भी अपने पिता का साथ पा कर अपनी माँ की बुराई कर दी.

"हाँ भई, मुझे तो 23 साल हो गए सुनते हुए." जयसिंह ने बनावटी दुःख प्रकट करते हुए कहा और खिलखिला उठे.
"हाय पापा आप बेचारे… कैसे सहा है आपने इतने साल." मनिका भी खिलखिलाते हुए बोली और दोनों बाप-बेटी हँस पड़े.
“Seriously papa,” मनिका ने हँसते हुए आगे कहा. “आप ही इतने वफादार हो कोई और होता तो छोड़ के भाग जाता…”
"हाहा… भाग तो मैं भी जाता पर फिर मेरी मनि का ख़याल कौन रखता?" जयसिंह ने नहले पर देहला मारते हुए कहा.
“Oh papa, you are so sweet!" मनिका उनकी बात से खिल उठी थी.

वह खड़ी हुई और उनके बगल में आ कर बैठ गई. जयसिंह ने अपना हाथ मनिका के कंधे पर रखा और उसे अपने साथ सटा लिया, मनिका ने भी अपना एक हाथ उनकी कमर में डाल रखा था.
वे दोनों कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे. जवान होने के बाद आज पहली बार मनिका ने अपने पिता से इस तरह स्नेह जताया था. आमतौर पर जयसिंह उसके सिर पर हाथ फेर स्नेह की अभिव्यक्ति कर दिया कर देते थे. सो आज अचानक, बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने के एहसास ने मनिका को कुछ पल बाद थोड़ा असहज कर दिया. जयसिंह भी उसके इस तरह अनायास पास आ जाने से थोड़ा विचलित हो गए थे. मनिका के परफ्यूम की भीनी-भीनी ख़ुशबू उनकी साँसों में घुल रही थी.

इससे पहले कि उनके बीच की खामोशी और गहरी होती मनिका ने चहक कर माहौल बदलने के लिया कहा,

"पता है पापा, मेरे सारी फ्रेंड्स आपसे जलती हैं?”
"हाहाहा… अरे क्यूँ भई?" जयसिंह भी थोड़े आश्चर्य से बोले.
"अब आप मेरा इतना ख़याल रखते हो न… तो इसलिए… मेरी फ्रेंड्स कहती है कि उनके पापा लोग उन्हें आपकी तरह चीज़ें नहीं दिलाते, you know… वे कहती हैं कि…”

इतना कह मनिका सकपका के चुप हो गई.

"क्या?" जयसिंह ने उत्सुकतावश पूछा.
"कुछ नहीं पापा ऐसे ही फ्रेंड्स लोग मजाक करते रहते हैं." मनिका ने टालने की कोशिश की.
"अरे बताओ ना?" जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की पीठ पर ले जाते हुए कहा.
"वो सब कहते हैं कि तेरे पापा… कि तेरे पापा तो तेरे बॉयफ्रेंड जैसे हैं. पागल हैं मेरी फ्रेंड्स भी." मनिका ने कुछ लजाते हुए बताया.
"हाहाहा… क्या सच में?" जयसिंह ने ठहाका लगाया. साथ ही वे मनिका की पीठ सहला रहे थे.
"नहीं ना पापा वो सब मजाक में कहते हैं… और मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं है ओके…" मनिका ने थोड़ा सीरियस होते हुए कहा. उसे लगा की उसके पिता बॉयफ्रेंड की बात सुन कर कहीं नाराज न हो जाएँ.
"हाँ भई मान लिया, मैं कहाँ कुछ कह रहा हूँ." जयसिंह ने मनिका की पीठ पर थपकी दे कर कहा.

जाने-अनजाने में जयसिंह ने अपना दूसरा हाथ मनिका की जाँघ पर रख लिया था.

मनिका की जाँघें लेग्गिंग्स में से उभर कर बेहद सुडौल और कसी हुई नज़र आ रही थी. जयसिंह की नज़र उन पर कुछ पल से टिकी हुईं थी. उनके अवचेतन मन के ख़यालों ने यंत्रवत ही उनका हाथ उठा कर मनिका की जाँघ पर रखवा दिया था. उन्हें लगा की बातों में लगी मनिका को इस का एहसास शायद न हो. मनिका की जाँघ की कसावट महसूस करते ही वे और ज़्यादा भटक गए. उन्होंने हल्के से अपना हाथ उस पर फिराया.

उधर मनिका भी उनके स्पर्श से अनजान नहीं थी. जयसिंह के उसकी जाँघ पर हाथ रखते ही मनिका की नजर उस पर जा टिकी थी, लेकिन उसने अपनी बात जारी रखी और अपने पिता के उसे इस तरह छूने को नज़रंदाज कर दिया. उसे लगा कि वे बस उससे स्नेह जताने के लिए ऐसा कर रहे हैं. पर उसके लिए भी यह एक नया एहसास था.

"चलो पापा अब आप आराम से बैठ जाओ. मैं अपनी सीट पे जाती हूँ." कह मनिका उठने को हुई.

जयसिंह ने अपने हाथ उसकी पीठ और जाँघ से हटा लिए. उनका मन कुछ अशांत था.

"क्या मैंने जानबूझकर मनि… मनिका के बदन पर हाथ लगाया? पता नहीं कैसे मेरा हाथ मानो अपने-आप ही वहाँ चला गया हो. ये मैं क्या सोचने लगा हूँ… अपनी बेटी के लिए. नहीं-नहीं अब से ऐसा फिर कभी नहीं होगा. हे ईश्वर! मुझे क्षमा करना." उन्होंने आँखें बंद कर मन ही मन सोचा.

पर जैसे ही उन्होंने आँखें खोली तो मानो उन पर बिजली आ गिरी.

–​

जयसिंह को आँख मूँद कर अपनी प्रार्थना करने में शायद एक-दो सेकंड ही लगे होंगे, पर उतनी सी देर में मनिका जिस तरह उनके सामने खड़ी हो गई थी वह देख उनका सिर चकरा गया.

मनिका की पीठ उनकी तरफ थी और वह खड़ी-खड़ी ही कमर से झुकी हुई थी. उसके दोनों नितम्ब लेग्गिंग्स के कपड़े में से पूरी तरह उभर आए थे. उसकी टी-शर्ट ऊपर उठ गई थी और मनिका की पतली, गोरी कमर केबिन में फैली सूरज की रौशनी में चमक रही थी. तिसपर, जयसिंह का चेहरा अपनी बेटी के अधोभाग के बिलकुल सामने था.

जयसिंह ने अपने लिए प्रण के वास्ते अपनी नज़रें घुमानी चाही पर उनका दिमाग़ अब उनके काबू से बाहर जा चुका था. अगले ही पल उनकी आँखें फिर से मनिका के कसे हुए जवान नितम्बों पर जा टिकीं. उन्होंने गौर किया कि मनिका असल में सामने वाली बर्थ के नीचे रखे बैग में कुछ टटोल रही थी. उनसे रहा न गया,

"क्या ढूँढ रही हो मनिका?" उन्होंने पूछा.
"कुछ नहीं पापा मेरे earphones नहीं मिल रहे, डाले तो इसी बैग में थे." मनिका ने झुके-झुके ही पीछे मुड़ कर कहा.

उसके मुड़ने पर जयसिंह ने पाया कि मनिका के बाल खुले थे और उसकी टी-शर्ट के गले से उसका वक्ष दिखाई पड़ रहा था. वे बेकाबू हो गए.

मनिका वापस अपना सामान टटोलने में लग गई.

जयसिंह ने देखा कि मनिका के इस तरह झुके होने की वजह से उसकी लेग्गिंग्स का महीन कपड़ा खिंच कर थोड़ा पारदर्शी हो गया था. उन पर एक बार फिर जैसे बिजली गिर पड़ी. केबिन में इतनी रौशनी थी कि उन्हें उसकी सफ़ेद लेग्गिंग्स में से गुलाबी कलर का अंडरवियर नज़र आ रहा था. जयसिंह ने अपनी नज़रें पूरी शिद्दत से अपनी बेटी के नितम्बों पर गड़ा लीं.

वे सोचने लगे कि पहली नज़र में उन्हें उसकी अंडरवियर क्यूँ नहीं दिखाई दी? फिर उन्हें एहसास हुआ की मनिका जो अंडरवियर पहने थी वह कोई सीधी-सादी अंडरवियर नहीं थी, बल्कि एक थोंग था.

Thong, एक प्रकार का सेक्सी अंडरवियर होता है जिससे पीछे का अधिकतर भाग ढंका नहीं जाता.

जयसिंह पर गाज पर गाज गिरती चली जा रही थी. ट्रेन के हिचकोलों से हिलते मनिका के नितम्बों ने उनके लिए वचन की धज्जियाँ उड़ा दीं थी. आज तक जयसिंह ने, अंग्रेज़ी फ़िल्म अभिनेत्रियों के सिवा किसी को इस तरह की सेक्सी अंडरवियर पहने नहीं देखा था, अपनी बीवी मधु को भी नहीं. उनके मन में पहला ख़याल वही आया जो हर एक हिंदुस्तानी मर्द के मन में किसी लड़की को इस तरह देखने पर आता है, ‘रांड’.

”ये मनिका कब इतनी जवान हो गई? पता ही नहीं चला. आज तक इसकी माँ ने ऐसी कच्छी पहन कर नहीं दिखाई जैसी ये पहने घूम रही है! ओह्ह मेरे पैसों से ऐसी कच्छीयाँ लाती है ये…" जयसिंह जैसे सुध-बुध खो बैठे थे. “म्म, क्या कसी हुई गांड है साली की… हाय, ये मैं क्या सोच रहा हूँ? सच ही तो है… साली कुतिया कैसे अधनंगी घूम रही है देखो, मधु बेचारी सही कह रही थी. साली छिनाल के बोबे भी बहुत बड़े हो रहे हैं… म्म… हे प्रभु!"

जयसिंह के दिमाग़ में बिजलियाँ कौंध रहीं थी.

–​

जयसिंह के कई ऐसे दोस्त थे जिनके शादी के बाद भी स्त्रियों से सम्बंध रहे थे. लेकिन उन्होंने कभी मधु के साथ दगा नहीं की थी. उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी कामिच्छा भी मंद पड़ गई थी और वे कभी-कभार ही मधु संग संभोग किया करते थे. लेकिन आज अचानक जैसे उनके अन्दर का सोया हुआ मर्द फिर से जाग उठा था. उन्होंने पाया की उनका लिंग पैंट फाड़ने को हो रहा था.

मनिका को उसके ईयरफ़ोन मिल चुके थे. वो सीधी हुई और सामने की सीट पर बैठ फ़ोन में गाने लगाने लगी. जयसिंह से नज़र मिलने पर वह मुस्का दी थी. पर उसे क्या पता था कि सामने बैठे उसके पापा किस कदर उस के जिस्म के दीवाने हुए जा रहे थे.

इधर जयसिंह का लिंग उन्हें तकलीफ दे रहा था. बैठे होने की वजह से लिंग को खड़ा होने की जगह नहीं मिल पा रही थी. उन्हें ऐसा लग रहा था मानो एक दिल उनके सीने में धड़क रहा था और एक उनकी टांगों के बीच. जयसिंह जैसे भूल चुके थे कि मनिका उनकी बेटी है,

"साला लौड़ा भी फटने को हो रहा है और ये साली कुतिया मुस्कुरा रही है सामने बैठ कर! ओह, क्या मोटे होंठ है साली के, गुलाबी-गुलाबी… मुँह में भर दूँ लंड इसके… आह्ह…"

लेकिन सच से मुँह भी नहीं फेरा जा सकता था, थोड़ी देर बाद जब उनका दिमाग़ कुछ शांत हुआ तो वे फिर सोच में पड़ गए.

"मनिका… मेरी बेटी है… साली कुतिया छोटी-छोटी कच्छीयाँ पहनती है… उफ़ पर वो मेरी बेटी… साली का जिस्म ओह्ह… उसकी फ्रेंड्स मुझे उसका बॉयफ्रेंड कहती हैं… ओह मेरी ऐसी किस्मत कहाँ… काश ये मुझसे पट जाए…कयामत आ जाएगी… पर वो मेरी प्यारी बिटिया… है."

जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगे थे जब मनिका ने अपनी सैंडिल खोली और पैर बर्थ के ऊपर कर के लेट गई. एक बार फिर उनके कुछ शांत होते बदन में करंट दौड़ गया. मनिका की करवट उनकी तरफ़ थी और उसकी गहरे गले की टी-शर्ट में उसका वक्ष उभर आया था. इससे पहले की जयसिंह का दिमाग़ इस नए झटके से उबर पाता उनकी नज़र मनिका की टांगों के बीच बन रही 'V' आकृति पर जा ठहरी. वे तड़प उठे.

"ओह्ह! मनिकाऽऽ… रांड!” जयसिंह के मन में आया संकोच फिर से जाता रहा था.

जयसिंह अपनी बर्थ पर सीधे हो कर लेट गए ताकि मनिका पर उनकी नज़र ना पड़े. वे जानते थे कि अगर वे उसकी तरफ देखते रहे तो उनका दिमाग़ सोचने-समझने के काबिल नहीं रहेगा. लेकिन यह वक्त सोच-समझकर आगे बढ़ने का ही था.

"मैं और मनिका दिल्ली अकेले जा रहे हैं, इस को पटाने के लिए इससे ज्यादा सुनहरा मौका शायद ही फिर मिले. क्या ये हो सकता है? अगर थोड़ी भी गड़बड़ हुई तो मामला बहुत बिगड़ सकता है… हे भगवान! क्या मैं अपनी बेटी को पटाने का सोच रहा हूँ…”

–​

पिछले 23 साल में जयसिंह की जनाना समझ सिर्फ़ अपनी बीवी और घर की महिलाओं तक ही सीमित रही थी. सो वे लेटे-लेटे स्कूल कॉलेज के ज़माने के अपने अनुभव के बारे में सोचने लगे.

"हम्म, मनिका एक लड़की है… सो उसे पटाने के लिए लौंडों वाले पैंतरे लगाने होंगे… लड़कियों के बारे में मैं क्या जानता हूँ? हमेशा से ही लड़कियाँ पैसे वाले लौंडों के चक्करों में जल्दी आती थी, सो पहली समस्या का हल तो मेरे पास है. दूसरा लड़कियों को अपनी तारीफ़ भी काफ़ी पसंद होती है, उसमें भी कोई दिक्कत नहीं है… पर ऐसा क्या है जो मनिका को मेरे प्रति आकर्षित कर सके…?"

जयसिंह के ज़ेहन में अचानक से एक विचार कौंधा.

"कॉलेज में साला अविनाश रोज़ नई लड़की घुमाता था, और उसकी अय्याशी का पता होने के बावजूद वो लड़कियाँ भी उसके आगे-पीछे घूमा करतीं थी. क्या कहता था वो कि…? एक बार लड़की को अगर भरोसे में ले लिया जाए तो उस से कुछ भी करवाया जा सकता है. क्या यह तरीक़ा मनिका पर काम कर सकता है?"

जयसिंह ने मुड़ कर एक बार मनिका की तरफ़ देखा. उनकी नज़रें मिली तो मनिका ने फिर से एक चुलबुली सी मुस्कान बिखेर दी. जयसिंह भी मुस्का दिए, उन्हें अपने सवाल के लिए एक जवाब मिल गया था.

"जिस तरह की कच्छी पहन के साली रंडी मुस्कुरा रही है उससे तो शायद बात बन सकती है. अगर ये इस तरह के कपड़े पहनती है तो कहीं ना कहीं इसके मन में भी ठरक तो है. इसके साथ थोड़ी बहुत ऐसी-वैसी बातें अगर करूँ तो शायद किसी से न कहे. इसमें मधु से हुई इसकी लड़ाई भी काम आ सकती है. कुछ-कुछ बातें अगर इसे छुपाने को कहूँगा तो मान ही जाएगी. वैसे भी लड़कियाँ स्वभाव से संकोची होतीं है, लेकिन उन्हें चुपके-चुपके शरारत करना बहुत भाता है. इसी सब के बीच मुझे अपनी पिता की छवि से बाहर आकर इसे दोस्ती का एहसास करना होगा. अगर सच में इसकी सहेलियाँ मुझे इसका बॉयफ़्रेंड कहती है तो शायद ये काम ज़्यादा मुश्किल ना हो. लेकिन इस से आगे क्या…?"

इधर मनिका, जो अपने फ़ोन से गाने सुन रही थी, को लग रहा था कि उसके पापा सो रहे हैं. गाना सुनते-सुनते वो हौले-हौले गाने भी लगी. लेकिन जयसिंह की सारी इंद्रियों का ध्यान तो मनिका की तरफ़ ही था, उसकी आवाज़ सुनते ही उन्होंने अपने कान खड़े कर लिए थे.

"I am sexy and you know it… mmm" मनिका रुक-रुक कर गाने का मुखड़ा गा रही थी.

जयसिंह को मानो कायनात ही अपनी बेटी की जवान देह की तरफ़ धकेल रही थी.

"सेक्सी! हम्म, साली कुतिया गाने भी ऐसे सुनती है. यहाँ मैं इसे भोली समझे बैठा था." जयसिंह कामाग्नि में रिश्ते-नाते भूलते जा रहे थे. "बस मुझे किसी तरह से मनिका की जवानी में आग लगानी होगी. वैसे इन मामलों में लड़कियाँ मर्दों से कम तो नहीं होती बस वे जाहिर नहीं करती. लेकिन यहीं सबसे बड़ी दिक्कत आने वाली है. मनिका के तन में इतनी हवस जगानी होगी कि वह समाज के नियम तोड़ने के लिए राज़ी हो जाए."

दिल्ली पहुँचते-पहुँचते जयसिंह अपनी बेटी को पटाने का प्लान बना चुके थे.

पहले वे अपने पैसे और तारीफों से मनिका को दोस्ती के जाल में फँसाने वाले थे, ताकि वह उन्हें पिता के रूप में देखना छोड़ दे. फिर वे धीरे-धीरे अपना चंगुल कसते हुए मनिका के साथ अडल्ट किस्म की बातें शुरू करने वाले थे. उनका आख़िरी लक्ष्य था, उसका भरोसा पूरी तरह से जीतने के बाद, हौले-हौले उसकी कमसिन जवानी की आग को हवा देने का.

जयसिंह की एक ख़ूबी थी, कि वे एक बार जो ठान लेते थे उसे पा कर ही दम लेते थे. इसीलिए आज उनका बिज़नस में इतना नाम और दाम था. उनका मन अब शांत था. अब इसी एकाग्रता और धैर्य के साथ वे अपनी बेटी को अपनी रखैल बनाने के अपने प्लान पर अमल लाने वाले थे.


शाम ढल चुकी थी, दिल्ली स्टेशन पर गाड़ी आ कर रुकी. बाहर आ कर मनिका और जयसिंह ने एक टैक्सी ली. टैक्सी ड्राईवर ने पूछा कि वे कहाँ जाना चाहते हैं.
“Marriott Gurgaon." जयसिंह बोले, और कनखियों से मनिका की तरफ देखा.

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03 - मनिका की ग़लती

मनिका के चेहरे पर ख़ुशी साफ़ झलक रही थी.

"Wow! पापा हम Marriott में रुकेंगे?" मनिका ने खुश हो कर पूछा.
"और नहीं तो क्या? अब तुम्हारे साथ तो किसी अच्छी जगह ही रुकेंगे ना." जयसिंह उसे हवा देते हुए बोले.
“Oh God! Papa I am so happy.”
"हाहा… That’s what I want for you Manika." जयसिंह ने कहा. "लेकिन घर पर ये सब मत बताना वरना मधु फिर चिक-चिक करेगी.” जयसिंह ने अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया था.
“Obviously not papa." मनिका खिलखिलाते हुए बोली.

लेकिन मनिका को थोड़ा अटपटा भी लगा कि पापा ने उसे 'मनि' की बजाय 'मनिका' कह कर पुकारा था.

कुछ देर के सफ़र के बाद वे होटल पहुँच गए.

Marriott, दिल्ली और गुड़गाँव का एक बेहद आलीशान पाँच सितारा होटल है. मनिका वहाँ का रंग-ढंग देख बहुत खुश हुई. जयसिंह ने उसे सामान के पास छोड़ा और काउंटर पर पहुंचे. वहाँ बैठे फ्रंट-ऑफिस क्लर्क ने उनका अभिवादन किया,

“Welcome to the Marriott sir, do you have a reservation?”
“No, but I am looking for a stay.”
“Sure sir, are you alone?”
“No I am with my dau… wife.” जयसिंह के मन में एक ख़याल आया और वे मनिका को अपनी बेटी कहते-कहते रुक गए, और उसे अपनी बीवी बता दिया.
“Oh, lovely. Well sir, how long will you be staying with us?”
“I don’t know, so put us down for a week for now.” जयसिंह ने जरा सोच कर कहा.

हालाँकि मनिका का इंटर्व्यू अगले एक-दो दिन में हो जाना था, लेकिन जयसिंह ने सोचा कि वे बिज़नेस मीटिंग के बहाने उसे कुछ दिन अपने साथ रोके रखेंगे.

“Very well sir. Here are your key cards. I will need an identity proof for checking you in, would you like to make an advance payment as well?”

जयसिंह ने अपना प्लैटिनम क्रेडिट कार्ड निकाल कर उसे दिया.

“Thank you for choosing the Marriott, have a pleasant stay sir.” क्लर्क ने उन्हें मुस्कुराते हुए पीछे खड़े हेल्पर को उनके साथ हो लेने का इशारा करते हुए कहा.

जयसिंह रूम बुक करा कर मनिका के पास लौटे. हेल्पर भी पीछे-पीछे आ गया और उनका रूम नंबर पूछ कर उनका सामान रखने चल दिया. वे दोनों भी लिफ़्ट से अपने रूम की तरफ चल पड़े. जयसिंह ने लिफ़्ट में चढ़ते वक्त मनिका की पीठ पर हल्के से सहारा दिया था.

जब वे अपने कमरे में पहुंचे तो पाया की हेल्पर सामान रख, खड़ा उनका इंतज़ार कर रहा था. जयसिंह समझ गए कि वह टिप चाहता है. उन्होंने जेब से पाँच सौ रुपए निकाल उसे थमा दिए, वह ख़ुशी-ख़ुशी वहाँ से चल दिया. मनिका अपने पापा की इस अदा की क़ायल हो गई. फिर जब उसने कमरा देखा तो उसकी बाँछें और खिल उठी. कमरा इतना बड़ा व शानदार था और उसमे ऐशो-आराम की इतनी चीजें मौजूद थीं कि पूछो मत. मनिका खुश होकर वहाँ रखी चीज़ें उलट-पलट कर देखने लगी.

"पापा क्या रूम है ये… Wow!" उसने जयसिंह से अपनी ख़ुशी का इज़हार किया.
"हाँ-हाँ. अच्छा है." जयसिंह ने कुछ ख़ास महत्व न देते हुए कहा.
"बस अच्छा है? पापा! इतना superb room है ये…" मनिका ने ज़ोर देकर कहा.
"हाँ भई बहुत अच्छा है, बस?" जयसिंह ने उसी टोन में कहा, "तुमने पहली बार देखा है इसीलिए ऐसा लग रहा है तुम्हें."
"मतलब…? मतलब आप पहले भी आए हो यहाँ पर पापा?" मनिका ने आश्चर्य से पूछा.
"और नहीं तो क्या, बिज़नस के लिए आता तो रहता हूँ दिल्ली, जैसे तुम्हें नहीं पता…" जयसिंह बोले.
“हाँ पापा, I know that, पर मुझे नहीं पता था कि आप यहाँ रुकते हो." मनिका बोली, "पहले पता होता तो मैं भी आपके साथ आ जाती."
जयसिंह उसकी बात पर मन ही मन मुस्कुराए.
"हाहा… अच्छा जी. चलो कोई बात नहीं. अब तो तुम यहीं हॉस्टल में रहा करोगी, सो जब भी मैं दिल्ली आऊँगा तो तुम यहाँ आ जाया करना मेरे पास, होटल में."
जयसिंह का आशय अभी मनिका कैसे समझ सकती थी, सो वह खुश हो गई और बोली,
"Wow! हाँ पापा ये तो मैंने सोचा ही नहीं था. I wish, मेरा एडमिशन जल्दी से हो जाए… और आपकी business meetings भी जल्दी-जल्दी हुआ करें."
"हाहाहा… अरे हो जाएगा, उसकी फ़िक्र मत करो, नहीं हुआ तो मैं डोनेशन से करवा दूँगा.” जयसिंह बोले.
“ओह पापा, आप कितने अच्छे हो…” मनिका ने खिलते हुए कहा.
“चलो अब बताओ की डिनर रूम में मंगवाएं या नीचे रेस्टोरेंट में करना है?”

–​

मनिका के कहने पर वे होटल के रेस्टोरेंट में खाना खाने गए. जयसिंह ने मनिका से ही ऑर्डर करने को बोला. जब मनिका ने मेन्यु में लिखे महंगे रेट्स का जिक्र किया तो उन्होंने उसे पैसों की चिंता न करने को कहा. मनिका उनकी बात सुन खिल उठी और बोली,

"पापा सच मेरी फ्रेंड्स सही कहती हैं. आप सबसे अच्छे पापा हो."
"अरे हम डिनर ही तो कर रहे हैं. तुम्हारी फ्रेंड्स के घरवाले उन्हें खाना नहीं खिलाते क्या?" जयसिंह ने मजाकिया लहजे में कहा.
"ओहो पापा… कम से कम फाइव-स्टार रेस्टोरेंट में तो नहीं खिलाते हैं. आप को तो बस मेरी बात काटनी होती है." मनिका ने मुँह बनाते हुए कहा.
"तो मैं कौनसा तुम्हें यहाँ रोज़-रोज़ लाया करता हूँ." जयसिंह मनिका से ठिठोली करने के अंदाज़ में बोले.
"हा! पापा कितने खराब हो आप." मनिका ने झूठी नाराज़गी दिखाई, "देख लेना जब मेरा यहाँ एडमिशन हो जाएगा ना और आप डेल्ही आया करोगे तो मैं यहीं पे खाना खाया करूँगी." मनिका ने आँखें मटकाते हुए हक़ जताया.
"हाहाहा… अरे भई ठीक है अब आज के लिए तो कुछ ऑर्डर कर दो." जयसिंह हँसते हुए बोले.

जब मनिका ने ऑर्डर कर दिया, वे दोनों वैसे ही बैठे बतियाने लगे. जयसिंह मनिका के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे और बात-बात में उसकी टांग खींच रहे थे. मनिका भी हँसते हुए उनका साथ दे रही थी. वह मन ही मन अपने पिता के इस मजाकिया और खुशनुमा अंदाज़ को देखकर हैरान भी थी. कुछ देर बाद उनका डिनर आ गया, मनिका को एहसास हुआ कि उसे बहुत जोरों की भूख लगी थी, उसने सुबह के ब्रेकफास्ट के बाद ट्रेन में थोड़े से स्नैक्स ही खाए थे.

दोनों बाप-बेटी खाना खाने में तल्लीन हो गए. मनिका, जो पहली बार इतनी महंगी जगह खाना खाने आई थी, को खाना बहुत अच्छा लगा. वह मन में प्रार्थना कर रही थी कि उसका एडमिशन दिल्ली में ही हो जाए.

खाने के बाद जयसिंह ने मनिका की पसंदीदा, स्ट्रोबेरी आइसक्रीम ऑर्डर कर दी. फिर जब वेटर बिल ले कर आया तो उन्होंने उसे भी पाँच सौ रुपए की टिप दे डाली. अब तो मनिका उनके अंदाज़ से पूरी तरह से इम्प्रेस हो गई थी.

मनिका और जयसिंह अपने कमरे में लौट आए.

“Papa, the food was awesome no?” मनिका ने कमरे में आ कर बेड पर गिरते हुए कहा, "मेरा तो टम्मी फुल हो गया है."
"हम्म… देखें ज़रा…" कहते हए जयसिंह ने लेटी हुई मनिका के पेट पर हाथ फिराया.
मनिका की छोटी टी-शर्ट की वजह से उसका पेट ढँका हुआ नहीं था. जयसिंह के स्पर्श ने उसे गुदगुदा दिया था.
“हिहिहि… पापा! टिकलिंग होती है…" मनिका ने हँसते हुए उनका हाथ पकड़ लिया था.
“म्म!" जयसिंह ने मुस्का कर उसके गालों पे एक चपत लगा दी.
“Thank you papa… मेरे साथ डेल्ही आने के लिए." मनिका की आवाज़ में ख़ुशी साफ़ झलक रही थी.
“Anything for you my dear…"

जयसिंह बोले और बेड से उठ कर अपने सामान की तरफ़ चल दिए.

"तुम थक गई हो तो सो जाओ, मैं जरा नहा कर आता हूँ." जयसिंह ने अपने सूटकेस से पायजामा-कुरता निकालते हुए कहा.
"ओह नहीं पापा… आई मीन थक तो गई हूँ बट मैं भी शॉवर लेके नाईट-ड्रेस पहनूँगी, आप पहले नहा लो… ”

जयसिंह अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गए.

–​

बाथरूम का गेट बंद करते ही जयसिंह ने पहले पैंट खोल अपने कसमसाते लंड को आज़ाद किया. एक राहत भरी साँस ले उन्होंने शॉवर चला कर ठंडे पानी की फुहार से अपने उबलते जिस्म को शांत करने का प्रयास किया. लेकिन मनिका के जवान जिस्म की कल्पना जैसे उनका पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं थी. वे यंत्रवत अपना लंड सहलाने लगे.

"ओह मनिकाऽऽ! साली कमीनी, कुतिया… क्या पटाखा जवानी है साली की. कैसे मिलेगी ये मुझे… आह्ह!"

जयसिंह की उत्तेजना अब चरम पर पहुँचने वाली थी. जैसे ही उन्हें महसूस हुआ की वे झड़ने वाले हैं, वे एकदम से रुक गए. उनके मन में एक विचार आया था, कि अगर अभी वे स्खलित हो जाते हैं तो मनिका को लेकर उनके तन-मन में लगी आग, कुछ पल के लिए ही सही, बुझ जाएगी. जैसा कि आम-तौर पर सेक्स या हस्तमैथुन के बाद मर्द महसूस करते हैं. जयसिंह यह नहीं चाहते थे. सो उन्होंने तय किया की वे अपने प्लान के सफल होने से पहले अपने तन की आग को शांत नहीं करेंगे.

"और अगर प्लान फेल हो गया, तब तो जिंदगी भर हाथ में लेके ही हिलाना है." उन्होंने नाटकीय अंदाज़ में सोचा.

उधर बाहर बेड पर लेटी मनिका अपने पापा के नहा कर आने का वेट कर रही थी.

–​

मनिका बहुत खुश थी.

"ओह गॉड कितना exciting दिन था आज. पहली बार इतनी बड़ी सिटी में आई हूँ, hopefully अब यहीं रहूँगी. कितना कुछ है यहाँ घूमने-फिरने और शॉपिंग के लिए. वैसे मम्मी ने ठीक ही कहा था सुबह, ऐसे ही पैसे बर्बाद कर डाले मैंने वहाँ शॉपिंग करके, इस से अच्छा होता कि यहाँ से कर लेती… हम्म, कोई बात नहीं पापा से थोड़े और पैसे माँग लूंगी. वैसे भी उन्होंने कहा था कि पैसों की फ़िक्र न करूँ… हिहिही.”

मनिका मन ही मन सोच खिलखिलाई.

“And papa is so amazing, sweet and funny… और बुरे भी कैसे मेरी leg pulling कर रहे थे आज. ओह, नहीं-नहीं वे बुरे नहीं है! मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि हम Marriott में रुके हैं… जब सीमा और रश्मि को बताऊँगी तो जल मरेंगी… हाहाहा."

तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई, मनिका उठ बैठी, उसके पापा नहा कर बाहर निकल आए थे. जयसिंह बेड के पास आते हुए बोले,

"चलो मनिका तुम भी नहा आओ जल्दी से फिर बिस्तर में घुसते हैं. थक गए आज तो सफ़र करके, I am so sleepy."
“Yes papa." मनिका उठते हुए बोली.

जयसिंह की कही 'बिस्तर में घुसने' वाली बात, फिर एक बार, मनिका के अंतर्मन में हल्की सी आहट कर गई थी.

मनिका ने जल्दी से अपने कपड़े लिए और बाथरूम में घुस गई. मनिका ने अपने कपड़े उतारे व शॉवर ऑन कर नहाने लगी. उनके रूम की तरह वहाँ का बाथरूम भी बहुत शानदार था, उसमें तरह-तरह के शैम्पू और साबुनें रखी थी. शॉवर में पानी के लिए भी कई सेटिंग थी. मनिका मजे से नहाती रही. वह फिर एक बार सोचने लगी कि दिल्ली आ कर उसे कितना मजा आ रहा था. नहाते-नहाते उसने अपने अंत:वस्त्र खोले और धो कर एक तरफ रख दिए.

जब वह नहा ली, तो उसने पास की रैक पर रखे तौलिए की तरफ हाथ बढ़ाया और अपना तरोताजा हुआ जिस्म पोंछने लगी. तौलिया बेहद नरम था और मनिका का बदन नहाने के बाद थोड़ा सेन्सिटिव हो गया था. तौलिये के नर्म रोंओं के स्पर्श ने उसके रोंगटे खड़े कर दिए और उसकी जवान छाती पर गुलाबी निप्पल तन कर खड़े हो गए.

मनिका को ये एहसास बहुत भा रहा था. वो कुछ देर ऐसे ही उस नर्म तौलिए से अपने बदन को सहलाती खड़ी रही. फिर उसने तौलिया एक ओर रखा और अपने धोए हुए अन्त:वस्त्रों की तरफ हाथ बढ़ाया. उस एक पल में उसका सारा मजा फुर्र हो गया.

“Oh God…" उसके मुँह से खौफ भरी आह निकली.

–​

उधर जयसिंह ने रूम में एक ओर रखे काउच पर बैठ टीवी ऑन कर लिया था. परन्तु उनका ध्यान तो अपनी बेटी की जवानी पर ही लगा था. एक बार फिर उनके मन में उनकी अंतरात्मा की आवाज़ भी गूंजने लगी थी,

"ये शायद मैं ठीक नहीं कर रहा. मनिका मेरी बेटी है, मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है जो मैं उस के बारे में ऐसे गंदे विचार मन में ला रहा हूँ. पर क्या करूँ जब वो सामने आती है तो दिलो-दिमाग़ काबू से बाहर हो जाते हैं. साली की गांड… ओह मैं फिर वही सोचने लगा हूँ… कुछ समझ नहीं आ रहा. इतने सालों से मनिका तो मेरे सामने ही बड़ी हुई है पर अचानक एक दिन में ही मेरी बुद्धि कैसे भ्रष्ट हो गई? पर घर में साली मेरे सामने छोटी-छोटी कच्छीयाँ पहन कर भी तो नहीं आई… ओह्ह फिर वही अनर्थ सोच…"

जयसिंह बुरी तरह से विचलित हो उठे. तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला, जयसिंह की नज़र उनकी इजाजत के बिना ही उस ओर उठ गई. एक बार फिर उनका संकोच हवा हो गया.

–​

मनिका ने जैसे ही अपने अंत:वस्त्र उठाए थे उसे एहसास हुआ कि उसके पास नहाने के बाद पहनने के लिए ब्रा-पैंटी नहीं थी. घर पर तो वह अपने रूम में सोया करती थी सो रात में अंत:वस्त्र नहीं पहना करती थी. इसी भ्रम में वो सिर्फ अपनी नाईट-ड्रेस निकाल लाई थी. अपनी नाईट-ड्रेस का ख़याल आते ही मनिका पर एक और गाज गिरी थी, और उसके मुँह से वह ख़ौफ़ भरी आह निकल गई थी.

मनिका नाईट-ड्रेस भी वही निकाल लाई थी जो वह घर पर अपने कमरे में पहना करती थी, शॉर्ट्स और टी-शर्ट. वैसे तो उसके पापा ने उसे शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहने बहुत बार देखा था, लेकिन प्रॉब्लम कुछ और थी.

शॉर्ट्स और टी-शर्ट का यह जोड़ा वह काफ़ी समय से पहन रही थी, सो जवान होते जिस्म के साथ उसकी नाईट-ड्रेस छोटी होती चली गई थी. शॉर्ट्स की ये जोड़ी बमुश्किल उसके नितम्बों को ढंकती थी. उसकी टी-शर्ट भी टी-शर्ट कम और गंजी ज्यादा थी, जिसका कपड़ा भी बिलकुल झीना था.

मनिका का दिल जोरों का धड़क रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह ऐसे कपड़ों में अपने पापा के सामने कैसे जाएगी?

कुछ पल स्तब्ध खड़े रहने के बाद मनिका ने एक राहत भरी साँस ली. उसे ख़याल आया कि वह अपने पहले वाले कपड़े ही वापस पहन कर बाहर जा सकती है. हालाँकि उसके पास अंदर पहनने के लिए अंत:वस्त्र तो फिर भी नहीं थे. उसका दिल कुछ शांत हुआ. लेकिन जब वह अपनी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट लेने के लिए मुड़ी तो एक बार फिर उसका दिल धक से रह गया.

मनिका ने शॉवर से नहाते वक़्त कपड़े पास में ही टांग दिए थे. नहाते समय मस्ती में उसने इतना पानी उछाला था कि उसकी लेग्गिंग्स और टी-शर्ट पूरी तरह से भीग चुके थे. मनिका रुआंसी हो उठी. अब उस छोटी सी नाईट-ड्रेस को पहनने के सिवाय उसके पास कोई चारा नहीं बचा था.

मनिका ने धड़कते दिल से अपनी शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहनी और बाथरूम में लगे शीशे में देखा. उसकी साँसें और तेज़ चलने लगीं. उसे एहसास हुआ कि उसकी शॉर्ट्स छोटी नहीं, बहुत छोटी थीं. उसके दोनों गोल-मटोल नितम्ब शॉर्ट्स के नीचे से बाहर निकले हुए थे. उसने शॉर्ट्स को नीचे खींच कर अपनी इज़्ज़त ढंकने का प्रयास किया लेकिन शॉर्ट्स का स्ट्रेचेब्ल कपड़ा कुछ ही पल में सिकुड़ कर फिर से ऊपर हो गया.

ऊपर पहनी गंजीनुमा टी-शर्ट का भी वही हाल था. एक तो वह सिर्फ उसकी नाभि तक आती थी, और दूसरा उसके झीने कपड़े में उसका वक्ष उभर कर साफ़ दिखाई पड़ रहा था. नहाने के बाद उभर आए उसके दोनों निप्पल टी-शर्ट के कपड़े पर बटन से प्रतीत हो रहे थे. मनिका का सिर घूम गया, वह इन सब बातों पर पहले ध्यान न देने के लिए अपने-आप को कोस रही थी. विडंबना यह थी की उसकी माँ मधु ने सुबह उसे इसी बात के लिए टोका था.

किसी तरह मनिका ने बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई और मन ही मन प्रार्थना की के उसके पिता सो चुके हों. लेकिन वो बाहर निकलने को तैयार हुई तो उसके सामने एक और मुसीबत आ खड़ी हुई. उसने धो कर रखे अपने अंत:वस्त्र अभी तक नहीं उठाए थे, उनका ख़याल आते ही वह फिर उहापोह में फँस गई. अपनी थोंग-नुमा पैंटी और उसी से मेल खाती ब्रा को सुखाने के लिए बाथरूम के अलावा उसके पास कोई जगह नहीं थी. लेकिन यह बाथरूम वह अपने पिता के साथ शेयर कर रही थी.

"अगर पापा यह देख लेंगे तो पता नहीं क्या सोचेंगे… हाय! मैं भी कैसी गधी हूँ. पहले ये सब क्यूँ नहीं सोचा मैंने?"

मगर अब क्या हो सकता था. मनिका ने ब्रा-पैंटी को वहाँ लगे तार पर डाला और उन्हें एक तौलिए से ढँक दिया. फिर वह धड़कते दिल से बाहर निकल आई.

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04 - किस्मत

जैसे ही जयसिंह ने मनिका की तरफ देखा उनका कलेजा जैसे मुँह में आ गया. काउच बाथरूम के गेट के बिलकुल सामने रखा हुआ था, बाहर निकलती मनिका भी उन्हें सामने बैठा देख ठिठक कर खड़ी हो गई. उसने झट से अपने हाथ अपनी छाती के सामने फोल्ड कर लिए. वह शर्म से मरी जा रही थी. उसने अपने-आप में सिमटते हुए अपना एक पैर दूसरे पैर पर रख लिया और नज़रें नीची किए खड़ी रही.

जयसिंह के लिए यह सब मानो स्लो-मोशन में चल रहा था. मनिका को इस तरह अधनंगी देख उनकी अंतरात्मा की आवाज़ उड़न-छू: हो चुकी थी. उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था. मनिका के पहने नाम मात्र के कपड़ों में से झलकते उसके जिस्म ने जयसिंह के दिमाग़ के फ्यूज उड़ा दिए थे. ऊपर से वह उस सेक्सी पोज़ में खड़ी थी.

मनिका ने सकुचा कर अपने सूटकेस की तरफ कदम बढ़ाए. जयसिंह की तन्द्रा भी टूटी.

असल में यह सब एक ही पल में घटित हो गया था. जयसिंह को सूटकेस की तरफ़ जाती मनिका का अधोभाग नज़र आ रहा था. उसकी शॉर्ट्स में से बाहर झांकते नितम्बों को देख उनके लंड की नसें फटने को हो आई थी.

"ये मनिका तो साली मेनका निकली!" उन्होंने मन में सोचा.

मगर इस सब के बावजूद भी उनका अपनी सोच पर पूरा काबू था. मनिका के हाव-भाव देखते ही वे समझ गए थे कि चाहे जो भी कारण हो मनिका ने ये कपड़े जान-बूझकर तो नहीं पहने थे.

"जिसका मतलब है कि वह अब कपड़े बदलने की कोशिश करेगी… नहीं! ये मौका मैं हाथ से नहीं जाने दे सकता…" जयसिंह ये सोचते ही उठ खड़े हुए.
"मनिका!"
"जी पापा…?" मनिका उनके संबोधन से उचक गई और उसने सहमी सी आवाज़ में पूछा.
"तुम जरा टीवी बंद करके बिस्तर में चलो. मैं टॉयलेट जा कर आता हूँ." जयसिंह ने कहा.
"जी…" मनिका ने छोटा सा जवाब दिया.

बाथरूम में जयसिंह का दिमाग़ तेज़ी से दौड़ रहा था.

"आखिर क्यूँ मनिका ने ऐसे कपड़े पहन लिए थे?" उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, पर उनका एक काम बन गया था.
“शुक्र है, मैंने मनिका को देख चेहरे पर कोई भाव नहीं आने दिए वरना खेल शुरू होने से पहले ही बिगड़ जाता." उन्होंने अपने फड़फड़ाते लंड को मसल कर शांत करते हुए सोचा.

जयसिंह ने जाने-अनजाने में ही बेहद दिमागी चाल चल डाली थी. वे जानते थे कि लड़कियाँ देखने वाले की नज़र से ही उसकी नीयत भांपने में माहिर होती है. उन्होंने मनिका को एक पल देखने के बाद ही ऐसा व्यक्त किया था जैसे सब नॉर्मल हो. अगर उनके चेहरे पर उनकी असली फीलिंग्स आ गई होती तो मनिका, जो अभी सिर्फ उनके सामने असहज थी, उनसे सतर्क हो जाती.

उधर कमरे में मनिका घबराई सी खड़ी थी. उसने सोचा था कि वह जल्दी से दूसरे कपड़े लेकर चेंज कर लेगी. लेकिन जयसिंह को इस तरह बिलकुल अपने सामने पा उसकी घिग्घी बंध गई थी और अब उसके पिता बाथरूम में घुस गए थे. मनिका ने जयसिंह के कहे अनुसार टीवी ऑफ कर दिया था और जा कर बेड के पास खड़ी हो गई. सामने उसका सूटकेस खुला हुआ था पर वह समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या करे?

एक बार तो उसने सोचा कि,
"जब तक पापा बाथरूम में है मैं ड्रेस बदल लेती हूँ."
पर अगले ही पल उसे एहसास हुआ की,
"अगर पापा बीच में बाहर निकल आए तो मैं नंगी पकड़ी जाऊँगी.”

मनिका सिहर उठी.

"वैसे भी पापा टॉयलेट गए हैं, उसमें कितना तो टाइम लगेगा."
मनिका का दिमाग़ आगे से आगे चलता जा रहा था,
"मैं बाहर नंगी, पापा अंदर नंगे… shit Manika, what are you thinking?”

उसने अपनी सोच को कोसते हुए विराम दिया.

नंगेपन का एहसास अब उसे विचलित करने लगा था, उधर जयसिंह भी बाहर नहीं आ रहे थे. ऊपर से उनके बाहर आने पर भी मनिका को बाथरूम तक उनके सामने ही जाना पड़ता. सो उसने तय किया कि अभी वह बेड में घुस कम्बल ओढ़ कर अपना बदन ढांप लेगी,

"और सुबह पापा से पहले उठ कर कपड़े बदल लूंगी."

उसने अपना सूटकेस बंद कर एक तरफ रखा और बिस्तर में घुस गई.

"पर ये क्या…? ये ब्लैंकेट तो डबल-बेड का है!"

मनिका बिस्तर में सिर्फ एक ही कम्बल पा चकरा गई.

उसे क्या पता था की जयसिंह ने रूम एक कपल के लिए बुक कराया था.


-​

"पापा!"

आख़िरकार जब जयसिंह बाथरूम से बाहर आए तो कम्बल ओढ़े बैठी मनिका चिंतित स्वर में कहा.

"क्या हुआ मनिका? सोई नहीं तुम?" जयसिंह ने बनावटी हैरानी से पूछा.

मनिका अपने-आप को पूरी तरह कम्बल से ढंके हुए थी.

"पापा यहाँ तो सिर्फ एक ही blanket है!" मनिका की आवाज़ में घबराहट की झलक थी.
"हाँ तो डबल बेड का होगा न?" जयसिंह ने बिलकुल आश्चर्य नहीं जताया.
"जी." मनिका हौले से बोली.
"हाँ तो फिर क्या दिक्कत है?" जयसिंह ने ऐसे पूछा जैसे कोई बात ही न हो.
"जी… क… कुछ नहीं मुझे लगा… कि कम से कम दो blankets मिलते होंगे सो…"

मनिका से आगे कुछ कहते नहीं बना था.

"क्या मुझे पापा के साथ कम्बल शेयर करना पड़ेगा… Oh God!"

उसने मन में सोचा और झेंप गई.

"हाहाहा! अरे जब मैं यहाँ पहली बार आया था तब मुझे भी अजीब लगा था. मैंने सोचा कि ये एक कम्बल देना भूल गए हैं, पर फिर पता चला इन रूम्स में यही डबल-बेड वाला एक ब्लैंकेट होता है." जयसिंह बोले.

मनिका असहज सी बैठी उन्हें ताक रही थी, तो उन्होंने आगे कहा,

"हद होती है मतलब दस हज़ार रुपए एक रात का रेट और उसमे इंसान को सिर्फ एक कम्बल मिलता है…" उन्होंने हँस कर यह बात कही थी ताकि मनिका थोड़ी सहज हो सके.
"हैं?" मनिका चौंकी, "पापा इस रूम का रेंट ten thousand है?" मनिका एक पल के लिए अपनी लाज-शर्म और चिंता भूल गई थी.
"अरे भई भूल गई? फाइव स्टार है ये…" जयसिंह फिर से मुस्काए.
“Oh god papa, फिर भी, it’s so costly?" मनिका बोली.
"मनिका मैंने कहा न तुम खर्चे की चिंता मत करो, just enjoy." जयसिंह बिस्तर पर आते हुए बोले.

उन्हें बिस्तर पर आते देख मनिका ने अनायास ही कम्बल अपनी ओर खींच लिया. जयसिंह समझ गए की वह अभी सहज नहीं हुई थी, और करती भी क्या? सो उन्होंने एक बार फिर हँस कर उसका डर कम करने के उद्देश्य से कहा,

“अच्छा हुआ आज तुम मेरे साथ हो, पिछली बार तो मीटिंग से मेरे बिज़नस पार्टनर का एक रिश्तेदार साथ में टंग आया था. सोचो, उसके साथ एक कम्बल में सोना पड़ा था. ऊपर से उसने शराब पी रखी थी, सारी रात सो नहीं पाया था मैं.”

इस बार मनिका भी हँस पड़ी, “Oh shit papa… सच में? हाहाहा."


जयसिंह कम्बल में घुस कर पीठ के बल लेट गए. कुछ देर बाद मनिका भी थोड़ा सहज होने लगी क्योंकि अब उसका बदन ढंका हुआ था. ऊपर से, उसके पिता ने अगर उसके कपड़े नोटिस भी किए थे तो उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया था.

जयसिंह ने हाथ बढ़ा कर बेड-साइड से रूम की लाइट ऑफ कर दी और पास की टेबल पर रखा नाईट-लैम्प जला दिया.

"चलो मनिका थक गई होगी तुम भी…" जयसिंह मनिका की तरफ पलट कर बोले, “Good night.”
“Good Night Papa." मनिका ने नाईट-लैम्प की धीमी रौशनी में मुस्कुरा कर कहा, “Sweet dreams."

जयसिंह ने अब मनिका की तरफ करवट ली और हाथ बढ़ा कर एक पल के लिए उसके गाल पर रख सहलाते हुए बोले,
"अच्छे से सोना. Tomorrow is your big day."

मनिका जयसिंह की बात सुन मुस्कुरा दी और आँखें बंद कर ली. हालाँकि इंटर्व्यू को लेकर वो थोड़ी चिंतित थी, लेकिन उसके मन में एक उत्साह भी था. “अगले दिन क्या होगा, क्या उसका एडमिशन यहाँ हो जाएगा?" सोचते-सोचते उसकी आँख लग गई.

–​

मनिका और जयसिंह को सोए हुए करीब आधा घंटा हो गया था.

जयसिंह ने धीरे से आँखें खोली, मनिका दूसरी तरफ करवट लिए सो रही थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे उठ बैठे. उन्होंने हौले से मनिका के तन से कम्बल खींचा, मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. उनका हौंसला थोड़ा बढ़ गया, उन्होंने धीरे-धीरे कम्बल नीचे करना शुरू किया. मनिका ने कम्बल को अपनी छाती के पास हाथ से पकड़ रखा था. सो वे सिर्फ़ पीछे से ही कम्बल हटा पा रहे थे.
कुछ ही देर में उन्होंने अपनी बेटी को पीछे से पूरी तरह उघाड़ दिया.

नाईट-लैम्प की हल्की रौशनी में मनिका की दूध सी सफ़ेद, नंगी जाँघें चमक रहीं थी. वह अपने पाँव थोड़ा मोड़ कर लेटी हुई थी जिससे उसकी शॉर्ट्स थोड़ी और ऊपर हो कर उसके नितम्बों के बीच की दरार में फँस गई थी. जयसिंह तो जैसे बावले हो गए. वे कुछ देर वैसे ही उसे निहारते रहे पर फिर उनसे रहा न गया.

उन्होंने अपना काँपता हुआ हाथ बढ़ा कर उसकी शॉर्ट्स को धीरे-धीरे ऊपर करना शुरू किया. उन्होंने मनिका के गोल-मटोल कूल्हे लगभग नग्न कर दिए थे. उनके मन के पाप ने उन्हें थोड़ा और उकसाया. वे कुछ देर डर और कामिच्छा से जूझते रहे फिर उन्होंने अपनी बेटी के नंगे अधोभाग पर हौले से एक चपत लगा दी. मनिका फिर भी बेखबर सोती रही.

पर जयसिंह इस से ज्यादा हिमाकत न कर सके. वे लेट गए और अपनी बेटी की मोटी, नंगी गांड को निहारते-निहारते कब उनकी आँख लग गई उन्हें पता भी न चला.

–​

किसी के बोलने की आवाजें सुन मनिका की आँख खुली, सुबह हो चुकी थी. वह उनींदी सी लेटी थी कि उसे कहीं दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आई. फिर अचानक मनिका को अपने दिल्ली के एक होटल में अपने पिता के साथ होना याद आया. अगले ही पल उसे अपने पहने कपड़े भी याद आ गए और साथ ही उन्हें सुबह जल्दी उठ कर बदलने का फैसला भी.

मनिका की नींद एक ही पल में उड़ चुकी थी. उसने हाथ झटक कर रात को ओढ़े अपने कम्बल को टटोलने की कोशिश की, लेकिन कम्बल वहाँ नहीं था. उस नंगेपन के एहसास ने मनिका को झकझोर कर रख दिया. उसके बदन को जैसे लकवा मार गया था. धीरे-धीरे उसे अपने कपड़ों की अस्त-व्यस्त स्थिति का अंदाजा होता चला जा रहा था. उसकी टी-शर्ट लगभग पूरी तरह से ऊपर हो रखी थी, ग़नीमत थी कि उसकी छाती अभी भी ढंकी हुई थी. पर उसकी शॉर्ट्स पूरी तरह से ऊपर हो चुकीं थी और उसके नितम्ब और जाँघें पूरी तरह नंगे थे.

फिर उसे बेड पर बैठे उसके पिता जयसिंह की मौजूदगी का भी भान हुआ.

–​

मनिका के हाथ झटकने के साथ ही जयसिंह अलर्ट हो गए थे. अभी तक मनिका का मुँह दूसरी तरफ था सो वे बेफिक्र उसका नंगा बदन ताड़ रहे थे. उन्होंने देखा की अचानक मनिका की नंगी टांगों और गांड पर दाने से उभर आए थे. असल में मनिका के जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए थे. वे समझ गए की मनिका को अपने नंगेपन का एहसास हो चुका है. उनका लंड जो पहले ही खड़ा था यह देखने के बाद बेकाबू हो गया.

"आह तो उठ ही गई रंडी." उनका मन खिल उठा.

जयसिंह कब से उसके उठने का इंतज़ार कर रहे थे, ताकि उसकी बदहवास प्रतिक्रिया देख सकें. उन्होंने देखा कि मनिका ने हौले से अपना हाथ अपनी नंगी गांड पर ला कर अपनी शॉर्ट्स को नीचे करने की कोशिश की थी. इतना तो उनके लिए काफी था.

"उठ गई मनिका?" वे बोल पड़े.

मनिका को जैसे बिजली का झटका लगा था, वह एकदम से उठ बैठी और शर्म भरी नज़रों से एक पल अपने पिता की तरफ देखा.

जयसिंह बेड पर उसके पास ही बैठे थे. उनके एक हाथ में चाय का कप था और दूसरे में दिन का अखबार. उनकी नज़रें मिली, जयसिंह के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. मनिका एक पल से ज्यादा उनसे नज़रें मिलाए न रख सकी.

"नींद खुल गई या अभी और सोना है?" जयसिंह ने प्यार भरे लहजे में मनिका से फिर पूछा.
"नहीं पापा…" मनिका ने धीमे से कहा.
"अच्छे से नींद आ तो गई थी न? कभी-कभी नई जगह पर नींद नहीं आया करती." जयसिंह ऐसे बात कर रहे थे जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
"नहीं पापा आ गई थी." मनिका सकुचाते हुए बोली और एक नज़र उनकी ओर देखा. उसने पाया की उनका ध्यान तो अखबार में लगा था.
"आप अभी किस से बात कर रहे थे?" मनिका ने थोड़ी हिम्मत कर पूछा.
"अरे तुम उठी हुई थी तब?" जयसिंह ने अनजान बनते हुए कहा.
"रूम-सर्विस से चाय ऑर्डर की थी वही लेकर आया था लड़का. मुझे लगा तुम नींद में हो, नहीं तो तुम्हारे लिए भी कुछ जूस वग़ैरह ऑर्डर कर देते साथ के साथ. बस अभी-अभी ही तो गया है वो." उन्होंने आगे बताया.

मनिका का चेहरा शर्म से लाल टमाटर सा हो चुका था.

“Oh god, oh god, oh god! रूम-सर्विस वाले ने भी मुझे इस तरह नंगी पड़े देख लिया? हे भगवान! उसने क्या सोचा होगा…? पर पापा ने रूम बुक कराते हुए बताया तो होगा कि मैं उनकी बेटी हूँ… लेकिन ये बात रूम-सर्विस वाले को क्या पता होगी… oh shit! और मेरा कम्बल भी…?" मनिका ने देखा कि कम्बल उसके पैरों के पास पड़ा था. "नींद में मैंने कम्बल भी हटा दिया… शिट."
उसने एक बार फिर जयसिंह को नजरें चुरा कर देखा, उनका ध्यान अभी भी अखबार में ही लगा था.

मनिका के विचलित मन में एक पल के लिए विचार आया,

"क्या पापा ने मेरा कम्बल…? Oh god! नहीं ये मैं क्या सोच रही हूँ पापा ऐसा थोड़े ही करेंगे. मैंने ऐसी गन्दी बात सोच भी कैसे ली… छि:."

लेकिन उस विचार के पूरा होने से पहले ही मनिका ने अपने-आप को धिक्कारते हुए शर्मिंदगी से सिर झुका लिया.

अब मनिका मन ही मन इस शर्मनाक परिस्थिति से निकलने की राह ढूंढने लगी,
"जब तक पापा का ध्यान न्यूज़पेपर में लगा है, मैं जल्दी से बाथरूम में घुस सकती हूँ. पर अगर पापा ने मेरी तरफ देख लिया तो…? ये मुई शॉर्ट्स भी पूरी तरह से ऊपर हो गई है."

मनिका कुछ देर इसी उधेड़बुन में बैठी रही पर उसे और कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. सो आखिर उसने धीरे से जयसिंह को संबोधित किया.

"पापा?"
"हूँ?" जयसिंह जानबूझकर मनिका को इग्नोर कर रहे थे.
"वो मैं… मैं कह रही थी कि मैं एक बार फ़्रेश हो लेती हूँ फिर कुछ ऑर्डर कर देंगे." मनिका अटकते हुए बोली.
"ओके. जैसी आपकी इच्छा." जयसिंह ने शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा.
"हेहे पापा." मनिका भी थोड़ा झेंप के हँस दी. जयसिंह फिर से अखबार पढ़ने में तल्लीन हो गए.

मनिका धीरे से बिस्तर से उतर कर अपने सामान की ओर बढ़ी. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.

"क्या पापा ने पीछे से मेरी तरफ देखा होगा?"

यह सोच उसके बदन में जैसे बुख़ार सा आ गया और वह थोड़ा लड़खड़ा उठी.

उसने अपना सूटकेस खोला और एक जोड़ी ब्रा-पैंटी व एक जीन्स और टॉप निकाला. उसने कनखियों से एक नज़र फिर जयसिंह की तरफ देखा, वे अभी भी अखबार ही पढ़ रहे थे. आशंकित सी मनिका तेज़ क़दमों से चलती हुई बाथरूम में जा घुसी.

–​

मनिका के बाथरूम में घुसने तक जयसिंह अपनी पूरी इच्छाशक्ति से अखबार में नज़र गड़ाए बैठे रहे थे. लेकिन बाथरूम का गेट बंद होते ही उन्होंने अखबार एक ओर फेंका और अपने कसमसाते लंड को दबा कर काबू में लाने की कोशिश करने लगे.

"हे भगवान! जाने कब शांति मिलेगी इस बेचारे औजार को…" जयसिंह ने तड़प कर आह भरी. "आज साली रांड का इंटर्व्यू भी है… देखो आज क्या रूप धर कर बाहर निकलेगी… ओह! इंटर्व्यू से याद आया… साली कुतिया के कॉलेज में फ़ोन कर अपॉइंटमेंट भी तो लेनी है."

सो जयसिंह ने पास पड़े अपने मोबाइल से मनिका के कॉलेज का नंबर डायल किया. लेकिन उन्हें यह कॉल उनकी ज़िंदगी बदल देने वाला था.

"Hello?" जयसिंह ने फोन उठाने की आवाज़ सुन कहा “Amity University?"
“Yes sir, good morning.” सामने से आवाज़ आई.
“Yes, I am calling to confirm an appointment for my daughter’s interview for MBA entrance." जयसिंह ने कहा.
“Okay sir, may I know her name?"
“Yes… ah… Manika Singh”
“Thank you sir, when would your daughter be able to come for the interview?"

जयसिंह कुछ समझे नहीं, इंटर्व्यू तो आज ही था न?

“When..? Sorry, I did not understand.” उन्होंने पूछा.
“Well sir, MBA के इंटर्व्यू अगले 15 दिन तक चलेंगे, so your daughter can take an appointment as per her convenience."
"ओह." जयसिंह का मन नाच उठा था.

उन्होंने मन ही मन अपनी किस्मत को धन्यवाद दिया और बोले,

“हमें दिल्ली आने में थोड़ा टाइम लगेगा, तो आप हमें लास्ट दिन स्लॉट दे दीजिए. वैसे भी मेरी डॉटर को अभी थोड़ा और प्रेपरेशन करना है… हेहे."
“Okay sir, no problem, I will book your slot for the last day.”

अब जयसिंह को दिल्ली में रुके रहने के लिए कोई बहाना बनाने की ज़रूरत नहीं थी.

–​

उधर बाथरूम में मनिका के मन में अलग ही उथल-पुथल मची हुई थी.

"ये कैसा अनर्थ हो गया. सोचा था सवेरे जल्दी उठ जाऊँगी पर आँख ही नहीं खुली, ऊपर से पापा और उठे हुए थे… वे तो वैसे भी रोज जल्दी ही उठ जाते हैं… शिट मैं ये जानते हुए भी पता नहीं कैसे भूल गई? उन्होंने मुझे सोते हुए देखा तो होगा ही, हाय राम…"

यह सोचते हुए मनिका की कंपकंपी छूट गई. उसने आज शॉवर ऑन नहीं किया था और बाथटब में बैठ कर नहा रही थी.

"और तो और वह रूम-सर्विस वाला वेटर भी मुझे इस तरह देख गया… हाय… और पापा मेरे पास बैठे थे… क्या सोचा होगा उसने हमारे बारे में…?"

मनिका इस से आगे नहीं सोच पाई और अपनी आँखें भींच ली. उसे बहुत बुरा फील हो रहा था.

अब वह धीरे-धीरे अपने बदन पर साबुन लगा नहाने लगी. परंतु कुछ क्षणों में ही उसके विचारों की धार एक बार फिर से बहने लगी.

"पर पापा का बर्ताव… उन्होंने मुझे इस तरह देख कर भी… वो तो बिलकुल नॉर्मल बात कर रहे थे… पर बेचारे कहते भी क्या? मैं उनकी बेटी हूँ, मुझे ऐसे देख कर शायद उन्हें भी शर्म आ रही हो. हाँ, तभी तो पापा अखबार में नज़र गड़ाए बैठे थे… और जब मैंने उनसे बात कर रही थी तब भी मेरी तरफ़ नहीं देख रहे थे… हाय… papa is so nice.”

मनिका ने मन ही मन जयसिंह की सराहना करते हुए सोचा.

"ये तो पापा हैं जो मुझे कुछ नहीं कहते… अगर मम्मी को पता चल जाए इस बात का तो… तूफ़ान खड़ा कर दें वो तो… thank god it’s only me and papa… पर अब से अपने रहने-पहनने का पूरा ख़याल रखूँगी."

जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को बेड पर ही बैठे पाया. इस बार मनिका पूरे कपड़ों में थी और उसने बाथरूम में से अपने अंत:वस्त्र भी ले लिए थे. उसे देख जयसिंह मुस्कुराए और बेड से उठते हुए बोले,

"नहा ली मनिका?"
"जी पापा." मनिका ने हौले से मुस्का कर कहा.
पूरे कपड़े पहने होने की वजह से उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था.
"तो फिर अब मुझे यह बताओ कि तुम्हारे call letter में क्या लिखा हुआ था?" जयसिंह ने पूछा.

मनिका कुछ समझी नहीं.

"क्यूँ पापा? उसमें तो बस यही लिखा था कि MBA के इंटर्व्यू 12 जुलाई से…”
मनिका बोल ही रही थी कि जयसिंह ने उसकी बात बीच में ही काट दी,
"मतलब उसमें लिखा था 12 जुलाई से शुरू होने हैं, ना कि 17 जुलाई को है?
“ज… जी पापा." मनिका को कुछ समझ नहीं आ रहा था.
"हम्म… अभी मैंने तुम्हारे कॉलेज में बात करी थी. उन्होंने कहा है कि इंटर्व्यू पन्द्रह दिन चलेंगे और पता है..? आपका इंटर्व्यू लास्ट डे को है." जयसिंह ने मनिका से नज़र मिलाई.
"Oh shit." मनिका ने साँस भरी.
"हाँ वही." जयसिंह मुस्कुरा कर बोले.
"पापा! आपको मजाक सूझ रहा है! अब हमें पंद्रह दिन बाद फिर से आना पड़ेगा." मनिका सीरियस होते हुए बोली. "हमने फ़ालतू इतना खर्चा भी कर दिया है… रुकिए मैं कॉलेज फ़ोन करके पूछती हूँ कि क्या वो मेरा इंटर्व्यू पहले ले सकते हैं.”
"मैं वो भी पूछ चुका हूँ, उन्होंने कहा कि, नहीं हो पाएगा क्यूँकि दूसरे लोगों ने स्लॉट बुक कर लिए हैं.” जयसिंह ने कहा.
"ओह." मनिका का मूड ऑफ़ हो गया, "तो अब हमें वापस ही जाना पड़ेगा मतलब."
"हाँ वो भी कर सकते हैं." जयसिंह ने उसे स्माइल दी, "या फिर…"

और इतना कह कर बात अधूरी छोड़ दी.

"हैं? क्या बोल रहे हो पापा आप…? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा." जयसिंह की गोल-गोल बातें मनिका का असमंजस बढ़ाती जा रहीं थी.
"अरे भई! या फिर हम तुम्हारा इंटर्व्यू हो जाने तक यहीं रुक सकते हैं." जयसिंह ने कहा.

मनिका जयसिंह का सुझाव सुन आश्चर्यचकित रह गई. उसे विश्वास नहीं हुआ कि पापा उसे अगले पंद्रह दिन के लिए वहीं, उस आलीशान होटल में रुके रहने को कह रहे थे. पिछली रात यहाँ का रूम रेंट सुन कर ही उसके तो होश उड़ गए थे.

उसने अपनी दुविधा जयसिंह को बताई.

"अरे भई कितनी बार समझाना पड़ेगा कि पैसे की चिंता न किया करो तुम. हाथ का मैल है पैसा…" जयसिंह डायलॉग मार हँस दिए.
"ओहो पापा… फिर भी…" मनिका ने असमंजस से कहा.

वैसे मन तो उसका भी रुकने का था. फिर जब जयसिंह ने उस से कहा कि इतने दिन वे दिल्ली में घूम-फिर लेंगे तो मनिका की रही-सही आनाकानी भी जाती रही.

"लेकिन पापा! घर पे तो हम दो दिन का ही बोल कर आए हैं ना?" मनिका ने फिर थोड़ा आशंकित हो कर पूछा, "और आपका ऑफिस भी तो है?"
"ओह हाँ! मैं तो भूल ही गया था. तुम अपनी मम्मी से ना कह देना कहीं कि हम यहाँ घूमने के लिए रुक रहे हैं… मरवा दोगी मुझे, वैसे ही वो मुझ पर तुम्हें बिगाड़ने का इलज़ाम लगाती रहती है." जयसिंह ने मनिका को एक शरारत भरी स्माइल दी.
"ओह पापा हाँ ये तो मैंने सोचा ही नहीं था." मनिका ने माथे पर हाथ रख कहा. फिर उसने भी शरारती लहजे में जयसिंह को छेड़ते हुए कहा, "इसका मतलब डरते हो मम्मी से आप, है ना? हाहाहा…"
"हाहा." जयसिंह भी हँस दिए, "लेकिन ये मत भूलो की यह सब मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूँ." वे बोले.
"ओह पापा आप कितने अच्छे हो." मनिका ने मुस्कुरा उठी, "पर आपका ऑफिस?"
"अरे ऑफिस का मालिक तो मैं ही हूँ. फ़ोन कर दूंगा माथुर को, वो सम्भाल लेगा सब."
"पापा?" मनिका उनके करीब आते हुए बोली.
"अब क्या?" जयसिंह ने बनते हुए पूछा.
“Papa, I love you so much. You are really the best…” मनिका ने नेहिल नज़रों से उन्हें देख कर कहा.

जयसिंह एक बार फिर मनिका के गाल पर हाथ रख सहलाने लगे और उसे अपने थोड़ा और करीब ले आए. मनिका उन्हें देख कर मंद-मंद मुस्का रही थी, जयसिंह ने आँखों में चमक ला कर कहा,

"वो तो मैं हूँ ही… हाहाहा." और ठहाका लगा हँस दिए.
“Papa! You are so naughty…" मनिका भी खिलखिला कर हँस दी.

जयसिंह ने अब उसे बाजू में लेकर अपने से सटा लिया और बोले,
"तो फिर हम कहाँ घूमने चलें बताओ?"

–​

जयसिंह के पास अब पंद्रह दिन की मोहलत थी.

अभी तक उनकी किस्मत ने उनका काफी साथ दिया था. जाने-अनजाने में मनिका से हुई गलतियाँ का फायदा उठाने में वे सफल रहे थे. पिछली रात मनिका को अर्धनग्न देखने के बाद भी उन्होंने जो संयम बरता था उसकी बदौलत वे मनिका का भरोसा जीतने में कामयाब रहे थे. उनकी प्रतिक्रिया देख मनिका को भी लगा के उसके पापा बहुत खुले विचारों के हैं. इसकी बदौलत उनकी सोची-समझी साज़िश अब सफल होने लगी थी.

मनिका बिना किसी आनाकानी, अपनी माँ से उनके वहाँ रुकने की बात को छिपाने के लिए मान गई थी.

लेकिन जयसिंह जानते थे इतनी सी सफलता पाते ही हवा में उड़ना ठीक नहीं, अभी तक जो हुआ मनिका की वजह से हुआ था, उनकी अग्निपरीक्षा तो अभी बाक़ी थी.

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When in Vietnam
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05 - दिल्ली-दर्शन

जयसिंह ने होटल के रिसेप्शन पर फ़ोन करके एक टैक्सी कैब बुक करवा ली और मनिका से बोले,

"मैं भी नहा के रेडी हो जाता हूँ तब तक तुम रूम-सर्विस से कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर दो."
"जी पापा." मनिका ख़ुशी-ख़ुशी बोली, “आप क्या लोगे?”

मनिका फ़ोन के पास रखा मेन्यु उठा कर देखने लगी.

“जो तुम्हें ठीक लगे कर दो.” बोल कर जयसिंह नहाने चले गए.

कुछ देर मेन्यु उलट पलट कर मनिका ने mixed fruit juice, choco chips shake और grilled vegetable sandwich का ऑर्डर कर दिया. फिर वह टीवी ऑन कर रूम-सर्विस के आने का इंतज़ार करने लगी.

उसने टीवी चला तो लिया था लेकिन उसका ध्यान उसमें नहीं था. वह बस बैठी हुई चैनल बदल रही थी.

"ओह कितना मज़ा आ रहा है, हम यहाँ दो हफ़्ते और रुकने वाले हैं..! और पापा ने घर पर क्या बहाना बनाया है… कि इंटर्व्यू तीन राउंड में होगा सो उसमें टाइम लग जाएगा… कैसे झूठे हैं ना पापा भी… और मम्मी बेवक़ूफ़ मान भी गई, हाहाहा! लेकिन बेचारे पापा भी क्या करें, मम्मी की बड़-बड़ से बचने के लिए झूठ बोल देते हैं बस. उन्होंने कहा कि वे मुझे यहाँ घुमाने के लिए रुक रहें है… ओह पापा, कितने कूल हो आप!” सोचते-सोचते मनिका के चेहरे पर मुस्कान तैर गई.

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, उनका ब्रेकफास्ट आ गया था.

मनिका ने उठ कर दरवाज़ा खोला, सामने रूम-सर्विस वाला वेटर एक ट्राली लिए खड़ा था.

“Your order ma’am.” उसने अदब से मुस्कुरा कर कहा.

मनिका एक तरफ हट गई और वह ट्राली को धकेलता हुआ अन्दर आ गया.

मनिका ने उसके पीछे से आते हुए कहा, “Leave it here, we will manage.”
“Yes ma’am.” लड़के ने इधर-उधर नज़र घुमा कर कहा.

वह मनिका को देख मुस्कुरा रहा था.

मनिका ने भी उसे एक हल्की सी स्माइल दे दी. लेकिन वह फिर भी वहीं खड़ा रहा.

मनिका को समझ आ गया कि वो टिप लेने के लिए खड़ा है. उसे बेड-साइड पर रखा जयसिंह का पर्स नज़र आया, वो गई और पर्स से पाँच सौ रुपए निकाल कर वेटर की तरफ बढ़ा दिए.

लेकिन वेटर ने नोट न लेते हुए कहा,
“Oh no ma’am, thank you very much. I already enjoyed my tip this morning, it was a pleasure serving you.”
और एक कुटिल मुस्कान बिखेर दी.

एक पल तो मनिका समझी नहीं, फिर उसका आशय समझते ही शर्म से लाल हो गई.

ये वही वेटर था जो सुबह जयसिंह को चाय देने आया था, जब वह उनकी बगल में अधनंगी पड़ी हुई थी. वेटर के जाने की आहट होने के बाद भी मनिका की नज़र उठाने की हिम्मत नहीं हुई थी. कुछ पल बाद वह जा कर बेड पर बैठ गई.

"कैसा कमीना था वो वेटर… हाय, साला कैसी गन्दी हँसी हँस रहा था, कुत्ता." मनिका ने उस वेटर की हरकत पर गुस्सा करते हुए सोचा.

“Oh god! It’s so embarrassing… और ये आदमी सब गन्दी सोच के ही होते हैं… नहीं-नहीं, पापा तो वैसे नहीं है. कितने कूल हैं वो… उन्होंने एक बार भी नज़र उठा कर नहीं देखा था और एक ये वेटर… हुह."

उसका यह सोचना हुआ कि जयसिंह भी नहा कर निकल आए.

"हेय पापा!" मनिका उन्हें देख प्यार से बोली.

वह उन्हीं के बारे में सोच रही थी इसलिए उन्हें देख उसके मुँह से उसके मन की बात निकल आई थी.

“हाँ जी.” जयसिंह ने भी उसी अंदाज़ में कहा, "आ गया खाना?" उनकी नज़र फ़ूड-ट्राली पर पड़ी.
"हाँ पापा." मनिका वेटर की बात को मन से झटककर बोली.
"तुमने कर लिया ब्रेकफास्ट?" उन्होंने पूछा.
“No papa! आपके बिना कैसे कर सकती हूँ." मनिका ने मुँह बनाते हुए कहा.
"जैसे हर काम तुम मेरे साथ ही करती हो…" जयसिंह के मुँह से अचानक फूट निकला.

पर बोलने के साथ ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया था और वे चुप हो गए.

"पापा! ऐसे क्यों बोल रहे हो आप?" मनिका ने हैरत से पूछा.

जयसिंह अब तक संभल चुके थे और उन्होंने माफ़ी मांगने में ही अपनी भलाई समझी.

“Oh Manika, I am sorry… मेरा मतलब वो नहीं था. मजाक कर रहा था भई."
"क्या पापा आप भी हर वक़्त मेरी लेग-पुल करते रहते हो." मनिका ने मुँह बनाया, फिर मुस्का कर कहा “and don’t say sorry, okay?”

जयसिंह की किस्मत ने फिर उन्हें एक मुश्किल घड़ी से बचा लिया था.

–​

मनिका और जयसिंह ने साथ में नाश्ता किया और फिर नीचे होटल की लॉबी में आ गए. जयसिंह ने रिसेप्शन पर जा कर अपनी बुक की हुई कैब मँगवाई और मनिका को साथ लेकर बाहर अहाते में पहुँचे. उनके पहुँचने के साथ ही कैब भी आ गई. ड्राईवर ने उतर कर उनके लिए पीछे का दरवाज़ा खोला और झुक कर उन्हें सलाम किया. जयसिंह ने मनिका की तरफ मुस्कुरा कर देखा और उसे कार में बैठने का इशारा किया. मनिका की आँखों में ख़ुशी और उत्साह चमक रहा था.

"पापा… ईईई…" मनिका जयसिंह के साथ पीछे की सीट पर बैठी थी, वह उनके पास खिसकते हुए फुसफुसाई, "BMW!"

जयसिंह ने कैब के लिए BMW बुक कराई थी.

वैसे तो जयसिंह के पास भी बाड़मेर में स्कोडा थी लेकिन मनिका के उत्साह का कोई ठिकाना नहीं था.

"हाहाहा…" जयसिंह हल्के से हँस दिए.
"पापा मेरी फ्रेंड्स तो जल-भुन मरेंगी जब मैं उन्हें इस ट्रिप के बारे में बताऊँगी." मनिका खुश होते हुए बोली.
"अभी तो बहुत कुछ बाकी है मनिका…" जयसिंह ने रहस्यमय अंदाज़ में कहा, इस बार वे आश्वस्त थे की मनिका को उनकी बात नहीं खटकेगी.
"हीहीही…" मनिका उनके कंधे पर सिर रख खिलखिलाई.

जयसिंह ने कैब के ड्राईवर से उन्हें अच्छे से दिल्ली की सैर करवाने को कहा. ड्राईवर उस दिन उन्हें दिल्ली की कुछ मशहूर इमारतें घुमा लाया, बीच में वे लोग लंच के लिए एक महँगे रेस्टोरेंट में भी गए. मनिका ने अपने मोबाइल से ढेर सारी फोटो खींची थीं, जिनमें वो और जयसिंह अलग-अलग जगहों पर पोज़ कर रहे थे. वे लोग रात ढलते-ढलते वापिस होटल पहुँचे.

जयसिंह ने रूम में जाने से पहले रिसेप्शन से अगले दो हफ्ते के लिए उसी ड्राइवर के साथ कैब बुकिंग करवा ली.

पूरे दिन के सैर-सपाटे के बाद उन्होंने रूम में ही डिनर ऑर्डर किया. फिर एक-एक कर नहाने घुस गए. जब जयसिंह नहाने घुसे हुए थे तभी एक बार फिर से रूम-सर्विस आ गई थी, मनिका ने धड़कते दिल से दरवाज़ा खोला, लेकिन इस बार सुबह वाला वेटर ऑर्डर लेकर नहीं आया था. मनिका ने राहत की साँस ली और उसे टिप देकर चलता कर दिया.

उस रात जब मनिका नहा कर निकली तो जयसिंह को कुछ भी देखने को नहीं मिला. आज उसने पायजामा और टी-शर्ट पहन रखे थे और उसका बदन अच्छे से ढंका हुआ था. डिनर कर वे दोनों बिस्तर में घुस गए और कुछ देर दिन भर की बातें करने के बाद सो गए.

–​

मनिका और जयसिंह के अगले चार दिन इसी तरह घूमने-फिरने में निकल गए.

इस दौरान जयसिंह ने पूरे धैर्य के साथ मनिका के मन में सेंध लगाना जारी रखा. वे उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहलाते-हँसाते रहते थे और उसकी तारीफ करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. इसी बीच उन्होंने फिर से उसे अपने इस घूमने-फिरने को सीक्रेट रखने को कह दिया था. मनिका ने भी शैतानी भरी स्माइल के साथ उनसे हाँ में हाँ मिलाई थी. दूसरा दिन पूरा होते-होते जयसिंह को अपनी मेहनत का पहला फल भी मिल गया था.

उस शाम वे क़नाट प्लेस गए थे. वहाँ मनिका की उम्र के काफ़ी लड़के-लड़कियों को बाँह में बाँह डाले घूम रहे थे. रात हुए जब वे होटल पहुँचे तो लॉबी में काफ़ी लोग थे. कोई कारोबारी समूह आया हुआ था, सो मनिका जयसिंह के थोड़ा करीब होकर चल रही थी. जब वे लिफ़्ट के पास पहुँचे तो वहाँ भी थोड़ी भीड़ थी. मनिका और जयसिंह भी खड़े हो कर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगे. तभी जयसिंह को अपनी बाँह पर किसी के हाथ का एहसास हुआ. उन्होंने अपना सिर घुमा कर देखा तो पाया कि मनिका ने अपनी बाँह उनकी बाँह में डाल सहारा ले रखा था.

जयसिंह ने सहानुभूति दिखाते हुए उस से पूछा कि क्या वह बहुत थक गई है तो मनिका ने हौले से हाँ में सिर हिलाया था.

अगले दिन जब वे घूमने निकले तो मनिका ने कैब से उतरते ही उनकी बाँह थाम ली. अपनी इस छोटी सी कामयाबी पर भी जयसिंह के मन में लड्डू फूट पड़े थे.

–​

दिल्ली भ्रमण के पाँचवें दिन की शाम अपने होटल लौटे तो जयसिंह कुछ ज़्यादा ही उत्साहित थे. आज वे दिल्ली का पुराना किला देख कर आए थे. पिछले दो दिनों मनिका उनकी बाँह में बाँह डाले चल रही थी. लेकिन आज जयसिंह के हाथ एक और सफलता लग गई थी.

हुआ यूँ कि, रोज़ घूमते वक्त वे या तो एक-दूसरे का फ़ोटो ले लिया करते थे या आस-पास मौजूद पर्यटकों को अपना फ़ोन दे कर साथ में फ़ोटो खिंचवा लेते थे. पर आज पुराने किले के सुनसान गलियारों में उन्हें ज्यादा लोग नहीं मिले थे. एक ऐसी ही एकांत जगह जब मनिका ने फोटो लेने के लिए मोबाइल निकाला तो उनके आस-पास कोई भी न था. जयसिंह ने उसका फोटो क्लिक कर दिया था. फिर उसने हँसते हुए उनसे भी पोज़ करवा एक फोटो ले ली थी.

"क्या पापा… यहाँ तो कोई है ही नहीं जो अपना फोटो ले दे. कितनी ब्यूटीफुल जगह है ये… और डरावनी भी." मनिका ने जयसिंह के पास बैठते हुए कहा था.

जयसिंह एक पुराने खंडहर की दीवार पर बैठे थे.

"अरे तो तुम सेल्फ़ी कैमरा ऑन कर लो न." जयसिंह ने सुझाया था.
"हाँ पर पापा उसकी फोटो इतनी साफ़ नहीं आती." मनिका ने खेद जताया.
"देखो फोटो न होने से तो फोटो होनी बेहतर है… चाहे साफ हो या नहीं. क्यूँ?” जयसिंह मुस्कुरा कर बोले थे. “अब यहाँ तो दूर-दूर तक कोई नज़र भी नहीं आ रहा.”

मनिका ने उनके पास बैठते ही उनकी बाँह थाम ली थी.

"हाँ भई… और क्या कर सकते हैं… वैसे आप भी कभी-कभी फुल-ऑन ज्ञानी बाबा बन जाते हो." मनिका ने हँस कर कहा था और अपने मोबाइल का फ्रंट-कैमरा ऑन कर जयसिंह के साथ फोटो लेने लगी.

जब कुछ देर तक वह सही एंगल से फ़ोटो लेने की कश्मकश में लगी रही तो जयसिंह ने थोड़ी सतर्कता से सुझाव दिया था,
"ऐसे तो खिंच गई हम से तुम्हारी फोटो… why don’t you come and sit in my lap?”
मनिका क्या प्रतिक्रिया देगी यह सोच उनके दिल की धड़कन बढ़ गई थी. पर उन्होंने आगे कहा,
”इस तरह कैमरा में हम दोनों फिट हो जाएँगे."
"Oh, okay papa." मनिका ने एक पल रुक कर कहा था.

जैसा कि अक्सर होता है, जवान होने के बाद लड़कियाँ घर के मर्दों से मान-मर्यादा का एक दायरा बनाने लगतीं हैं. वही दायरा मनिका और जयसिंह के बीच भी था. सो मनिका भी अपने पापा की बात से एक पल ठिठक गई थी. लेकिन जयसिंह के साथ से वो इतनी खुश थी कि उनकी बात मान गई.

जयसिंह मनिका के जवान बदन को अपनी गोद में पा कर उत्तेजना और उत्साह से भर उठे. उन्होंने अपनी जाँघ पर बैठी मनिका के कंधे पर अपना हाथ रखा हुआ था और फ़ोटो के लिए स्माइल कर रहे थे. अपनी बेटी के कसे हुए बदन को इतने करीब से छूने का मौक़ा उनके लिए अदभुत था. उधर मनिका को उनके इस कपट का अंदाजा तक नहीं था.

पहली फोटो बुरी नहीं थी, मौसम सुहावना होने की वजह से फ्रंट-कैमरे से भी फोटो साफ़ आई थी. उसके बाद तो जैसे जयसिंह की लॉटरी निकल गई. उन्होंने मनिका को गोद में लेकर वहाँ काफी सारी सेल्फ़ी खींची और कमाल तो तब हुआ जब वे एक थीम-रेस्टोरेंट में लंच करने गए. वहाँ आस-पास लोगों के होने के बावजूद मनिका अपने-आप उठकर उनकी गोद में बैठी थी और मुस्काते हुए एक फोटो खींची.

सो उस दिन जयसिंह बहुत अच्छे मूड में होटल लौटे थे.

पिछले पाँच दिनों में वे मनिका का काफी भरोसा और आत्मीयता जीतने में कामयाब हो चुके थे. ऊपर से उनके खुले खर्च ने मनिका को सम्मोहित कर रखा था. इसके चलते वह उनकी अजीब हरकतों और बातों को जानकर भी कुछ-कुछ नज़रंदाज़ कर देती थी.

–​

होटल में बिताई पहली रात के बाद जयसिंह ने अपनी सोई हुई बेटी को छूने की हिमाक़त वापस नहीं की थी. मनिका भी अब पूरे कपड़े पहन कर सोने लगी थी सो उनको वैसा मौक़ा भी फिर नहीं मिला था. लेकिन एक बात थी कि पायजामा और टी-शर्ट पहन कर सोते समय वह अक्सर बिना कम्बल लिए सोती थी. सो जयसिंह उसके मांसल जिस्म को ताड़ते हुए सो ज़ाया करते थे.

पर आज पूरे दिन की उत्तेजना से भरे जयसिंह अपने-आप को रोक न सके. जब उन्हें लगा कि मनिका गहरी नींद में है तो उन्होंने धीरे से करवट ले अपना चेहरा उसकी तरफ किया. मनिका की करवट भी उनकी ओर थी. अपनी सोई हुई बेटी को निहारते हुए जयसिंह के लौड़े में तनाव बढ़ना शुरू हो गया.

मनिका का ख़ूबसूरत चेहरा उनकी बेचैनी बढ़ाने लगा, धीमी रौशनी में मनिका के दमकते गोरे-चिट्टे चेहरे पर उसके मोटे-मोटे गुलाबी होंठ रस से भरे प्रतीत हो रहे थे.

"मनिका?" जयसिंह ने धीरे से कहा पर मनिका गहरी नींद में थी.

उन्होंने हौले से अपना हाथ बढ़ा कर उसके हाथ पर रखा. कुछ पल बाद भी जब मनिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो जयसिंह उसके हाथ को हल्का-हल्का सहलाने लगे. वे उसकी नींद की गहराई का अंदाज़ा ले रहे थे.

मनिका सोती रही.

अब जयसिंह थोड़े आश्वस्त हो गए. वे सरक कर मनिका के थोड़ा करीब आ गए और अपना हाथ अपनी सोती हुई बेटी की पतली कमर पर रख लिया. वे अपनी हार चाल के बाद दो-चार पल रुक जाते थे, ताकि मनिका के उठ जाने की स्थिति में जल्दी से पीछे हट सकें.

अब उन्होंने धीरे-धीरे उसकी टी-शर्ट का कपड़ा ऊपर करना शुरू कर दिया. मनिका की यह वाली टी-शर्ट पूरी लम्बाई की थी. सो जयसिंह को उसे ऊपर कर, उसकी गोरी कमर को उघाड़ने में कुछ मिनट लग गए. पर अब मनिका की गोरी कमर और पेट एक तरफ से नज़र आने लगे थे. दूसरी तरफ से टी-शर्ट अभी भी मनिका के नीचे दबी हुई थी. लेकिन जयसिंह को उनकी सौगात मिल चुकी थी.

"साली की हर चीज़ क़यामत है."

मनिका ने लो-वेस्ट पायजामा पहना हुआ था.

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Thakur

Alag intro chahiye kya ?
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Thanks for starting this story on Xf :thanks:
Ye story Mene xp pe 2016 me read ki thi, it was amazing :D
 

Thakur

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Thanks for the support. Iss baar story complete karungi :) Xossip par maine story vapas likhni shuru ki thi but vo site hi band ho gayi :(
:( that was the saddest news for all xb lovers, I read your whole story in xp, but it's been a long time and I almost forget it so I'm re-reading it now :D
 
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When in Vietnam
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जयसिंह ने देखा कि मनिका ने पायजामा काफी नीचे बाँध रखा था, ठीक टांगों और कमर के जोड़ वाली जगह पर. इस से पायजामे का इलास्टिक कमर की हड्डी पर तना हुआ था. उसके करवट लिए होने की वजह से इलास्टिक और उसके पेट के निचले हिस्से के बीच कुछ जगह बन गई थी. मनिका की टी-शर्ट आगे से हट जाने से उन्हें उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की "V" आकृति भी एक बार फिर से नज़र आ रही थी.

जयसिंह का बदन गरम होने लगा. कुछ देर रुके रहने के बाद उन्होंने हिम्मत की और गर्दन उठा कर अपना चेहरा मनिका के पेट के पास ले गए. मनिका के जिस्म से भीनी-भीनी गंध आ रही थी. लगभग मदहोश सी हालत में उन्होंने अपनी दो अंगुलियाँ मनिका के पायजामे के इलास्टिक और उसके जिस्म बीच की जगह में डाली और आगे की तरफ खींचा.

नाईट-लैम्प की धीमी रौशनी में वे अपनी बेटी के पायजामे में झाँक रहे थे. उनका सामना एक बार फिर मनिका की पहनी हुई एक छोटी सी पैंटी से हुआ.

"उह्ह.." उन्होंने दम भरा, उन्हें एहसास नहीं हुआ था कि इतनी देर से वे अपनी साँस थामे हुए थे. उन्होंने जिस हाथ से मनिका के पायजामे का इलास्टिक पकड़ रखा था वह उत्तेजना से काँप रहा था.
"रांड की कच्छी ने ही जब ये हाल कर दिया है तो साली की चिकनी चूत तो लगता है जिंदा नहीं छोड़ेगी." जयसिंह ने मन में सोचा.

उन्होंने पहली बार मनिका की योनि के बारे में इस तरह सोचा था.

"ओहऽऽ!" फिर अचानक उन्होंने एक और बात पर गौर किया.

मनिका के बदन की एक बात जो उन्हें उकसाती थी, वह थी उसके जिस्म पर बालों का न होना. पर पता नहीं कैसे अभी तक इस पर उनका ध्यान नहीं गया था. मनिका के पायजामे के भीतर भी उन्हें उसके रेशमी बदन पर एक बाल न दिखा.

"देखो साली को… अंदर तक waxing कर रखी है हरामन ने… पता नहीं मेरा ध्यान पहले किधर था. यह तो मुझे पहली रात जब इसकी नंगी गांड देखी थी तभी समझ जाना चाहिए था… क्या अदा है यार तेरी मनिकाऽऽऽ!"

वे अपने गंदे विचारों में इसी तरह डूबे थे की मनिका थोड़ी सी हिली. जयसिंह ने झट से अपना हाथ उसके पायजामे से हटा लिया और सीधे लेट कर आँखें मींच ली. घबराहट से उनका दिल तेज़ी से धड़कने लगा था.

मनिका ने करवट बदली और दूसरी ओर घूम कर सो गई.

जयसिंह चुपचाप लेटे रहे. कुछ वक्त बीत जाने पर जयसिंह ने थोड़ी हिम्मत कर मनिका की तरफ देखा.

"हे भगवान! कहीं जाग तो नहीं गई ये…" जयसिंह ने आशंकित होकर सोचा.

उन्होंने थोड़ा और इंतजार किया पर मनिका की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. जयसिंह ने डरते-डरते अपना हाथ ले जा कर उसकी पीठ से छुआया. वे फिर से उत्तेजित होने लगे थे. जब मनिका ने उनके स्पर्श पर कोई हरकत नहीं की तो वे थोड़ा और खुल गए और अपना हाथ मनिका की गोल-मटोल गांड पर ले जा रखा.

जयसिंह के परम आनंद की सीमा पार हो चुकी थी. पहली रात तो उन्होंने बस मनिका की गांड को थोड़ा सा छुआ भर था, लेकिन आज मनिका के पायजामे के कपड़े में क़ैद उसकी मांसल गांड की कसावट महसूस कर वे तृप्त हो गए थे. उनकी हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी. मनिका के करवट बदल लेने की वजह से अब वे उसकी टी-शर्ट को दूसरी तरफ से भी ऊपर कर सकते थे. उन्होंने वही किया भी. कुछ देर में मनिका की दूध सी कमर उघड़ चुकी थी. अब वे अपनी बेटी की नंगी कमर पर हाथ रख सहलाने लगे. बीच-बीच में वे अपना हाथ उसकी गांड पर भी ले जा रहे थे.
जयसिंह की हिमाक़त से बेख़बर मनिका सोती रही.

जयसिंह ने अब एक और कार्यवाही शुरू कर दी. वे मनिका के पायजामे का कपड़ा पकड़ उसे हौले-हौले नीचे खींचने लगे. कुछ ही पल में उन्हें मनिका की नीली पैंटी का इलास्टिक नज़र आने लगा. वे अपने-आप को रोक ना सके और उसकी पैंटी को भी पायजामे के साथ ही नीचे करने लगे. इसके लिए उन्होंने मनिका की गांड की दरार की सीध में अपनी अंगुली घुसाई और नीचे खींचा.

पायजामा मनिका के नीचे दबा था, सो थोड़ी खींचतान के बाद उन्हें रुकना पड़ा. लेकिन पायजामा लो-वेस्ट था, सो मनिका के नितम्ब और उनके बीच की घाटी अब कुछ उघड़ चुके थे. जयसिंह के बदन में एक उत्तेजना भरी लहर दौड़ उठी. पर इस से ज्यादा आगे बढ़ने की जुर्रत उनसे नहीं हुई. क्योंकि वे जानते थे कि अगर वे यह खतरनाक खेल जीतना चाहते हैं तो उन्हें सब्र से काम लेना होगा. इस वक्त उनका दिमाग़ हवस के हवाले था और अगर मनिका जाग जाती है तो उनका बना-बनाया दाँव बिगड़ जाएगा.

उन्होंने हौले से मनिका के पायजामे से बाहर झांकते कूल्हों पर हाथ रख सहलाया. फिर एक ठंडी आह भर सोने की कोशिश करने लगे.

अगली सुबह जयसिंह की आँख हमेशा की तरह मनिका से पहले खुल गई थी. उन्होंने अपनी सेफ-साइड रखने के लिए उसका पायजामा थोड़ा ठीक कर दिया, हालाँकि सुबह-सुबह एक बार फिर उनका लंड मनिका को देख कर खड़ा हो गया था.

–​

उस रोज़ भी बाप-बेटी तैयार होकर घूमने निकल गए थे. अगले दो दिन फिर इसी तरह निकल गए. इस दौरान जयसिंह ने मनिका को सोते समय छेड़ने से परहेज़ किए रखा. वे अपनी अच्छी किस्मत को इतना भी नहीं आज़माना चाहते थे कि वह साथ देना ही छोड़ दे.

मनिका और उनके बीच अब काफी नजदीकी बढ़ चुकी थी. चौबीस घंटे एक-दूसरे के साथ रहने और बातें करने से मनिका अब उनके साथ खुलने लगी थी. कभी-कभी वह उनसे अपनी फ्रेंड्स और उनके कारनामों का भी जिक्र कर देती थी, कि फ़लाँ का चक्कर उस लड़के से चल रहा है और फ़लाँ लड़की को उसके बॉयफ्रेंड ने क्या गिफ्ट दिया वगैरह-वगैरह. जयसिंह भी उसकी बातें पूरी रुचि लेकर सुनते थे जिस से मनिका और ज्यादा खुल कर उनसे बतियाने लगती थी. जाने-अनजाने ही मनिका अपने पिता के बिछाए चक्रव्यूह में फंसती चली जा रही थी.

दिल्ली भ्रमण की आठवीं शाम जब वे दोनों होटल रूम में लौटे तो जयसिंह आ कर काउच पर बैठ गए थे.

मनिका बाथरूम जा कर हाथ-मुँह धो कर आई थी, जयसिंह ने उससे पूछा,

"तो फिर आज डिनर में क्या मँगवाना है?"
"मेन्यु दिखाओ… देखते हैं." मनिका मुस्काते हुए उनके पास आते हुए बोली.

मेन्यु जयसिंह के हाथ में था. मनिका ने उनके पास आ कर मेन्यु लेने के लिए हाथ बढ़ाया.

लेकिन जयसिंह ने उसका हाथ थाम लिया और उस से नज़रें मिलाई, फिर हौले से उसका हाथ खींचते हुए आँखों से अपनी जाँघ पर बैठने का इशारा किया और अपनी टांगें थोड़ी खोल लीं, और मुस्कुरा कर बोले,

"चलो फिर देखते हैं…"
"हाहाहा पापा… चलो." मनिका उनकी गोद में बैठते हुए बोली.

जयसिंह की ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा. उन्होंने अँधेरे में एक तीर चलाया था जो ठीक निशाने पर जा लगा था और अब 22 साल की मनिका उनकी गोद में बैठी मेन्यु के पन्ने पलट रही थी.

जयसिंह उसके बदन के कोमल स्पर्श से मंत्रमुग्ध हो उठे. उसके घने बाल उनके चेहरे को छू रहे थे. उन्होंने देखा कि उसकी गर्दन पर कुछ पानी की बूँदें चमक रहीं थी. जयसिंह ने मनिका के हाथों पर अपने हाथ रखते हुए मेन्यु पकड़ लिया और ख़ुशी-ख़ुशी उसकी हाँ में हाँ मिलाने लगे. आज फिर एक बार उन्होंने मनिका की पसंद का डिनर ऑर्डर किया.

ऑर्डर करने के बाद भी मनिका उनकी गोद में बैठी रही.

उसने मेन्यु एक ओर रख दिया और अपना एक हाथ जयसिंह के गले में डाल उनकी तरफ मुँह कर बैठ गई थी. वहीं जयसिंह का एक हाथ उसकी पीठ पर था. वे बातों-बातों में उसकी पीठ सहला दे रहे थे. मनिका का दूसरा हाथ उसकी जाँघ पर रखा था, जयसिंह ने भी हौले से अपना हाथ उसके हाथ रख लिया.

कुछ देर बाद जब रूम-सर्विस वाले ने डोरबेल बजाई तो मनिका ने उठ कर गेट खोला. वेटर अन्दर आ कर उनका खाना लगा गया.

–​

मनिका और जयसिंह डिनर वगैरह कर के बिस्तर में घुस चुके थे. जयसिंह लेटे हुए अपनी सफलता के ख्वाब देख रहे थे.

"मजा आ गया आज तो… साली ने बिलकुल ना-नुकर नहीं की…"

उधर मनिका भी जग रही थी.

“लाइफ़ कितनी मस्त हो गई है डेल्ही आ कर… पूरी लाइफ़ में मैंने इतनी मस्ती नहीं की होगी जितनी यहाँ एक हफ़्ते में कर चुकी हूँ… ओह हाहाहा ये तो कुछ ज्यादा हो गया. पर फिर भी… I am having so much fun with papa… और ये सब पापा की वजह से ही तो है… नहीं तो अभी घर पर वही बोरिंग लाइफ़ चल रही होती… हे भगवान, टाइम का कुछ पता ही नहीं चला… हमें यहाँ आए आठ दिन हो चुके हैं… और पापा तो अब मेरे फ्रेंड जैसे हो गए हैं… मानो बेस्ट-फ्रेंड जैसे. कितना हँसाते और ख़याल रखते हैं मेरा… I hope we stay like this after going back home… कितना कुछ शेयर कर चुके हैं हम आपस में… और मम्मी को खबर ही नहीं… है कि हम यहाँ कितनी मस्ती कर रहे हैं… हाहाहा! पर घर जाकर मुझे ध्यान से रहना पड़ेगा कहीं भूले-भटके मुँह से कुछ निकल गया तो पापा बेचारे फँस जाएँगे. कनि और तेसु से भी सीक्रेट रखना होगा… और फ़ोन से हमारी पिक्स भी निकाल कर रखनी पड़ेगी… कहीं उन्होंने देख ली तो गड़बड़ हो सकती है. यहाँ से जाने से पहले ही लैपटॉप में डाल कर सारी पिक्स हाईड कर दूँगी… हम्म.”

मनिका कहाँ जानती थी कि ये मस्ती ये ठिठोली, सब उसके हरामी पापा का बिछाया मायाजाल था.

मनिका हमेशा फिल्मों और टीवी सीरियलों में दिखाए जाने वाले मॉडर्न परिवारों को देख कर सोचा करती थी कि काश उसके घर में भी इतनी आज़ादी हो. हालाँकि जयसिंह ने हमेशा उसे लाड़-प्यार से रखा था और बहुत हद तक छूट भी दे रखी थी. लेकिन एक छोटे शहर में पली-बढ़ी मनिका ने ज़्यादातर ऐसे ही लोगों को देखा था जो हर वक्त समाज के बने-बनाए नियमों पर चलते आए थे. उसमें भी खासतौर पर लड़कियों को तो हर कदम पर टोका जाता था. सो जब जयसिंह ने मनिका को इस नई तरह की ज़िन्दगी का एहसास कराया, तो वह अपने-आप ही उनके रचाए मायाजाल में फँसने लगी थी.

सो, इसी तरह बाप-बेटी अगली सुबह के लिए अलग-अलग सपने संजोते हुए सो गए.

–​

अगली सुबह जब मनिका और जयसिंह कैब में आकर बैठे तो ड्राईवर ने कहा कि, वह उन्हें दिल्ली की लगभग सभी नामी जगहें दिखा चुका है. सो आज वो उन्हें कोई खास सैर नहीं करा सकेगा. ड्राईवर भी अब तक उनसे थोड़ा घुल-मिल चुका था क्योंकि रोज़ वही उनके लिए कार लेकर आता था. जयसिंह की बढ़िया टिप्स भी उसकी वफ़ादारी का एक कारण थी.
मनिका का उत्साह ज़रा फीका पड़ गया.

"अब क्या करें पापा?" मनिका ने कुछ निराश आवाज़ में जयसिंह से पूछा.
"अरे भई पूरी दिल्ली घूम डाली है अब और क्या करना है? घर चलते हैं…" जयसिंह ने मजाक करते हुए कहा.
“No papa!” मनिका फटाक से बोली, "अभी तो हमारे पास आधे से ज्यादा टाइम पड़ा है. मुझे नहीं जाना घर-वर."

जयसिंह मनिका के जवाब से बहुत खुश हुए.

"हाहाहा… ठीक है, ठीक है. दिल्ली में करने के लिए कामों की कमी थोड़े ही है."
"तो वही तो पूछ रही हूँ. आप कुछ बोलो ना क्या करें? ड्राईवर भैया ने तो हाथ खड़े कर दिए हैं आज." मनिका खीझते हुए बोली.

उसकी बात सुन ड्राईवर खिसिया कर फिर से कहा कि उसे जितना पता था वो सब जगह उन्हें घुमा चुका है.

"हाहाहा… अरे मनिका तुमने तो मूड ऑफ कर लिया." जयसिंह हँस कर बोले.
"चलो तुम्हारा मूड ठीक करें, अपन ऐसा करते हैं आज कोई मूवी चलते हैं या फिर तुम उस दिन कह रही थी न कि कुछ शॉपिंग करनी है?"

बस फिर क्या था, अगले ही पल मनिका फिर से चहकने लगी.

“Oh papa, you are so wonderful.” वह ख़ुशी से बोली, "आप को ना मेरा मूड ठीक करना बड़े अच्छे से आता है… और आपको याद थी? मेरी शॉपिंग वाली बात… how sweet. मुझे लगा भूल गए होंगे आप और मुझे फिर से याद कराना पड़ेगा."
"कोई बात मिस की है तुम्हारी आज तक मैंने मनिका?" जयसिंह ने झूठे शिकायती लहजे में कहा.
“Aww papa! नहीं भई कभी नहीं की…" मनिका ने होंठों से पाउट करते हुए कहा.

मनिका की अदा ने जयसिंह के मन में लगी आग में घी डालने का काम किया था. उन्होंने मन में सोचा,
"देखो साली कैसा प्यार जता रही है. इन्हीं मोटे होंठों ने तो जान निकाल रखी है मेरी… छिनाल खुश तो हो गई चलो."

फिर ड्राईवर से बोले,
"चलो ड्राईवर साहब PVR cinema चलना है आज."

कुछ देर बाद मनिका ने जयसिंह से बोली,

"एक बार तो डरा दिया था आपने मुझे…"
"हैं? अब मैंने क्या किया?" जयसिंह हैरान हो बोले.
"आप बोल रहे थे ना कि घर चलो वापस." मनिका मुस्काते हुए बोली थी.
"हाहाहा." जयसिंह ने ठहाका लगाया और बोले, "क्यूँ घर नहीं जाना तुम्हें?"
"नहीं…" मनिका ने आँखें मटका कर कहा.

जयसिंह मुस्का दिए और उसके गले में अपना हाथ डाल उसे अपने साथ लगा कर बैठा लिया.

–​

ड्राईवर उन्हें क़नाट प्लेस में बने PVR Plaza ले आया था.

मनिका पहली बार मल्टीप्लेक्स में फ़िल्म देखने आई थी. उसने वहाँ रखा फ़िल्मों की समय-सारणी वाला कार्ड उठाया.

"पापा!" कार्ड देखते ही मनिका का उत्साह दोगुना हो गया था.
"क्या हुआ?" जयसिंह ने भौंह उठा कर पूछा.
"पापा! 'जाने तू या जाने ना' रिलीज़ हो गई! मैं तो भूल ही गई थी कि ये आनेवाली है. I so wanted to watch this in theatre.” मनिका की आँखों में ख़ुशी चमक रही थी.
"अच्छा तो चलो फिर यही देखेंगे हम भी…" जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.

उन्होंने जा कर टिकट ले लीं और मनिका के साथ हाथों में हाथ डाले सिनेमाघर के अंदर चल दिए.

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