• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Akil

Well-Known Member
3,033
8,441
158
हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब????

आज इस साइट को क्या हो गया था? मैने कई बार विजिट किया मगर साइट ओपेन ही नहीं हो रही थी। ख़ैर, शुकर है कि अब हो गई ओपेन।

मैने आप सबसे कहा था कि आज आपके सामने अपडेट हाज़िर करूॅगा, इस लिए आपके सामने अपडेट जल्द ही हाज़िर हो जाएगा।

कुछ ही देर में अपडेट आप सबके सामने हाज़िर हो जाएगा दोस्तो। आशा करता हूॅ कि आप सबको आज का अपडेट ज़रूर पसंद आएगा।
Ok eagerly waiting
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,714
354
एक नया संसार

अपडेट.......《 46 》

अब तक,,,,,,,,

ऐसे ही हम हल्दीपुर गाॅव से बाहर आ गए और उस नहर के पुल के पास से हम लोग पूर्व दिशा की तरफ मुड़ गए। लगभग बीस मिनट बाद हम सब दीदी के फार्महाउस पर पहुॅच गए। दीदी को ये भी पता चल चुका था कि मेरे साथ करुणा चाची और उनके बच्चों को भी मुम्बई जाना था मगर इस सबके हो जाने से उन्होंने मेरे फोन से करुणा चाची को फोन कर कह दिया था कि मैं आज नहीं जा रहा बल्कि वो अपने भाई के साथ यहीं पर आ जाएॅ कल।

फार्महाउस पर पहुॅच कर दीदी ने एम्बूलेन्स से सारा सामान उतरवा कर अंदर रखवा दिया। एम्बूलेन्स के जाने के बाद हम सब अंदर की तरफ बढ़ चले। अंदर ड्राइंगरूम में ही सोफे पर बैठी नैना बुआ पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं हल्के से चौंका। नैना बुआ मुझे देखते ही सोफे से उठ कर भागते हुए मेरे पास आईं और झटके से मुझे अपने सीने से लगा लिया। उनकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू आ गए थे मगर उन्होने उन्हें छलकने नहीं दिया। अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाया हुआ था उन्होंने। शायद दीदी ने उन्हें सबकुछ बता दिया था और समझा भी दिया था कि मुझसे मिल कर वो ज्यादा रोयें नहीं।

ख़ैर, ऐसे माहौल में हम सब बेहद दुखी थे इस लिए उस रात किसी ने अन्न का एक दाना तक अपने मुख में नहीं डाला। रात में मेरे साथ बेड पर मेरे एक तरफ रितू दीदी थीं तो दूसरी तरफ आशा दीदी। सारी रात किसी भी ब्यक्ति को नींद नहीं आई। सबने मुझे अपने अपने तरीके से बहुत समझाया था। तब जाकर मुझे कुछ होश आया था। बेड पर मैं अपनी दोनो बहनों के बीच लेटा ऊपर घूम रहे पंखे को देखता रहा। सारी रात ऐसे ही गुज़र गई। मेरी दोनो बहनें अपने हृदय में मेरे प्रति दुख छुपाए मुझे अपनी अपनी तरफ से छुपकाए यूॅ ही लेटी रह गईं थी। आने वाली सुबह मेरे जीवन में और कैसे दुख दर्द की भूमिका बनाएगी इसके बारे में वक्त के सिवा कोई नहीं जानता था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,

उधर, दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई मगर अजय सिंह और शिवा को अपने उन आदमियों का कहीं कोई सुराग़ तक न मिल सका जिन आदमियों ने उन्हें विराज के आने की ख़बर दी थी। कहने का मतलब ये कि भीमा और मंगल आदि में से कोई भी अजय सिंह का भरोसेमंद आदमी अजय सिंह को न मिला। इस बात से दोनो बाप बेटे बेहद परेशान हो चुके थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उसके आदमी एक साथ सारे के सारे कैसे गायब हो गए?

अजय सिंह के बाॅकी के आदमी तो उसे मिले लेकिन उन लोगों को ना तो विराज का कोई सुराग़ मिला था और ना ही उन्हें ये पता था कि भीमा और मंगल के साथ साथ रहे बाॅकी आदमी कहाॅ और कैसे गायब हो गए? हैरान परेशान दोनो बाप बेटे वापस अपने नये वाले फार्म हाउस पर लौट आए थे। अपने बाॅकी बचे आदमियों को शख्त आदेश भी दे आए थे कि विराज के साथ साथ अपने उन गायब हुए आदमियों की भी खोज ख़बर करते रहें।

इस वक्त अजय सिंह और शिवा अपने फार्महाउस के ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर चिंतित व परेशान हालत में बैठे थे। उन दोनो के सामने वाले सोफे पर प्रतिमा भी बैठी हुई थी। उसकी नज़रें दोनो बाप बेटों के चेहरों पर उभरे हुए भावों पर थी। उसे समझते ज़रा भी देर न लगी थी कि दोनो बाप बेटे शिकस्त खाकर आए हैं। पर जाने क्यों प्रतिमा को इस बात का पहले से ही अंदेशा था कि ऐसा ही कुछ होगा।

"ये तो कमाल ही हो गया न अजय।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा___"तुम्हारे इतने सारे हट्टे कट्टे आदमियों ने एक बार फिर से तुम्हें नीचा दिखा दिया। तुम्हारी बड़ी बड़ी वो बातें महज कोरी बकवास के सिवा कुछ न थी। तुमने और तुम्हारे आदमियों ने आज तक वो काम किया ही नहीं जिस काम को 'फतह' के नाम से जाना जाता है। हर बार तुम अपने मंसूबों पर नाकामयाब ही हुए हो अजय। तुम्हारे पास पिछला ऐसा कोई काम नहीं है जिसका हवाला देकर तुम ये कह सको कि तुमने उस काम को सफलतापूर्वक किया था।"

प्रतिमा की इन बातों पर दोनो बाप बेटों के चेहरे झुक से गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे उन दोनो में से किसी में भी बोलने की हिम्मत शेष न हो। ये अलग बात थी कि अजय सिंह के चेहरे पर भूकंप के से भाव अनायास ही गर्दिश करते नज़र आते और फिर वो लुप्त हो जाते।

"एक अदने से लड़के को पकड़ने गए थे तुम्हारे आदमी और खुद ही सारे के सारे गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गए।" प्रतिमा ने फिर कहना शुरू किया___"इस बात को कौन हजम कर पाएगा अजय? क्या तुम खुद हजम कर पा रहे हो कि तुम्हारे इतने सारे आदमियों के रहते हुए भी वो विराज को पकड़ने की तो बात दूर बल्कि खुद अपना ही ख़याल नहीं रख सके? क्या तुम ये कल्पना कर सकते हो कि अकेले विराज ने तुम्हारे इतने सारे आदमियों को इस तरह से गायब कर दिया कि तुम दोनो बाप बेटे उनका पता भी नहीं लगा सके?"

"यकीनन प्रतिमा।" सहसा अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"ये सच है कि इस सबकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। ये सब जो कुछ भी हुआ है और जैसे भी हुआ है उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। मगर, इस सब में अकेले विराज बस का हाॅथ नहीं हो सकता।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" प्रतिमा हल्के से चौंकी थी।
"मतलब साफ है प्रतिमा।" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा___"मेरे इतने सारे आदमियों को एक साथ गायब कर देना कोई आसान बात नहीं है। मगर ये भी सच है कि ऐसा ही हुआ है। इस लिए इस काम को विराज खुद अकेले नहीं कर सकता। इस काम में ज़रूर उसकी किसी ने मदद की है। तुम खुद सोचो प्रतिमा कि मेरे बारह मुस्टंडे जैसे आदमियों को परास्त करना या उन्हें उस हालत पर ले आना कि वो अधमरे ही हों जाएॅ ये काम कितना मुश्किल हो सकता है? नहीं प्रतिमा नहीं, मैं किसी सूरत में नहीं मान सकता कि ये सब अकेले विराज ने किया है।"

"चलो मान लिया कि ये सब अकेले विराज नहीं कर सकता।" प्रतिमा ने कहा___"बल्कि इस काम में किसी ने उसकी मदद की, मगर सवाल ये है कि किसने की उसकी मदद? यहाॅ पर ऐसा कौन है जो इस तरीके से विराज की मदद कर सकता है?"

"मुझे लगता है कि इस बारे में हमें शुरू से सोच विचार करना चाहिए।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया___"हाॅ प्रतिमा, हमें इस बारे में शुरू से विचार विमर्ष करना होगा, वो भी बड़ी बारीकी से। ग़लती तो यकीनन हुई है हमसे। हमने शुरू से ही विराज को बहुत छोटा समझा था। हमारे मन में ये बात बैठी हुई थी कि वो ये सब कर ही नहीं सकता। हमने हमेशा उसकी औकात पर सवाल उठाया, शायद इसी का ये परिणाम है कि हम शुरू से हर बात में नाकामी का स्वाद चख रहे हैं। मगर अब हमें समझ आ चुका है डियर। हमें समझ आ चुका है कि हमारे साथ ये सब एक खेल ही हो रहा है शुरू से। एक अच्छा खिलाड़ी वही होता है जो अपने प्रतिद्वंदी को कभी भी कम करके न ऑके, बल्कि उसे भी अपनी तरह ही उच्च कोटि का खिलाड़ी समझे। तभी हमें समझ आता है कि अब हमें किस तरह की
अब हमें किस तरह की चाल चलना चाहिए? मगर ये सब बातें मैने कभी भी सोचने की जहमत नहीं की।"

"शुकर है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"कि तुम्हें ये बात समझ में आ गई कि तुम्हारा हमेशा से विराज को तुच्छ समझना सरासर ग़लत और नासमझी थी। हलाॅकि इस बारे में मैने तुम्हें पहले भी कहा था कि विराज को तुच्छ समझना निहायत ही ग़लत बात है। क्योंकि मौजूदा हालात में अगर तुम्हारा कोई दुश्मन हो सकता था तो सिर्फ विराज। ख़ैर, अब जब ये बात तुम्हारी समझ में आ ही गई है तो अब क्या सोच विचार करना चाहोगे इस बारे में तुम?"

"सोच विचार करने के लिए बहुत सारी बातें हैं।" अजय सिंह ने शिगार का गहरा कश लेकर उसका धुऑ ऊपर हवा में छोंड़ते हुए कहा___"पर बात चूॅकि शुरू से सोच विचार करने की है इस लिए शुरू से ही शुरू करते हैं। मैं सवाल खड़ा करूॅगा और तुम उस पर अपनी राय ब्यक्त करना।"

"ओके आई एम रेडी।" प्रतिमा ने सम्हल कर बैठते हुए कहा___"यू मे प्रोसीड।"
"हमारे साथ ये खेल फैक्ट्री में आग लगने से शुरू हुआ था।" अजय सिंह ने सोचते हुए कहा___"इसमें कई सवाल हैं, पहला ये कि फैक्ट्री में आग कैसे लगी या किसने लगाई थी? दूसरा सवाल ये कि फैक्ट्री में बने उस गुप्त तहखाने के अंदर मौजूद मेरा वो ग़ैर कानूनी सामान रितू द्वारा छानबीन करने पर क्यों नहीं मिला? वो सारा सामान उस गुप्त तहखाने से किसने गायब किया? यहाॅ ये सवाल नहीं पैदा हो सकता कि वो सब चीज़ें बमों के धमाके से लगी भीषण आग में जल गई होंगी, क्योंकि जली हुई चीज़ के अवशेष ज़रूर मिलते हैं और फाॅरेंसिक जाॅच से ये बात भी पता चल जाती है कि जो चीज़ जली थी वो असल में क्या थी? ख़ैर, मैं ये कह रहा हूॅ फैक्ट्री में लगी आग के बारे में और तहखाने से उन सारी चीज़ों के गायब हो जाने के बारे में तुम्हारी क्या राय है?"

"सबसे पहली बात तो ये है कि फैक्ट्री में लगी आग का मामला ज़रा पेंचीदा था।" प्रतिमा ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"पेंचीदा इस लिए क्योंकि उसमें किसी के भी बारे में कोई ठोस निष्कर्श नहीं निकल सकता था। घुमा फिरा कर बात सिर्फ विराज पर ही आकर रुकती थी। हलाॅकि ये बात ग़लत हो ऐसा कम ही लगता था। लेकिन मेरे ज़हन में एक बात ये भी है कि जिस समय फैक्ट्री में आग लगने का मामला आया था उसी समय तुम्हारे पार्टनर सक्सेना ने भी पार्टनरशिप तोड़ने की बात की ही नहीं बल्कि तोड़ ही दी थी। सक्सेना ने पार्टनरशिप तोड़ने की वजह ये बताई थी कि वो विदेश में सेटल होना चाहता है और वहीं पर अपना कोई बिजनेस करना चाहता है। इस बात पर कितना इत्तेफाक़ रखा जा सकता है?"

"तुम आख़िर कहना क्या चाहती हो?" अजय सिंह का दिमाग़ मानो चकरा सा गया था।
"मैं ये कहना चाहती हूॅ कि सक्सेना ने पार्टनरशिप तोड़ने की जो वजह बताई थी उसमें कितनी सच्चाई थी?" फिर प्रतिमा ने कहा___"तुम्हारे अनुसार उसे ये पता नहीं था कि फैक्टरी में कोई गुप्त तहखाना है जहाॅ पर तुम अपना गैर कानूनी सामान छुपा कर रखते थे। जबकि ऐसा भी तो हो सकता है कि ये सब उसे किसी तरह से पता चल ही गया रहा हो। उस सूरत में वो डर गया हो कि ऐसे काम में वह किसी दिन तुम्हारे साथ साथ खुद भी न कानून की गिरफ्त में आ जाए। इस लिए उसने तुमसे पार्टनरशिप तोड़ लेने में ही अपनी भलाई समझी हो, किन्तु उसे लगा होगा कि पार्टनरशिप तोड़ने की कोई माकूल वजह भी होनी चाहिए तभी उसे अपना सारा पैसा तुमसे मिल सकता था।"

"लेकिन इसमें ऐसा तो नहीं हो सकता था न कि सारा हिसाब किताब चुकता होने के बाद सक्सेना मेरी फैक्ट्री में आग लगा देता।" अजय सिंह ने कहा___"सीधी सी बात है डियर, तुम्हारे अनुसार सक्सेना को कानून का डर सताया इस लिए उसने मुझसे पार्टनरशिप तोड़ी और अपना हिसाब किताब चुकता कर लिया। लेकिन इस सबके बाद वो भला मेरी फैक्ट्री में आग क्यों लगाएगा? उसे जिस चीज़ का डर था वो तो पार्टनरशिप टूटते ही दूर हो गया था। अगर तुम ये समझती हो कि फैक्ट्री में आग सक्सेना ने लगाई थी तो मैं इस बात से सहमत नहीं हूॅ।"

"इसका मतलब तुम इस मामले में सक्सेना को क्लीन चिट दे रहे हो?" प्रतिमा ने गहरी नज़र से देखा उसे।
"बेशक।" अजय सिंह ने पूरे आतमविश्वास के साथ कहा।
"और कोई दूसरा ऐसा कर ही नहीं सकता?" प्रतिमा ने कहा___"मेरा मतलब तुम्हारे किसी बिजनेस कम्पटीटर से है।"

"यस आफकोर्स।" अजय सिंह ने कहा___"मेरा ऐसा कोई बिजनेस कम्पटीटर ही नहीं है जो मेरी फैक्ट्री में आग लगा कर मेरा इतना बड़ा नुकसान कर दे।"
"तो फिर बचा कौन?" प्रतिमा ने कहा।
"क्या मतलब??" अजय सिंह एकाएक ही चौंक पड़ा।

"अरे डियर, हम हर चीज़ के बारे में विचार विमर्ष कर रहे हैं न?" प्रतिमा मुस्कुराई।
"ओह हाॅ।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"ख़ैर, तो फिर बचा कौन का क्या मतलब है तुम्हारा?"
"तुम्हारी लाइफ में तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?" प्रतिमा ने पूछा था।

"विराज और उसकी माॅ बहन।" अजय सिंह के भाव बड़ी तेज़ी से कठोर हो गए थे।
"बिलकुल सही।" प्रतिमा ने कहा___"विराज एक ऐसा शख्स है जो मौजूदा वक्त में तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता है। इस लिए अगर फैक्ट्री में लगी आग में सिर्फ और सिर्फ विराज का ही हाॅथ है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।"

"लेकिन सवाल ये है कि उसने इतना बड़ा अविश्वसनीय काम किया कैसे होगा?" अजय सिंह के माथे पर सोच के भाव उभर आए___"दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उसे कैसे पता कि फैक्ट्री में कोई गुप्त तहखाना है और उस तहखाने के अंदर मैने एक अलग ही जुर्म की दुनियाॅ बना रखी है?"

"किसी तरह उसने इस सबका पता तो कर ही लिया होगा माई डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने कहा___"काम जब ऐसे बड़े बड़े करने होते हैं न तो उसके बारे में अपने पास हर चीज़ की जानकारी का होना भी ज़रूरी होता है।"
"यही तो सवाल है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"भला उसे इस बात की जानकारी कैसे हो गई कि फैक्ट्री के अंदर मैने क्या क्या चीज़ें छुपाई हुईं हैं? जबकि ये भी सच है कि वह कभी मेरी फैक्ट्री में गया ही नहीं था। फिर कैसे ये सब पता हो सकता है उसे? दूसरी बात, वो तो मुम्बई में है फिर वो वहाॅ से ये काम कैसे कर सकता है?"

"संभव है कि विराज उस समय मुम्बई से यहाॅ आया रहा हो।" प्रतिमा ने तर्क दिया।
"अगर वो मुम्बई से यहाॅ आता तो क्या वो मेरे आदमियों की नज़र में नहीं आ जाता?" अजय सिंह बोला__"आज भी तो वो मेरे आदमी भीमा की नज़र में आ ही गया था।"

"ऐसा भी तो हो सकता है कि उसने तुम्हारे आदमियों को चकमा दे दिया रहा हो उस समय।" प्रतिमा ने पुनः तर्क दिया___"क्योंकि बिना उसके यहाॅ आए वह हमारी फैक्ट्री में कैसे आग लगा देता? या फिर ऐसा हो सकता है कि उसके इशारे पर ये काम उसके ही किसी साथी ने किया होगा।"

"हाॅ ऐसा हो सकता है।" अजय सिंह के मस्तिष्क में जैसे झनाका सा हुआ, बोला___"ये यकीनन हो सकता है प्रतिमा। बचपन से जवानी तक वो इस गाॅव में रहा है, इस लिए ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि यहाॅ पर उसका कोई घनिष्ठ दोस्त या मित्र न बना हो, बल्कि ज़रूर बना होगा। सबका कोई न कोई घनिष्ठ मित्र ज़रूर होता है, उसका भी कोई ऐसा ही खास मित्र होगा यहाॅ। इस लिए ये संभव है कि विराज ने ये काम अपने किसी ऐसे ही मित्र द्वारा करवाया हो सकता है। इस बारे में तो हमें पहले ही सोचना चाहिए था डियर। वो भले ही मुम्बई में है लेकिन अपने किसी खास दोस्त के द्वारा वो ज़रूर हमारी पल पल की ख़बर लेता रहा होगा। अब भी ले रहा होगा।"

"आपने बिलकुल सही कहा डैड।" सहसा इतनी देर से चुप बैठा शिवा कह उठा___"उस कमीने के कई दोस्त हैं यहाॅ। लेकिन एक दोस्त तो उसका बहुत ही खास है। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूॅ। कई बार मैने उसके दोस्त को उसके साथ देखा भी था। उसके उस दोस्त का नाम शायद पवन है, यस डैड...पवन सिंह। यही नाम है उसके दोस्त का।"

"वैरी गुड।" अजय सिंह के चेहरे पर बड़ी मुद्दत के बाद राहत के भाव उभरे, बोला___"इसका मतलब वो हरामज़ादा अपने उस दोस्त पवन के ज़रिये ये सब करवा रहा था। नहीं छोंड़ूॅगा उस मादरचोद को। उसके सारे खानदान का नामो निशान मिटा दूॅगा मैं।"

"तुम्हें क्या लगता है अजय?" प्रतिमा ने सहसा अजीब भाव से कहा___"ये कि विराज महामूर्ख है?"
"व्हाट डू यू मीन?" अजय सिंह की ऑखें फैली।
"जिस विराज ने अपने दोस्त को इतने बड़े काम को करने के लिए कहा होगा उसने क्या अपने दोस्त और उसके परिवार की सुरक्षा का ख़याल नहीं रखा होगा?" प्रतिमा एक ही साॅस में कहती चली गई___"ये तो विराज को भी पता है कि अगर वो किसी के द्वारा अपना कोई काम करवाएगा तो देर सवेर तुम्हें इसका पता चल ही जाएगा। उस सूरत में तुम उसके साथ क्या सुलूक करोगे इसका अंदाज़ा उसने पहले ही लगा लिया होगा। हाॅ अजय, विराज ये कभी नहीं चाहेगा कि उसके काम की वजह से उसके दोस्त के साथ साथ उसके दोस्त के परिवार वालों की ज़िंदगी भी ख़तरे में पड़ जाए। इस लिए मेरा ख़याल यही है कि विराज ने अपने दोस्त और उसके परिवार की सुरक्षा के बारे में सोचते हुए कुछ तो ऐसा ज़रूर किया होगा जिससे तुम्हारा क़हर उन पर न टूटने पाए।"

"तुम्हारी इस बात में यकीनन सच्चाई की झलक दिख रही है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"मगर एक बार पता तो करना ही चाहिए हमें। क्योंकि अगर एक पल के लिए ये मान लें कि वैसा कुछ किया ही नहीं होगा विराज ने जैसे की तुम बात कर रही हो तो इस वक्त ज़रूर उसका दोस्त इसी गाॅव में अपने घर पर होगा। मैं एक बार इस बात की पक्के तौर पर जाॅच करवा लेना चाहता हूॅ।"

"ज़रूर जाॅच करवाओ अजय।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा___"मगर मेरा अनुमान यही है कि तुम्हारे हाथ कुछ नहीं लगने वाला।"
"माॅम ये आप क्या कह रही हैं?" शिवा के स्वर में नाराज़गी थी, बोला___"क्या आप चाहती हैं कि हमारे हाॅथ कुछ न लगे?"

"बात ये नहीं है बेटे कि मैं चाहती नहीं हूॅ।" प्रतिमा ने शख्त भाव से कहा___"बात ये है कि अब तक हाॅसिल भी क्या हुआ है? हर बार तो नाकामी ही हाॅथ लगी है हमें और अब तो ये आलम हो गया है कि किसी भी चीज़ के हाॅसिल होने की उम्मीद ही नहीं होती।"

"मैं तुम्हारे जज़्बातों को समझ सकता हूॅ माई स्वीट डार्लिंग।" अजय सिंह ने कहा___"मैं जानता हूॅ कि हर बार मिली नाकामी से तुम निराश हो गई हो। मगर यकीन मानो डियर, हमेशा ऐसा नहीं होता है। एक दिन ऐसा ज़रूर आता है जब हमें कामयाबी भी मिलती है। तुम देखना कि जिस दिन हमें कामयाबी मिली उस दिन हम अपनी उस कामयाबी को किस किस तरीके से सेलीब्रेट करेंगे?"

अजय सिंह की बात का प्रतिमा ने कोई जवाब न दिया। वो बस अजय सिंह को अजीब भाव से देखती रही। जबकि अजय सिंह ने उसके चेहरे से नज़र हटा कर शिवा से पवन सिंह के घर के बारे में पहले पूॅछा फिर अपनी कोट की पाॅकेट से मोबाइल निकाला। मोबाइल पर उसने किसी को फोन लगाया। दूसरी तरफ से काल रिवीव किये जाने के बाद अजय सिंह ने उसे पवन सिंह के घर का पता बताया और उससे जल्द से जल्द पवन सिंह का पता लगाने का हुक्म दिया। उसके बार उसने काल कट करके मोबाइल को अपने सामने रखी टेबल पर रख दिया।

"तो डिबेट को आगे बढ़ाएॅ डियर?" अजय सिंह ने प्रतिमा की तरफ देख कर कहा___"मैने अपने एक आदमी को पवन सिंह का पता करने के लिए बोल दिया है। वो जल्द ही इस बारे में हमें सूचित करेगा। तब तक हम अपनी डिबेट को आगे बढ़ते हैं।"

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी।" प्रतिमा ने भावहीन स्वर में कहा___"शुरू करो।"
"यहाॅ पर इन सब बातों को संक्षेप में ये निर्णय निकालते हैं कि बाहरी कोई भी ब्यक्ति मेरे साथ ये सब नहीं कर रहा है।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा__"बल्कि ये सब करने वाला सिर्फ एक ही शख्स है और वो है विराज। पवन सिंह का नाम जुड़ने से जो बात सामने आई वो ये है कि मुम्बई में रहते हुए विराज ने अपने दोस्त के द्वारा ये सब करवाया। किन्तु यहाॅ सवाल ये है कि विराज के इस काम में उसके और कितने दोस्त शामिल थे? क्योंकि ये काम सिर्फ एक आदमी से तो हो नहीं सकता। इस लिए ये जानना ज़रूरी है उसने किस किस को अपने इस काम पर लगाया हुआ है?"

"तुम एक बात भूल रहे हो अजय।" प्रतिमा ने कहा__"वो ये कि फैक्ट्री में आग लगने से पहले भी एक खेल तुम्हारे साथ खेला गया था। याद है, वो विदेशी ब्यापारी। जो अपनी बीवी के साथ आया था और उसने तुम्हें भारी मात्रा में कपड़ा तैयार करने को कहा था। डील पक्की होने के बाद जब डिलीवरी का समय आया तो उस विदेशी ब्यापारी का कहीं कोई पता ही नहीं था। अगले दिन अख़बार में ख़बर छपी कि शहर के मशहूर बिजनेस मैन अजय सिंह को किसी विदेशी ब्यक्ति ने करोड़ों का चूना लगाया।"

"ओह हाॅ यार।" अजय सिंह की ऑखों के सामने दो विदेशी पति पत्नी की शक्ल घूम उठी___"उसका तो मुझे ख़याल ही नहीं रहा था।"
"होना चाहिए अजय।" प्रतिमा ने कहा___"क्योंकि तुम्हारे साथ खेल खेलने का आग़ाज़ तो वहीं से शुरू हुआ था न? ख़ैर, मेरा ख़याल ये है कि वो विदेशी ब्यक्ति कोई और नहीं खुद विराज ही था और उसकी पत्नी के रूप में खुद उसकी ही बहन निधी थी।"

"व्हाऽऽऽट???" अजय सिंह उछल पड़ा___"ऐसा तुम यकीन से कैसे कह सकती हो?"
"नायकीनी की भी कोई वजह बता दो मुझे?" प्रतिमा ने बड़े आत्मविश्वास से कहा___"तुम यकीन इस लिए नहीं कर पा रहे क्योंकि तुम अब भी यही समझते हो कि विराज किसी ढाबे या होटल में कप प्लेट धो रहा होगा और उसकी औकात नहीं कि वो ये सब अफोर्ड कर सके। लेकिन मैं इस बात को अलग तरह से सोचती हूॅ अजय। मैं ये सोचती हूॅ कि विराज एक पढ़ा लिखा लड़का है। वो बचपन से ही पढ़ने लिखने में सभी बच्चों से आगे था। उसका माइंड बड़ा शार्प था। कहने का मतलब ये कि जितना वो पढ़ा लिखा था उससे उसे कोई नौकरी मिल जाना कोई मुश्किल काम नहीं था। संभव है कि उसे कोई ऐसी नौकरी मिल गई हो जिसके तहत वो इतना तो अफोर्ड कर ही सके कि वो तुम्हारे साथ ऐसा खेल खेल सके। अगर तुम इस एंगल से सोचोगे अजय तो तुम्हें भी लगने लगेगा कि हाॅ वो लड़का ऐसा कर सकता है।"

प्रतिमा की इन सब बातों से अजय सिंह को भी एहसास हुआ कि प्रतिमा की बात में सच्चाई है। इस बात को उसे भी स्वीकार करना ही पड़ा कि विराज सभी बच्चों में सबसे ज्यादा पढ़ने में तेज़ था। उसे ये भी मानना पड़ा कि उसे कोई ऐसी नौकरी ज़रूर मिल गई रही होगी जिससे वो ये सब कर सके। अजय सिंह की ऑखों के सामने शिवा का वो अधमरी हालत मिलना घूम गया। इस बात से ये साफ ज़ाहिर होता है कि विराज़ के मन में इन लोगों के प्रति आक्रोश और बदले की भावना है। इस लिए उसका तो ये हमेशा प्रयास रहेगा कि वो अपने साथ हुए अत्याचार का बदला ले सके।

अजय सिंह के मनो मस्तिष्क में ये सब बातें बड़ी तेज़ी से चलने लगी थी, जिसका असर ये हुआ कि उसने इस सब को स्वीकार कर लिया कि ये सब कुछ विराज ने ही किया हो सकता है। फिर चाहे उसका वो विदेशी बनना हो या फिर फैक्ट्री में आग लगाना। अभी अजय सिंह ये सब सोच ही रहा था कि सामने टेबल पर रखा उसका मोबाइल बजने लगा। उन तीनों ध्यान एक साथ मोबाइल पर गया।

अजय सिंह ने हाॅथ बढ़ा कर मोबाइल उठाया और उस पर आ रही काल को रिसीव कर उसे कान से लगा लिया। उस तरफ से कुछ देर तक वो कुछ सुनता रहा उसके बाद उसने ये कह कर काल कट कर दिया कि___"अपने सब आदमियों से कहो कि वो सब उन लोगों का पता लगाएॅ। मुझे हर हाल में उन सबका पता चाहिए।"

"क्या बात हुई तुम्हारी अपने उस आदमी से?" प्रतिमा ने पूछा।
"तुम्हारा कहना बिलकुल सही था प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"विराज ने सच में अपने उस दोस्त और उसके परिवार की सुरक्षा का ख़याल रखा हुआ था।"

"आख़िर क्या बताया तुम्हारे आदमी ने?" प्रतिमा ने कहा___"पूरी बात साफ साफ मुझे भी बताओ।"
"मेरा आदमी पवन सिंह के घर पर गया था।" अजय सिंह ने बताना शुरू किया___"किन्तु जब वो पवन ने घर के दरवाजे पर पहुॅचा तो देखा कि वहाॅ बड़ा सा ताला लगा हुआ था। उसके बाद मेरे उस आदमी ने आस पास वालों से पवन और उसके घर वालों के बारे में पूछा तो कुछ लोगों ने उसे बताया कि शाम को पवन के घर के सामने एक एम्बूलेन्स आई थी। उस एम्बूलेन्स में घर के अंदर से कुछ सामान लाकर रखा गया था और फिर उस एम्बूलेन्स में पवन, पवन की विधवा माॅ और उसकी एक बेटी बैठ गईं थी। इन लोगों के साथ दो आदमी और थे। वो दोनो भी उस एम्बूलेन्स में बैठ गए थे। एम्बूलेन्स के आगे ही एक जीप खड़ी थी। उस जीप के चलते ही वो एम्बूलेन्स भी चल पड़ी थी। इसके बाद वो लोग कहाॅ गए इसका किसी को कोई पता नहीं।"

"ओह इसका मतलब उन लोगों को पता था कि तुम्हें देर सवेर ये पता चल ही जाएगा कि विराज मुम्बई से आने के बाद पवन के घर पर ही ठहरा था।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"इस लिए, इससे पहले कि उन लोगों तक तुम्हारे आदमी पहुॅचें वो पहले ही वहाॅ से कूच कर गए। ख़ैर, अब तो तुम्हें यकीन आ गया न कि विराज ने ही ये सब किया है?"

"वो सब तो ठीक है डियर।" अजय सिंह के चेहरे पर गहन सोच के भाव थे, बोला___"मैंने मान लिया कि ये सब विराज ने ही किया होगा। मगर सोचने वाली बात है कि ये सब उसने कितना शातिराना ढंग से किया है। पवन और उसकी माॅ बहन को वो वहाॅ से एम्बूलेन्स जैसे वाहन से ले गया। कोई सोच भी नहीं सकता कि एम्बूलेन्स के अंदर कोई मरीज़ नहीं बल्कि ये सब मौजूद हो सकते हैं। मगर यहाॅ पर दो चीज़ें हैं जो समझ में नहीं आ रहीं।"

"कौन सी दो चीज़ें डैड?" शिवा ने चकित भाव से पूॅछा था।
"पहली चीज़ ये कि विराज के पास एम्बूलेन्स कहाॅ से आई?" अजय सिंह ने कहा___"साधारणरूप से यहाॅ पर उसके लिए एम्बूलेन्स का मिलना असंभव नहीं तो नामुमकिन बात तो है ही। दूसरी चीज़ ये कि एम्बूलेन्स के आगे जो जीप थी वो किसकी थी और उसमें कौन बैठा था? ये बात मेरे आदमी को पूछने पर भी किसी ने नहीं बताई कि उस जीप पर कौन कौन बैठा हुआ था? इसका मतलब तो यही हुआ कि पवन सिंह के अलावा भी कोई और है जो विराज की मदद कर रहा है।"

"विराज को एम्बूलेन्स कैसे मिल गई ये तो चलो साधारण बात हो सकती है।" प्रतिमा ने भी मानो अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाए___"हो सकता है कि उसने ज्यादा पैसे देकर एम्बूलेन्स का जुगाड़ कर लिया होगा। मगर सोचने वाली बात तो उस जीप की है। यकीनन ये एक नया प्वाइंट है अजय। तुमने सही पकड़ा। पवन के अलावा भी कोई है जो इस समय विराज की मदद कर रहा है। पर कौन हो सकता है ऐसा ब्यक्ति? इस गाॅव में ऐसा कौन है जिसके पास खुद की जीप हो सकती है?"

"तुम्हारा मतलब है कि इस गाॅव में जिसके पास खुद की जीप होगी।" अजय सिंह ने चौंकते हुए कहा___"वही विराज की मदद कर रहा है?"
"हाॅ बिलकुल।" प्रतिमा ने झट से कहा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता?"

"हो तो सकता है डियर।" अजय सिंह ने कहा___"मगर ये भी तो हो सकता है कि विराज ने वो जीप किराये पर हायर की हुई हो।"
"अगर विराज को अलग से कोई जीप हायर ही करना था तो पवन और उसकी माॅ बहन के साथ खुद भी एम्बूलेन्स से इस गाॅव से निकलने की क्या ज़रूरत थी?" प्रतिमा एक ही साॅस में कहती चली गई___"या तो वो किराये पर ली गई जीप से ही सबको साथ ले जाता या फिर सिर्फ एम्बूलेन्स के द्वारा ही सबको यहाॅ से ले जाता। दो अलग अलग वाहन साथ में रखने का क्या मतलब हो सकता है?"

"बात तो तुम्हारी सही है डियर।" अजय सिंह ने कहा___"मेरे आदमी ने बताया कि विराज सबको लेकर एम्बूलेन्स में ही बैठ गया था, ऐसा मेरे आदमी के पूछने पर कुछ लोगों ने उसे बताया है। जबकि दूसरी जीप में कौन बैठा था ये पता नहीं चला। इसका मतलब शायद ये भी हो सकता है कि पवन के अलावा जो दूसरा ब्यक्ति विराज की मदद कर रहा है वही उस जीप में था। एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का भी यही मतलब हो सकता है कि वो विराज एण्ड पार्टी को सुरक्षापूर्वक गाॅव से बाहर निकाल देना चाहता था। अब सवाल ये है कि वो जीप वाला दूसरा ब्यक्ति विराज एण्ड पार्टी को लेकर कहाॅ गया हो सकता है? शहर या फिर अपनी ही किसी सुरक्षित जगह पर?"

"सवाल तो ये भी है अजय कि विराज मुम्बई से यहाॅ आया किस लिए था?" प्रतिमा ने कहा___"यहाॅ पर उसका ऐसा क्या ज़रूरी काम था जिसके लिए उसने अपनी जान को भी ख़तरे में डाल दिया? विराज की माॅ गौरी ने उसे यहाॅ आने की इजाज़त कैसे दे दी होगी उसको?"

"संभव है कि वो अभय के बीवी बच्चों को लेने यहाॅ आया हो।" अजय सिंह ने संभावना ब्यक्त की थी।
"अगर उसके आने की यही वजह थी तो वो यहाॅ नहीं बल्कि सीधा अभय की ससुराल जाता।" प्रतिमा ने कहा___"करुणा तो अपने बच्चों के साथ अपने मायके में ही है। विराज सीधा वहीं जाता, और हमें उसके आने का पता भी नहीं चल पाता। मगर ऐसा हुआ नहीं बल्कि वो यहीं आया है। इसका मतलब यही हुआ कि वो जिस किसी भी काम से यहाॅ आया था वो कोई दूसरा ही काम था।"

"अब इसका पता तो खुद विराज ही बता सकता था या फिर उसका दोस्त पवन।" अजय सिंह ने एक नया शिगार सुलगाते हुए कहा___"मेरे आदमी उनकी खोज में लगे हैं। देखते हैं क्या नतीजा सामने आता है? ख़ैर, तब तक हम डिबेट को आगे बढ़ाते हैं।"

"अब कैसी डिबेट अजय?" प्रतिमा के माथे पर बल पड़ता चला गया___"ये बात तो क्लियर हो ही गई न उस सबमें विराज का ही हाॅथ था। उसने ही अपने दोस्त की मदद से वो सब किया था। फिर अब किस बात की डिबेट?"

"अभी तो बहुत कुछ बाॅकी है माई डियर।" अजय सिंह ने शिगार का गहरा कश लिया, बोला___"विचार विमर्ष के लिए और भी कई बातें शेष हैं।"
"अब और क्या बातें शेष हैं?" प्रतिमा ने पूछा।
"अभी तो एक सवाल ऐसा भी है डियर जिसे हम इग्नोर नहीं कर सकते।" अजय सिंह बोला___"जैसा कि हमारी डिबेट पर ये नतीजा निकला कि फैक्ट्री में आग विराज ने ही लगाई या लगवाई हो सकती है। इसमें भी दो बातें हैं, पहली ये कि क्या विराज को ये भी पता था कि फैक्ट्री में कोई गुप्त तहखाना है जिसके अंदर ग़ैर कानूनी चीज़ों का ज़खीरा मौजूद है? अगर हाॅ तो, क्या उसी ने उस ग़ैर कानूनी ज़खीरे को गायब किया या करवाया? या फिर दूसरी बात ये कि इस सबमें किसी और का भी हाॅथ था? क्योंकि सवाल इसी से निकल रहा है कि विराज को ये बात कैसे पता चली कि फैक्ट्री के अंदर कोई गुप्त तहखाना है जिसके अंदर मेरी ग़ैर कानूनी चीज़ें मौजूद हैं?"

"तुम कहना क्या चाहते हो अजय?" प्रतिमा ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा था।
"बहुत साफ बात है डियर।" अजय सिंह ने कहा__"अगर ये मान कर चलें कि विराज मुझसे बदला लेना चाहता है तो उस सूरत में वो मेरी फैक्ट्री में यकीनन आग लगा सकता है और उस आग में फैक्ट्री के अंदर का सब कुछ जल कर ख़ाक़ में मिल जाएगा। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं होगा कि इस सबमें मेरा क्या क्या और कितना नुकसान हो जाएगा? बदला लेने के रूप में ये एक नेचुरल बात हो गई। मगर, तहखाने से उन सब चीज़ों के गायब हो जाने से एक नई और सोचपूर्ण बात सामने आती है कि विराज ने उस सबको क्यों गायब किया और उस सबके बारे में उसे पता कैसे चला? मतलब साफ है डियर कि विराज को इस बात का अच्छी तरह से पता था कि फैक्ट्री के अंदर एक गुप्त तहखाना है और उस तहखाने के अंदर मेरी एक ग़ैर कानूनी दुनियाॅ मौजूद है। अब सवाल ये उठता है कि विराज को इस सबका कैसे पता था? क्योंकि वो तो कभी फैक्ट्री गया ही नहीं था, दूसरी बात वो मौजूदा वक्त में यहाॅ था भी नहीं तो कैसे उसे इतनी गुप्त बात का पता चल गया? इसका मतलब तो यही हुआ कि कोई ऐसा ब्यक्ति उसे मिला जिसने उसे फैक्ट्री के अंदर की इतनी बड़ी गुप्त बात बताई। वरना क्या उसे कोई ख़्वाब चमका था जिसमें उसने ये सब देख लिया होगा?"

"यकीनन तुम्हारी इस बात में प्वाइंट है।" प्रतिमा ने प्रभावित होने वाले भाव से कहा___"ये एक ज़बरदस्त प्वाइंट है अजय। फैक्ट्री में आग लगने वाले हादसे की कड़ियाॅ ऐसी हो सकती हैं____ विराज को सब कुछ पहले से ही किसी के द्वारा पता चल चुका था कि फैक्ट्री के अंदर मौजूद तहखाने में तुम्हारे द्वारा ग़ैर कानूनी धंधा भी किया जाता है। इस लिए उसने उस हिसाब से ही प्लान बनाया। मतलब ये कि फैक्ट्री में आग लगाने से पहले ही उसने तहखाने से वो सब चीज़ें निकाल कर अपने कब्जे में की, उसके बाद उसने तहखाने में टाइम बम फिट किया। कुछ टाइम बम उसने फैक्ट्री के अंदर उन जगहों पर भी फिट किये जहाॅ पर कपड़ों का स्टाॅक था और मशीनें थी। सारे टाइम बमों के फटने का टाइम एक ही था। सारी क्रिया करने के बाद वो फैक्ट्री के अंदर से बड़ी ही आसानी से बाहर निकल गया। उसके बाद क्या हुआ ये सबको पता ही है।"

"बिलकुल यही हुआ था।" अजय सिंह ने कहा___"अब सवाल यही है कि ऐसा वो कौन शख्स था जिसने विराज को तहखाने से संबंधित जानकारी दी? तहखाने के बारे में मेरे अलावा किसी को भी पता नहीं था। इस बात के पता होने का तो सवाल ही नहीं उठता कि उसके अंदर क्या मौजूद है।"

"कोई तो ऐसा ब्यक्ति ज़रूर था अजय।" प्रतिमा ने सोचने वाले भाव से कहा___"जिसने विराज को इतनी बड़ी गुप्त जानकारी दी। एक मिनट अजय.......जिस दिन फैक्ट्री में वो हादसा हुआ था उसी दिन या रात को तुम्हारा भूतपूर्व पार्टनर विदेश जाने के लिए प्लेन में बैठा था। एक बार इस बारे में फिर से सोचो डियर, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सक्सेना को पता चल गया हो कि फैक्ट्री के अंदर तहखाना भी है और उस तहखाने में तुम क्या धंधा करते हो? ऐसा बिलकुल हो सकता है अजय, सक्सेना के पास दूसरी कोई ठोस वजह नहीं थी यहाॅ से रफूचक्कर हो जाने की। वो तो तुम्हारा जिगरी यार भी था, ऐसा जिगरी कि उससे हमारे बड़े गहरे संबंध थे। उसकी बीवी तौम्हारे नीचे और तुम्हारी ये बीवी यानी कि मैं उसके नीचे। हम सब एक साथ कितना इन सबमें एन्ज्वाय करते थे। ऐसे मज़ेदार रिश्तों को अनायास ही छोंड़ कर विदेश चले जाने का दूसरा और क्या मतलब हो सकता है भला?"

"तुम ये कहना चाहती हो कि सक्सेना को फैक्ट्री के अंदर मौजूद तहखाने से संबंधित सबकुछ पता था।" अजय सिंह बोला___"उसके बाद वो मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए कोई जुगत लगाने लगा। और फिर संयोग से उसकी मुलाक़ात विराज से हुई। उसने विराज को सब कुछ बता दिया और फिर वह मुझसे अपना हिसाब किताब करके यहाॅ से रफूचक्कर हो गया?"

"मेरा मतलब यकीनन यही है डियर हस्बैण्ड मगर इसमें बात इस तरह नहीं हुई जैसी कि तुमने सोच कर बयां की है।" प्रतिमा ने कहा___"बल्कि ऐसी हुई है, मेरी थ्योरी ये है ____विराज को तुमसे किसी भी तरह से बदला लेना था ये एक सच बात है। मगर उसने सोचा कि तुमसे अपना बदला लेने की उसमें क्षमता नहीं है। इस लिए उसने दिमाग़ लगाया। उसने तुमको अंदर से कमज़ोर करने का प्लान बनाया। सबसे पहले उसने अपनी बहन के साथ मिल कर विदेशी बिजनेस मैन का गेटअप बनाया और फिर तुमसे वो डील की। बाद में डिलीवरी के वक्त वो गायब हो गया। इसका नतीजा ये हुआ कि भारी मात्रा में तैयार किया गया कपड़ा बिक नहीं पाया और जो तुमने उसे तैयार करवाने में पैसा लगाया वो वसूल नहीं हो पाया। इससे तुम्हें काफी नुकसान हुआ। इसका एक नुकसान ये भी हुआ कि बिजनेस के क्षेत्र में इस तरह किसी विदेशी के हाॅथों धोखा खा जाने से तुम्हारी रेपुटेशन पर इसका बुरा असर पड़ गया। उसके बाद फैक्ट्री में आग लग जाने से जो भारी नुकसान हुआ उससे तुम पूरी तरह हिल गए। इतना कुछ होने के बाद भी तुम ये नहीं समझ पाए कि ये सब तुम्हारे क्यों और कौन कर रहा है? मगर विराज ने अपनी तरफ से तुम्हारे लिए एक क्लू भी छोंड़ा, वो क्लू ये था कि तहखाने के अंदर से उसने तुम्हारी सारी ग़ैर कानूनी चीज़ें गायब कर दी। यहाॅ उसने तुम्हें ये जता दिया कि ऐसा कैसे और कौन कर सकता है? ये अलग बात है कि ये बात तुम आज समझे हो। ख़ैर, इस बार तो वो खुद ही यहाॅ आया और तुम्हारे इतने सारे आदमियों को आश्चर्यजनक रूप से पता नहीं कहाॅ और कैसे गायब कर दिया?"

"ओह वैरी गुड।" अजय सिंह मुस्कुराया___"यकीनन इस थ्यौरी में दम है डियर। अब ये भी बता दो कि विराज ने तहखाने से मेरी वो सब ग़ैर कानूनी चीज़ें क्यों गायब की? उनसे उसे क्या फायदा हो सकता है भला?"
"कमाल करते हो अजय।" प्रतिमा चौंकी___"इतनी सी बात का मतलब पूछते हो मुझसे। खुद सोचो कि विराज ने वो सब क्यों गायब किया होगा? सीधी सी बात है अजय, वो सब चीज़ें तुम्हारे काले कारनामों का पुख्ता सबूत हैं। विराज अगर चाहे तो आज तुम्हें उन सब चीज़ों के आधार पर जेल पहुॅचवा सकता है। तुम्हें ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि ग़ैर कानूनी धंधा करने के जुर्म में कानून तुम्हें कितनी बड़ी सज़ा सुना सकता है? कहने का मतलब ये कि तुम्हारी स्वतंत्रता विराज के हाॅथों में है। वो अगर चाहे तो तुम कानून की गिरफ्त से दूर रहोगे और अगर वो चाहे तो आज इसी वक्त तुम कानून के शिकंजे में फॅस जाओ। मगर चूॅकि अब तक उसने ऐसा कुछ नहीं किया है इस लिए अभी तुम कानून की पहुॅच से बाहर हो। मगर इसका मतलब ये नहीं है भविष्य में भी ऐसा ही रहेगा। संभव है कि विराज किसी ऐसे वक्त पर ये सब करे जब उसे लगे कि यही सही वक्त है। दैट्स इट।"

प्रतिमा की ये बातें सुन कर अजय सिंह के समूचे जिस्म में झुरजुरी सी दौड़ गई। बगल से ही सोफे पर बैठे शिवा की ऑखों के सामने उसके बाप के दोनो हाॅथ कानून की हथकड़ी में बॅधे नज़र आए। इस दृष्य के घूमते ही शिवा की धड़कने एकाएक ही बढ़ चली थी। अभी ये सब ये लोग सोच ही रहे थे कि तभी एक बार फिर से अजय सिंह का मोबाइल बज उठा। हड़बड़ा कर अजय सिंह ने मोबाइल की काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया।

".........।" उधर से कुछ देर तक कुछ कहा गया। जिसे सुन कर अजय सिंह के चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे। उधर की बातें सुनने के बाद अजय सिंह ने ये कह कर फोन रख दिया कि____"ठीक है, तुम अपने कुछ आदमियों को गुनगुन रेलवे स्टेशन जाने को बोल दो और बाॅकी के लोग आस पास के क्षेत्र की अच्छे से छानबीन करते रहो।"

"क्या कहा तुम्हारे आदमी ने?" अजय सिंह के फोन रखते ही प्रतिमा ने पूछा था।
"उसने जो कुछ भी मुझे बताया है।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"उसे जान कर मुझे यकीन नहीं हो रहा है प्रतिमा।"
"क्या मतलब??" प्रतिमा के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभरे___"किस बात का यकीन नहीं हो रहा तुम्हें?"

प्रतिमा के पूछने पर अजय सिंह ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया। बल्कि चेहरे पर गंभीरता लिए उसने एक नया शिगार सुलगाया और दो तीन जल्दी जल्दी कश लेने के बाद उसने नाॅक व मुह से ढेर सारा धुआॅ उगला। प्रतिमा और शिवा दोनो ही उसके मुख से जवाब सुनने के लिए बेचैन से होने लगे थे। किन्तु अजय सिंह ने शिगार पी लेने के बाद भी कोई जवाब नहीं दिया। वो किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आया। प्रतिमा उसके चेहरे पर इस तरह सोच के भाव देख कर चौंकी। उसने अजय सिंह को आवाज़ देकर सोच के सागर से निकाला। हक़ीक़त की दुनियाॅ में आकर अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और एक झटके से सोफे पर से उठ कर खड़ा हो गया। उसने शिवा और प्रतिमा दोनो को हवेली चलने को कहा और बाहर की तरफ बढ़ता चला गया। दोनो माॅ बेटा भौचक्के से देखते रह गए थे अजय सिंह को।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर रितू दीदी के फार्महाउस पर!
सुबह हुई और एक नये दिन तथा एक नये जीवन की शुरूआत हुई। सबके प्यार ने और सबके समझाने का असर ये हुआ था कि पिछले दिन की अपेक्षा आज मेरी हालत में काफी हद तक सुधार था। कल तो मैं सदमे में ही डूबा हुआ था। किसी से कोई मतलब ही नहीं था और ना ही किसी से कोई बात करने का दिल कर रहा था। मगर आज मैं काफी हद तक नार्मल था।

जब मेरी नींद खुली तो मैने देखा मेरे दोनो तरफ मुझसे छुपकी हुई मेरी दोनो बहनें सुकून से सो रही थी। उन दोनो के खूबसूरत तथा मासूम से चेहरों को देख कर ही मेरा मन खुश सा हो गया। वो दोनो मुझसे ऐसे छुपकी हुई थी मानो उन्हें डर हो कि मैं उन्हें छोंड़ कर कहीं दूर चला जाऊॅगा। मैं काफी देर तक उन दोनो को एकटक देखता रहा। आशा दीदी की तो ख़ैर बात ही अलग थी किन्तु रितू दीदी की बात सबसे जुदा थी। वो इस लिए क्योंकि बचपन से लेकर अब तक मैं उनके मुख से राज या भाई सुनने को तरस गया था। वो मुझे देखना तक गवाॅरा नहीं करती थी बात करने की तो बहुत दूर की बात है। मगर आज मेरी वही रितू दीदी मुझसे छुपकी हुई सो रही थी। उनके दिल में मेरे लिए बेपनाह प्यार व स्नेह था।

उन्हें इस तरह सुकून से सोते देख जाने क्यों मेरी ऑखों में ऑसू भर आए। मेरे दिल में दर्द की एक तेज़ लहर सी दौड़ गई। अभी मैं इस लहर से ब्यथित हुआ ही था कि सहसा रितू दीदी के सम्पूर्ण जिस्म में हरकत हुई और देखते ही देखते उनकी ऑखें खुल गईं। उनकी नज़र सबसे पहले मुझ पर ही पड़ी। मेरी ऑखों में ऑसू देखते ही वो बेचैन सी नज़र आने लगीं। उन्होंने अपना हाॅथ बढ़ा कर मेरे चेहरे को सहलाया और सिर को ना में हिलाते हुए मुझे इशारा किया कि मैं दुखी न होऊॅ।

इधर आशा दीदी की भी ऑखें खुल गई थी। सिर को ऊपर की तरफ उठा कर उन्होंने मुझे देखा और मेरी ऑखों में ऑसू देखते ही उन पर भी वही प्रतिक्रिया हुई जो रितू दीदी पर हुई थी। दोनो ने एक साथ ऊपर की तरफ खिसक कर मेरे माथे पर हल्के से चूमा। मैं अपनी दोनो बहनों का ये प्यार देख कर अंदर ही अंदर गदगद सा हो गया। मुझे एक अलग ही तरह का एहसास हुआ। ऐसा लगा कि अब मैं यहाॅ पर अकेला नहीं हूॅ बल्कि यहाॅ भी मेरे अपने हैं, जो मुझे इस हद तक प्यार करते हैं।

"तू इस तरह अब कभी दुखी मत होना राज।" रितू दीदी ने गंभीरता से कहा___"मैं मानती हूॅ कि अभी जो कुछ भी हुआ उससे तुझे गहरा सदमा लगा है। मगर तुझे खुद को सम्हालना होगा मेरे भाई। तू मुझे भाई के रूप में मिल गया है इस लिए मैं चाहती हूॅ कि मेरा भाई हमेशा खुश रहे। तेरे पास किसी भी प्रकार का दुख दर्द न आए। मैने भी ठान लिया है कि मैं तुझे कभी भी दुखी नहीं होने दूॅगी, और इसके लिए मैं किसी भी हद तक गुज़र जाऊॅगी।"

"रितू सही कह रही है राज।" आशा दीदी ने कहा__"अब से हम दोनो बहनें तुझे कभी भी दुखी नहीं होने देंगे। उसके लिए चाहे हमें जो भी करना पड़े हम करेंगे।"
"इसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी दीदी।" मैने हल्के से मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि जिसके पास आप जैसी इतना प्यार करने वाली दो दो बहनें हों उसको कोई दुख तक़लीफ कैसे हो जाएगी? आप चिन्ता मत कीजिए धीरे धीरे सब ठी हो जाएगा।"

"ये हुई न बात।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"मुझे पता है कि मेरा स्वीट सा भाई कितना समझदार है। ख़ैर, चल अब तू फ्रेश हो ले। हम दोनो भी फ्रेश हो जाते हैं, उसके बाद नास्ता करेंगे साथ में। मुझे भी थाने जाना पड़ेगा न।"
"मुबारक हो दीदी।" मैने कहा___"आप पुलिस ऑफीसर बन गई हैं। मुझे पता है आपका शुरू से ही ये सपना था कि आप एक दिन पुलिस ऑफिसर बनो। इस लिए इसके लिए आपको ढेर सारी बॅधाईयाॅ दीदी।"

"थैंक्स राज।" दीदी ने कहा___"लेकिन मेरे माॅम डैड को मेरा पुलिस ऑफीसर बनना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा है। आए दिन इस बारे में कोई न कोई बात होती रहती है घर में। मैने भी फैंसला कर लिया है कि अब ये पुलिस की नौकरी छोंड़ दूॅगी।"

"अरे ऐसा क्यों दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा___"नहीं नहीं आप ऐसा बिलकुल नहीं करेंगी। पुलिस ऑफीसर बनना आपका ख़्वाब था और जब ये ख़्वाब पूरा हो ही गया है तो इसे इस तरह छोड़ कर अंदर ही अंदर हमेशा के लिए दुखी रहने वाला काम मत कीजिए। रही बात बड़े पापा और बड़ी माॅ की तो मुझे पता है वो ऐसा क्यों चाह रहे हैं?"

"अच्छा क्या पता है तुझे?" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर पूछा___"ज़रा मैं भी तो सुनूॅ।"
"जिनके हाॅथ खून से रॅगे हों।" मैने कहा___"और जो जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखता हो, वो तो पुलिस और कानून से डरेगा ही। आप तो वैसे भी एक तेज़ तर्रार पुलिस ऑफीसर हैं। उन्हें भी पता है कि आपको अगर ये पता चल जाए उनके डैड जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखते हैं तो आप सेकण्ड भर का भी समय नहीं लगाएॅगी उन्हें कानून की गिरफ्त में लेने में। इस लिए वो नहीं चाहते हैं कि आप पुलिस की नौकरी करें।"

मेरी ये बातें सुन कर रितू दीदी ही नहीं बल्कि आशा दीदी भी बुरी तरह उछल पड़ी थी। रितू दीदी मुझे इस तरह देख रही थीं जैसे मैं कोई अजूबा हूॅ।

"तू ये बात इतने यकीन से कैसे कह सकता है कि मेरे डैड जुर्म की दुनियाॅ से ताल्लुक रखते हैं?" रितू दीदी ने चकित भाव से पूछा था।
"मुझे उनके बारे में हर चीज़ पता है दीदी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और मैं ये भी जानता हूॅ कि आप भी अपने डैड के बारे में बहुत कुछ जान चुकी हैं।"

"क्या मतलब????" रितू दीदी की ऑखें आश्चर्य से फैल गईं___"मैं बहुत कुछ क्या जान चुकी हूॅ?"
"जाने दीजिए दीदी।" मैने पहलू बदलने की गरज़ से कहा___"उन सब बातों को ज़ुबाॅ पर लाने का कोई मतलब नहीं है। आप ये पूछिये कि मुझे कैसे पता कि आप भी हुत कुछ जानती हैं?"

"हाॅ हाॅ बता न राज।" रितू दीदी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था, बोली___"मैं जानना चाहती हूॅ कि ये सब तुझे कैसे पता है?"
"बड़ी सीधी सी बात है दीदी।" मैने कहा___"सबसे पहले तो यही कि आपका मेरे प्रति इतना प्यार ही ये ज़ाहिर कर देता है कि आपको उनकी असलियत के बारें में कुछ तो ऐसा पता चला ही जिसके तहत आपके दिल में मेरे प्रति प्यार जाग गया। दूसरी बात ये कि आप इस फार्महाउस में नैना बुआ के साथ रह रही हैं। इससे साबित हो जाता है कि आपको अपने माॅम डैड के बारे में कुछ तो ऐसा पता चल ही चुका है। वरना नैना बुआ को साथ लिए यहाॅ रहने का क्या कारण हो सकता है? तीसरी बात, मेरे दोस्त पवन से कह कर मुझे विधी से मिलाने के लिए मुम्बई से बुलाना। पवन और विधि के द्वारा भी आपको कुछ तो ऐसा पता चल ही चुका होगा जिससे आपको ये लगने लगा कि मैं और मेरी माॅ बहन इतने बुरे नहीं हो सकते जितना आपको बताया गया था बचपन से।"

रितू दीदी मेरी ये बातें सुन कर हैरान रह गईं। फिर सहसा उनके चेहरे पर प्रशंसा के भाव उभर आए। होठों पर हल्की सी मुस्कान भी फैल गई।
"यकीनन तूने बड़ी खूबसूरती से इन सब बातों का अंदाज़ा लगाया है राज।" फिर उन्होंने कहा___"और ये सच है कि मुझे अपने माॅम डैड की असलियत के बारे में पता चल चुका है। किन्तु अभी भी कुछ बातें हैं जिनका मुझे शायद पता नहीं है।"

"डोन्ट वरी दीदी।" मैने कहा___"जब इतना कुछ पता चल गया है तो बाॅकी का भी आपको पता चल ही जाएगा।"
"चल ठीक है मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को प्यार से सहलाया___"मैं तो बस इस बात से ही खुश हूॅ कि मुझे मेरा वो भाई मिल गया है जो सच में मुझे अपनी दीदी मानता है और मेरी इज्ज़त करता है। आने वाले समय में क्या होने वाला है ये तो वक्त ही बताएगा। मैं बस ये चाहती हूॅ कि जितने दिन तू यहाॅ है उतने दिन तक तुझ पर किही भी तरह के ख़तरे को न आने दूॅ।"

"आप फिक्र मत कीजिए दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपका ये भाई कोई दूध पीता बच्चा नहीं है जिसे कोई भी चोंट पहुॅचा देगा। इतना तो अब मुझमें सामर्थ है कि मैं अपनी सुरक्षा खुद कर सकूॅ।"
"हाॅ मुझे पता है।" रितू दीदी हॅस कर बोली___"मुझे पता है कि मेरे भाई ने दो मिनट के अंदर मेरे डैड के उतने सारे आदमियों का खात्मा कर दिया था।"

"वो तो बस हो गया दीदी।" मैने कहा___"पर आपके सामने तो कुछ भी नहीं हूॅ मैं। आपने भी तो मेरी सुरक्षा के लिए क्या कुछ नहीं किया है। मैं सोच भी नहीं सकता था कि आप मेरे लिए इतना कुछ कर सकती है।"
"तेरे लिए तो अब कुछ भी कर सकती हूॅ मेरे भाई।" दीदी की आवाज़ भारी हो गई___"बचपन से लेकर अब तक मैने तेरे साथ क्या किया है ये सोच कर ही मुझे खुद से घृणा होने लगती है। इस लिए अब मैं तेरे लिए और अपने भाई के लिए कुछ भी करूॅगी।"

मैने देखा कि ये सब कहते हुए दीदी की ऑखों में ऑसू आ गए थे इस लिए मैने उन्हें खुद से छुपका लिया। वो खुद भी मुझसे किसी जोंक की तरह चिपक गई थी।

"तुम दोनो का हो गया हो तो मेरा भी कुछ ख़याल कर लो।" सहसा आशा दीदी ने कहा___"मुझे तो भुला ही दिया तुम दोनो ने।"
"क्या आप सोच सकती हैं दीदी कि हम आपको भुला देंगे?" मैने आशा दीदी को खुद से छुपकाते हुए कहा था।

ऐसे ही कुछ देर तक हम तीनो भाई बहन एक दूसरे से छुपके रहे फिर हम तीनो अलग हुए। रितू दीदी ने मुझे फ्रेश हो जाने का कहा और खुद भी फ्रेश होने के लिए आशा दीदी को लेकर कमरे से बाहर निकल गईं। उन दोनो के जाने के बाद मैं कुछ देर यूॅ ही बेड पर लेटा किसी सोच में डूबा रहा फिर मैं उठ कर बाथरूम में चला गया।

नास्ते की टेबल पर सब कोई साथ में ही बैठ कर नास्ता कर रहा था। किचेन में हरिया काका की बीवी बिंदिया और पवन की माॅ ने नास्ता तैयार किया था। मैं अपनी नैना बुआ से ठीक तरह से मिला। उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा कर बहुत प्यार दिया और हमेशा खुश रहने की दुवाएॅ दी।

रितू दीदी ने बताया कि आज करुणा चाची भी बच्चों के साथ यहीं आ रही हैं। उनको सुरक्षा पूर्वक यहाॅ पर लाने की जिम्मेदारी खुद रितू दीदी ने ही ली। हलाॅकि मैने उन्हें समझाया भी कि आप आराम से ड्यूटी जाइये, मैं और आदित्य करुणा चाची को उनके बच्चों के साथ सुरक्षित यहाॅ ले आएॅगे, मगर दीदी नहीं मानी। इस लिए मैने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया। दीदी ने मुझे यहीं पर आराम करने की सलाह दी थी। हलाॅकि मैं चाहता था कि मैं एक बार विधी के घर जाऊॅ और उसके माॅम डैड का हाल चाल देख लूॅ मगर रितू दीदी ने कहा कि वो सब देख सुन लेंगी।

नास्ता करने के बाद रितू दीदी अपनी पुलिस जिप्सी में बैठ कर थाने चली गईं। नैना बुआ, आशा दीदी और पवन की माॅ ये तीनो एक साथ ही बातें करने में लग गईं। जबकि मैं पवन और आदित्य फार्महाउस के बाहर की तरफ आ गए। मैने देखा कि फार्महाउस काफी लंबा चौड़ा था। बाहर फ्रंट गेट पर दो बंदूखधारी खड़े थे। गेट के बगल से ही एक छोटी सी चौकी बनी हुई थी। जो शायद उन दोनो बंदूखधारियों के आराम करने के लिए थी।

हम तीनो एक साथ बाॅई तरफ बढ़ गये। उस तरफ एक सुंदर सा पेड़ था जिसके नीचे हरी हरी घास उगी हुई थी तथा पेड़ के पास ही स्टील की बड़ी बड़ी दो तीन बेंच रखी हुई थी बैठने के लिए। हम तीनो जाकर उन बेंचों पर बैठ गए। कल विधी वाले मैटर के बाद से हम तीनो कुछ बुझे बुझे से थे। मुझे रह रह कर विधी के बारे में वो सब याद आ जाता था जिसकी वजह से मेरा दिल दुखने लगता था।

"वैसे विराज।" सहसा आदित्य ने कहा___"हम यहाॅ से कब निकलने वाले हैं? ये जो कुछ भी हुआ वो यकीनन बहुत दुखद हुआ है मगर ये भी सच है दोस्त कि हमें जीवन में आगे बढ़ना ही होता है। ये सब तुम्हीं ने मुझसे कहा था न? इस लिए दोस्त विधी की खूबसूरत यादों को दिल में ही दबा के रखो और आगे बढ़ो।"

"मैं जानता हूॅ आदित्य।" मैने भारी मन से कहा___"मुझे पता है कि इस सबको लेकर बैठ जाने का कोई मतलब नहीं निकलने वाला है। मगर एक दो दिन मैं यहीं रह कर खुद को और अपने दिल को शान्त कर लेना चाहता हूॅ। मैं नहीं चाहता कि मेरे चेहरे पर छाई उदासी या किसी दुख के भाव को देख कर मुम्बई में मेरी माॅ और बहन को कुछ पता चल जाए। वो मुझे किसी भी कीमत पर दुखी नहीं देख सकती हैं।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है दोस्त।" आदित्य ने कहा__"पर ये भी तो सोचो कि यहाॅ पर ज्यादा दिन तुम्हारा रुकना ठीक नहीं है। तुम्हारी जान को हर वक्त ख़तरा बना रहेगा।"
"मैं किसी ख़तरे से नहीं डरता आदित्य।" सहसा मेरे चेहरे पर कठोरता आ गई___"पहले मुझे कुछ पता नहीं था और मैं किसी दूसरे उद्देश्य से यहाॅ आया था इस लिए मैं अजय सिंह या उसके आदमियों से उलझना नहीं चाहता था। मगर अब मुझे किसी की कोई परवाह नहीं है। मैं भी तो देखूॅ कि अजय सिंह कैसे मेरा बाल बाॅका करता है?"

"ये सब तुम आवेश में कह रहे हो दोस्त।" आदित्य ने कहा___"जबकि तुम भूल रहे हो कि इस वक्त तुम्हारी कई कमज़ोरियाॅ तुम्हारे साथ साथ हैं। अगर तुम अकेले होते तो मान सकता था कि तुम धड़ल्ले के साथ उन सबका मुकाबला कर लेते मगर इस वक्त तुम अकेले नहीं हो। पवन और उसकी माॅ बहन भी तुम्हारे साथ हैं और तुम्हारे अभय चाचा के बीवी बच्चे भी तुम्हारे साथ तुम्हारी कमज़ोरी के रूप में जुड़ जाएॅगे। उस सूरत में तुम खुद की सुरक्षा करोगे या उन लोगों की जो इस वक्त तुम्हारे साथ जुड़ गए हैं?"

"आदित्य सही कह रहा है राज।" पवन ने भी हस्ताक्षेप किया___"इस वक्त तुम किसी से उलझने की पोजीशन में नहीं हो। दूसरी बात ये भी है कि मान लो अगर तुम्हारे बड़े पापा को ये पता चल गया कि तुम्हारे हर काम में तुम्हारी मदद रितू दीदी भी कर रही हैं तो सोचो क्या होगा? अरे रितू दीदी के लिए भी उनका ख़तरा हो जाएगा। भला अजय चाचा ये कैसे बरदास्त कर पाएॅगे कि उनकी बेटी उनके सबसे बड़े दुश्मन का साथ दे रही है? जिस तरह का कैरेक्टर तुम्हारे बड़े पापा का है उससे यही बात सामने आती है कि वो ये सब जानने के बाद अपनी बेटी को किसी भी सूरत में माफ़ नहीं करेंगे।"

"मैं पवन की इस बात से पूरी तरह सहमत हूॅ।" आदित्य ने कहा___"तुम अपनी वजह से भला अपनी रितू दीदी की जान को भी संकट में कैसे डाल सकते हो? उनके हित के बारे में सोचना तुम्हारा सबसे बड़ा फर्ज़ होना चाहिए दोस्त। उन्होंने तुम्हारी सुरक्षा के लिए क्या कुछ नहीं किया है?"

"कभी कभी वक्त और हालात के हिसाब से भी कोई फैंसला लेना चाहिए राज।" पवन ने कहा___"विधी के जाने का दुख हम सबको है मगर खुद विधी भी ये नहीं चाहेगी कि तुम पर या तुम्हारी वजह से किसी और पर कोई ऐसा संकट आए। इस लिए मैं यही कहूॅगा कि जितना जल्दी हो सके हमें यहाॅ से निकल जाना चाहिए। मैं तुम्हें जंग के लिए नहीं रोंक रहा भाई, वो तो तसल्ली से और सबको सुरक्षित करने के बाद भी की जा सकती है।"

"ठीक है यार।" मैने उन दोनो की बातों पर विचार करते हुए कहा___"जैसा तुम दोनो कहोगे मैं वैसा ही करूॅगा। हम सब कल ही यहाॅ से मुम्बई के लिए निकलेंगे। सबकी टिकटों का इंतजाम करवाता हूॅ मैं।"
"उसकी ज़रूरत नहीं है दोस्त।" आदित्य ने कहा__"सबकी टिकटों का इंतजाम हो गया है। मैने कल ही सर(जगदीश ओबराय) से बात की थी। उन्हें मैने यहाॅ कुछ बातें संक्षेप में बताई थी, और ये भी कहा था कि वो हम सबकी टिकटों का इंतजाम करवा दें। आज सुबह मेरे मोबाइल पर उन्होंने सबकी टिकट की पिक व्हाट्सएप पर भेज दी हैं।"

"चलो ये अच्छा हुआ।" मैने कहा___"लेकिन एक बात अभी भी सोचने वाली है। वो ये कि देर सवेर अजय सिंह को ये पता चल भी सकता है कि रितू दीदी मेरी हर तरह से मदद कर रही थी। इस लिए अगर ऐसा हुआ तो रिते दीदी के लिए भी ख़तरा हो सकता है।"

"तो तुम अब क्या चाहते हो?" आदित्य ने पूछा।
"मैं तो यही चाहूॅगा यार कि रितू दीदी पर कोई संकट न आए।" मैने कहा___"हलाॅकि वो एक पुलिस ऑफिसर हैं और किसी भी ख़तरे से निपटने के लिए वो खुद ही सक्षम हैं मगर फिर भी उन्हें यहाॅ अकेला छोंड़ देने का मेरा दिल नहीं करता है। दूसरी बात उनके साथ नैना बुआ भी तो हैं। रितू दीदी के साथ वो भी तो अजय सिंह के लपेटे में आ सकती हैं।"

"मेरे ख़याल से इस में इतना सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं है राज।" पवन ने कहा___"रितू दीदी के रहते ये सब हो जाने का चान्स बहुत ही कम है। फिर भी अगर उन्हें लगेगा कि उन दोनो पर ख़तरा है तो वो अपनी सुरक्षा के लिए अपने आला अधिकारियों से पुलिस प्रोटेक्शन भी ले सकती हैं। मुझे यकीन है कि अजय चाचा उस सूरत में उनका और नैना बुआ का कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे।"

"यस पवन इज राइट।" आदित्य ने कहा___"इस लिए तुम्हें रितू दीदी और नैना बुआ की फिक्र नहीं करनी चाहिए।"
"ठीक है भाई।" मैने गहरी साॅस ली___"तो फाइनल हो गया कि हम सब कल यहाॅ से मुम्बई के लिए निकल लेंगे।"

मेरी इस बात से पवन और आदित्य मुस्कुरा कर रह गए। मैंने इधर उधर नज़रें घुमाई तो मेरी नज़र फार्महाउस के गेट पर खड़े दोनो बंदूखधारियों पर पड़ी। वो दोनो हॅस हॅस के कुछ बातें कर रहे थे। एक ब्यक्ति दूसरे वाले की पीठ भी ठोंक रहा था। मुझे समझ न आया कि ये दोनो ऐसी कौन सी बात पर हॅस रहे हैं और दूसरा उसकी पीठ ठोंक रहा है।

ख़ैर, कुछ देर तक हम वहीं बेंच पर बैठे रहे। उसके बाद हम तीनो उठे और वापस अंदर की तरफ बढ़ने लगे। अभी मैं दो चार क़दम ही आगे बढ़ा था कि उन दो बंदूखधारियों में से एक उससे कुछ बोला और फिर एक बार हम तीनों की तरफ सरसरी नज़र से देखा। उसके बाद वो मुस्कुराते हुए ही फार्महाउस के बाएॅ साइड बने एक अलग दरवाजे की तरफ बढ़ गया। मेरी नज़र बराबर उसी पर थी, वो आदमी उस दरवाजे के पास पहुॅच कर एक बार पहले वाले आदमी की तरफ मुस्कुरा कर देखा उसके बाद दरवाजे के अंदर दाखिल हो गया। मेरे मन में उसकी इन सब क्रियाओं से संदेह पैदा हो गया।

मुख्य द्वार के पास पहुॅचते ही मैने पवन और आदित्य को अंदर जाने का कह दिया और खुद बाहर ही थोड़ी देर बैठने का बोल कर वहीं खड़ा रह गया। मेरे कहने पर पवन और आदित्य दोनो ने मुझे अजीब भाव से देखा तो मैने अपनी पलकें झपका कर उन्हें तसल्ली रखने का इशारा किया। मेरे इस इशारे से वो दोनो अंदर की तरफ बढ़ गए। उनके जाने के कुछ देर बाद ही मैंने पहले वाले की तरफ देखा तो वो मुझे गेट के पास बनी चौकी की तरफ मुड़ कर हाॅथों में खैनी मलता नज़र आया। मैं बड़ी तेज़ी से उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया जिस तरफ वो दूसरा आदमी गया था।

दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने आहिस्ता से दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला तो वो हल्की सी आवाज़ के साथ खुल गया। दरवाजे के खुलते ही मैं उसके अंदर दाखिल हो गया। अंदर आते ही मैने इधर उधर देखा तो मुझे दाईं तरफ एक गैलरी दिखी तो मैं उस गैलरी में आगे की तरफ बढ़ चला। कुछ ही दूरी पर मुझे एक कमरा नज़र आया जिसका दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। मैं उस खुले हुए दरवाजे के पास पहुॅच कर उसके खुले हुए भाग से अंदर की तरफ का मुआयना किया और फिर दरवाजे को खोल कर अंदर की तरफ दाखिल हो गया।

इस कमरे में मध्यम सी रोशनी थी। बाईं तरफ एक ऐसा दरवाजा नज़र आया जैसा कि वो किसी ऐसे वोल्ट का हो जिसके अंदर सरकार का बहुत सारा गोल्ड रखा गया हो। ये देख कर मेरे चेहरे पर नासमझने वाले भाव उभरे। उत्सुकतावश मैं उस दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजे के पास पहुॅच कर मैने ध्यान से उस दरवाजे को देखा तो पता चला कि ये दरवाजा किसी मोटे लोहे से बना बहुत ही मजबूत दरवाजा है। किन्तु मैने देखा कि एक ही तरफ खुलने वाले उस दरवाजे पर भी हल्की सी झिरी थी। इसका मतलब वो आदमी जो अंदर आया था वो इसके अंदर ही गया है।

मेरा दिल ने अनायास ही किसी अंजानी आशंकावश ज़रा तेज़ी से धड़कना शुरू कर दिया था। मैने उस झिरी पर अपने कान सटा दिये। मैं अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश कर रहा था मगर मैं उस वक्त चौंका जब अंदर से किसी के ज़ोर से चीखने की आवाज़ आई। अंदर की तरफ किसी चीख़ की आवाज़ से मेरा दिमाग़ घूम गया। मैंने बिना कुछ सोचे समझे दरवाजे को हाथ बढ़ा कर खोल दिया और अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि अचानक ही मैं एकदम से रुक गया। कारण दरवाजे के अंदर तीन फुट की दूरी पर ही सीढ़ियाॅ बनी हुई थी जो कि नीचे की तरफ जा रही थी। इसका मतलब ये कोई तहखाना था।

इस फार्महाउस पर किसी तहखाने के मौजूद होने का देख कर ही मैं सोच में पड़ गया। ख़ैर, मैने खुद को सम्हाला और नीचे की तरफ जा रही सीढ़ियों पर उतरता चला गया। नीचे तहखाने में एक अलग ही नज़ारा दिखा मुझे। जिसे देख कर मैं भौचक्का सा रह गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उस वक्त दोपहर के एक बज रहे थे जब रितू अपनी पुलिस जिप्सी में बैठी हवेली पहुॅची थी। यहाॅ पर वो आना तो नहीं चाहती थी किन्तु वो ये नहीं चाहती थी कि उसके न आने से उसके माॅम डैड उसके बारे में कोई अलग धारणा बना बैठें। वो इस बात को बखूबी समझती थी कि बहुत जल्द ऐसा कुछ होने वाला है जिससे हवेली का हर ब्यक्ति दहल जाएगा। वो आने वाले उस समय के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर चुकी थी।

जिप्सी से उतर कर रितू हाॅथ में पुलिसिया रुल लिए मुख्य द्वार की तरफ बढ़ चली। दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने बंद दरवाजे को उसकी कुंडी से पकड़ कर बजाया। कुछ ही देर में दरवाजा खुला तो उसे अपने सामने शिवा खड़ा नज़र आया। शिवा पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे मगर तुरंत ही उसने उन भावों को दबा कर दरवाजे के अंदर की तरफ बढ़ गई।

कुछ ही पलों में वो ड्राइंगरूम में पहुॅच गई। ड्राइंगरूम में इस वक्त अपने डैड अजय सिंह को बैठे देख वो मन ही मन चौंकी। बगल के सोफे पर प्रतिमा भी बैठी थी। रितू ने खुद को एकदम से नार्मल दर्शाते हुए एक अलग सोफे पर बैठ कर अजय सिंह की तरफ देखा, फिर बोली__"कैसे हैं डैड? आज आप फैक्ट्री नहीं गए?"

"हाॅ वो आज ज़रा थोड़ा लेट ही जाना था न।" अजय सिंह ने कहा___"इस लिए सुबह नहीं गया। ख़ैर, छोड़ो ये बताओ तुम्हें भी हमारी कुछ ख़ैर ख़बर रहती है कि नहीं?"
"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं डैड?" रितू ने हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा___"भला आपकी ख़ैर ख़बर क्यों नहीं होगी मुझे?"

"अब ये तो तुम ही जानो बेटा।" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"क्योंकि पिछले कुछ समय से हर चीज़ बदली हुई नज़र आ रही है मुझे। पता नहीं पर जाने क्यों ऐसा लगता है मुझे कि मेरे जो अपने हैं वही मुझसे दूर जा रहे हैं।"
"क्या मतलब डैड??" रितू ने मन में एकाएक ही हैरत के भाव उभरे थे___"ये आज आप कैसी बाते कर रहे हैं? कहीं आप उस दिन की बात पर तो ऐसा नहीं कह रहे जब मैने शिवा को दो बातें सुना दी थी?"

"वो सब तो नार्मल बात है बेटा।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"तुमने अपने भाई से जो कुछ कहा वो बड़ी बहन होने के नाते तुम्हारा हक़ था।"
"तो फिर और क्या बात है डैड?" रितू ने कहा___"मुझे बताइये कि आपकी ऐसा क्यों लग रहा है कि आपके अपने आपसे दूर जा रहे हैं? अगर आपका इशारा मेरी तरफ है तो ये मेरे लिए शर्म की ही बात होगी कि मेरी वजह से आपको ऐसा लगा और आपके मन को ठेस पहुॅची है। प्लीज़ डैड बताइये न कि मुझसे ऐसा क्या हो गया है जिससे आपको मेरे बारे में ऐसा लग रहा है?"

"शायद तुम्हें इस बात का एहसास नहीं है बेटा कि मैं तुम सबसे कितना प्यार और दुलार करता हूॅ।" अजय सिंह ने सहसा भारी आवाज़ में कहा___"बचपन से लेकर अब तक हर वो चीज़ तुम सबके क़दमों में लाकर रखी जिन चीज़ों की तुम लोगों ने मुझसे फरमाईश की थी। इसके बावजूद मेरे प्यार में क्या कमी रह गई कि आज मेरी बेटी अपने ही माॅ बाप और भाई को बेगाना समझने लगी है?"

अजय सिंह की इस बात से रितू तो चौंकी ही मगर अलग अलग सोफों पर बैठे दोनो माॅ बेटा भी चौंक पड़े थे। दोनो कल से पूॅछ रहे थे कि क्या बताया था फोन पर उस आदमी ने मगर अजय सिंह ने उन दोनो के सवाल पर अब तक अपने होंठ सिले हुए थे। कदाचित वो ये सब रितू के आने के बाद ही उससे कहना चाहता था।

"ये आप क्या कह रहे हैं डैड?" रितू ने चकित भाव से कहा___"भला मैं ऐसा क्यों समझने लगूॅगी? मैं तो इस बारे में सोच भी नहीं सकती समझने की तो बात ही दूर है।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता था बेटी।" अजय सिंह ने दुखी भाव से कहा___"मैं भी यही सोचा करता था कि मेरे बच्चे ऐसा कभी सोच भी नहीं सकते। मगर...मगर मेरी सारी सोच और सारी उम्मीदों को तोड़ दिया है तुमने।"

"नहीं डैड ऐसा मत कहिए प्लीज़।" रितू की ऑखें भर आईं____"अगर आपको मेरा पुलिस की नौकरी करना अच्छा नहीं लगता है तो मैं इस नौकरी को छोंड़ दूॅगी डैड। आपकी खुशी में ही मेरी खुशी है।"
"बात तुम्हारी नौकरी की नहीं है बैटा।" अजय सिंह ने कहा___"मुझे तुम्हारी पुलिस की नौकरी से कोई परेशानी नहीं है। यहाॅ पर बात हो रही है भरोसे की, विश्वास की। मुझे बहुत भरोसा था कि मेरे बच्चे कभी भी मेरे खिलाफ़ नहीं जा सकते। मगर मेरी ये भरोसा उसी तरह टूट कर बिखर गया जैसे कीई आईना टूट कर बिखर जाता है।"

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं डैड?" रितू ने गंभीरता से कहा___"मैने ऐसा क्या कर दिया है जिससे आपका भरोसा टूट गया है? मुझे बताइये डैड, अगर मुझसे कहीं कोई ग़लती हुई है तो मैं उसे सुधार लूॅगी।"
"ये बात तो तुम्हें भी पता चल ही गई होगी।" अजय सिंह ने रितू के चेहरे की तरफ ज़रा गहरी नज़र से देखते हुए कहा___"कि हमारा सबसे बड़ा दुश्मन विराज यहाॅ हल्दीपुर आया हुआ था?"

"वि विराज??" रितू ने चौंकने की लाजवाब ऐक्टिंग की, बोली___"विराज यहाॅ आया? ये आप क्या कह रहे है डैड? भला वो कमीना यहाॅ किस लिए आएगा?"
"ओह, हैरत की बात है।" अजय सिंह ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"मतलब कि इस बारे में तुम्हें कुछ पता ही नहीं है। जबकि मेरे आदमी का स्पष्ट रूप से कहना है कि कल शाम जिस एम्बूलेन्स में बैठ कर विराज, उसका दोस्त, पवन और पवन की माॅ बहन अपने घर से निकले थे उस एम्बूलेन्स के आगे आगे एक जीप भी चल रही थी।"

"ये आप क्या कह रहे हैं डैड?" रितू अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गई थी, किन्तु प्रत्यक्ष में खुद को सम्हालते हुए कहा___"मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा।"
"मैं जिस जीप की बात कर रहा हूॅ बेटा।" अजय सिंह ने सहसा शख्त भाव से कहा___"वो जीप असल में तुम्हारी पुलिस जिप्सी ही थी। इस गाॅव में हमारे अलावा किसी और के पास ऐसी कोई जीप है ही नहीं। हमारे आदमियों का अपनी जीप में बैठ कर विराज की उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। फिर वो जीप किसकी हो सकती थी? हल्दीपुर में ऐसी कोई जीप पुलिस थाने में सिर्फ तुम्हें मिली हुई है। अब तुम सच सच बताओ कि तुम्हारा एम्बूलेन्स के आगे आगे चलने का क्या मतलब था?"

"ये तो हद हो गई डैड।" रितू की ऑखों से ऑसू छलक पड़े____"आप सरासर अपनी बेटी पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही जीप में मैं थी। जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा कुछ करने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती हूॅ। सबसे पहली बात तो मुझे यही पता नहीं था कि वो कमीना विराज यहाॅ आया हुआ है जिसने कुछ समय पहले मेरे भाई शिवा को बुरी तरह मारा था। अगर पता होता तो मैं उसे खोज कर सबसे पहले अपने भाई की मार का बदला लेती उससे। उसके बाद उसे आपके हवाले कर देती। और आप कह रहे हैं कि मैं वो जीप मेरी थी जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। इसका मतलब तो ये हुआ डैड कि आप ये समझ रहे हैं कि मैं उस विराज की पुलिस प्रोटेक्शन दे रही थी। ओह माई गाड....ऐसा कैसे सोच सकते हैं आप? आप मुझे अपने उस आदमी से मिलवाइये डैड जिसने आपको ये ख़बर दी है। मैं उससे पूछूॅगी कि उसने ये कैसे समझ लिया उस जीप में थी?"

रितू की इस बात से अजय सिंह का दिमाग़ चकरा गया। उसे समझ न आया कि वो किसकी बात पर यकीन करे? अपने उस आदमी की बात पर या अपनी बेटी की बातों पर? ये तो सच बात थी कि उसके आदमी को भी पक्के तौर पर ये पता नहीं चल पाया था कि उस जीप में कौन बैठा था। उसने भी यही सोच कर अनुमान में ही अजय से बताया था कि उस जीप में शायद उसकी बेटी रितू थी। क्योंकि यहाॅ पर अजय सिंह के अलावा अगर किही और के पास कोई जीप थी तो वो सिर्फ पुलिस इंस्पेक्टर रितू के पास। अजय सिंह के आदमी ने यही सोच कर उसे बताया था। पक्के तौर पर उसे भी पता नहीं था। दूसरी बात वो खुद जानता था कि रितू विराज को प्रोटेक्ट करने जैसा काम कर ही नहीं सकती थी क्योंकि वो विराज से कभी कोई मतलब ही नहीं रखती थी। विराज का ज़िक्र आते ही उसके अंदर गुस्सा भर जाता था।

रितू ने ये सब बातें जिस आत्मविश्वास और भावपूर्ण लहजे में कही थी उससे अजय सिंह को यही लगा कि रितू सच कह रही है। मगर उसके मन में अपने आदमी की भी बातें चल रही थी। इस लिए वो समझ नहीं पा रहा था कि कौन सच बोल रहा है?

"इस बात पर तो मैं भी यकीन नहीं कर सकती अजय कि रितू विराज को प्रटेक्ट करने वाला काम करेगी।" सहसा इस बीच प्रतिमा ने भी कहा___"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम अपने आदमी की उस बात पर यकीन कैसे कर सकते हो? क्या उसने अपनी ऑखों से देखा था कि उस जीप पर रितू ही बैठी थी या फिर ये बात किसी ने पक्के तौर पर पूछने पर किसी ने उसे बताई थी?"

"माॅम, ऐसा संभव ही नहीं है।" रितू ने अपनी माॅ की तरफ देख कर कहा___"मैं सिर पटक कर मर जाना पसंद करूॅगी मगर उस कमीने को प्रोटेक्ट करने के बारे में सोचूॅगी भी नहीं। पता नहीं कैसे उस आदमी की उन फिज़ूल बातों पर यकीन कर लिया डैड ने? क्या आपने अपनी बेटी को इतना ही जाना समझा है डैड?"

"पर बेटा ग़लत वो भी तो नहीं है न।" अजय सिंह ने बात को सम्हालते हुए कहा___"उसने ये सब सिर्फ इसी लिए कहा क्योंकि इस गाॅव में हमारे अलावा सिर्फ तुम्हारे ही पास पुलिस की जीप है। इस लिए उसने सोचा कि शायद तुम ही थी उस एम्बूलेन्स के आगे।"
"कमाल है डैड।" रितू ने मन ही मन राहत की साॅस लेते हुए कहा___"आप पढ़े लिखे और वकालत कर चुके होने के बावजूद भी इतना नहीं सोच सके कि अगर इस गाॅव में किसी के पास जीप नहीं तो क्या उसे कहीं भी जीप नहीं मिलती? ऐसा भी तो हो सकता है कि उस विराज ने शहर से ही किसी जीप को किराये पर हायर किया रहा होगा।"

"चलो मान लिया बेटा कि वो कमबख्त उस जीप को शहर से किराये पर ले आया होगा।" अजय सिंह ने कहने के साथ ही शिगार सुलगा लिया था, बोला___"मगर उसे लाने की भला क्या ज़रूरत थी? जबकि उसे इस बात का बखूबी अंदाज़ा था कि जीप में वो कहीं हमारे आदमियों द्वारा पकड़ा जा सकता है। एम्बूलेन्स तो उसके लिए सबसे बढ़िया और सुरक्षित वाहन था, जिसमें वो सबको बैठा कर बड़े आराम से हल्दीपुर से निकल जाता। तो फिर अलग से जीप हायर करने का क्या मतलब हो सकता है भला?"

"आपकी ये बात यकीनन काबिले ग़ौर है डैड।" रितू ने सोचने वाले भाव से कहा___"अलग से किसी जीप को हायर करना यकीनन बेवकूफी वाली बात है। मगर मौजूदा हालात में क्या वो ऐसी बेवकूफी कर सकता है?"
"यही तो सोचने वाली बात है बेटा।" अजय सिंह ने शिगार का कश लेने के बाद उसका धुऑ ऊपर छोंड़ते हुए कहा___"उससे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं की जा सकती। मगर ये तो सच है न कि उसके आगे आगे जीप चल रही थी।"

"हो सकता है कि ऐसा उसने किसी विशेष प्लान के तहत किया हो डैड।" रितू ने अपने चेहरे पर गहन सोच के भाव दर्शाते हुए कहा___"ये तो आप भी जानते हैं डैड कि वो आपसे खुल कर टकराने की हिम्मत नहीं कर सकता। इस लिए उसने सोचा होगा कि वो हमारे बीच किसी प्रकार की दरार या अविश्वास पैदा कर देगा। उससे होगा ये कि हम आपस में ही एक दूसरे से उलझने लगेंगे। जबकि वो अपना काम करके निकल जाएगा।"
"बात कुछ समझ में नहीं आई बेटी।" प्रतिमा के माथे पर सिलवॅटें उभर आई___"हमारे बीच वो भला कैसे दरार या अविश्वास पैदा कर सकता है?"

"ठीक वैसे ही माॅम।" रितू ने कहा___"जैसे अभी कुछ देर पहले डैड के मन में अपनी बेटी के प्रति हो गया था। ज़रा सोचिए माॅम___ये तो उसे भी पता ही था कि अलग से जीप हायर करने का कोई मतलब नहीं है जबकि एम्बूलेन्स में वो सबको लेकर बड़ी आसानी से यहाॅ से निकल ही जाता। मगर इसके बाद भी उसने ऐसा किया। मतलब कि उसने अलग से एक जीप इस लिए हायर की ताकि जब आपको उसके यहाॅ से जाने का पता चले तो आपके आदमी उसका पता करके आपको उसके बारे में विस्तार से बताएॅ। यानी वो आपको बताएॅ कि एम्बूलेन्स में तो वो अपने साथ सबको लिए बैठा ही था किन्तु उसके आगे आगे अलग से एक जीप भी चल रही थी। जीप का सुन कर आप या आपके आदमी यही सोच बैठेंगे कि जीप तो आपके अलावा सिर्फ मेरे ही पास है, इस लिए उस जीप में मैं ही थी जो उस एम्बूलेन्स के आगे आगे चल रही थी। आप ये जानते हुए भी कि आपकी बेटी ऐसा करने का सोच भी नहीं सकती है, ऐसा सोच बैठेंगे और बाद में आप मुझ पर शक़ करते हुए मुझसे इसके बारे में ऐसा सब कुछ कहने लगेंगे या पूछने लगेंगे। यही उसका प्लान हो सकता था डैड। अब आप ही बताइये क्या ऐसा नहीं हो सकता?"

रितू की बातें सुन कर अजय तो अजय बल्कि खुद को दिमाग़ की सूरमा समझने वाली प्रतिमा भी आश्चर्य चकित रह गई थी। दोनो ही मियाॅ बीवी अपनी इंस्पेक्टर बेटी की तरफ ऐसी नज़रों से देखने लगे थे जैसे रितू के सिर पर अचानक ही आगरा का ताजमहल आकर कत्थक करने लगा हो। काफी देर तक दोनो के मुख से कोई बोल न फूटा था। फिर जैसे उन दोनो को होश आया। वस्तुस्थित का एहसास होते ही दोनो के चेहरों पर अपनी बेटी की बुद्धि पर प्रशंसा के भाव उभर आए।

"अगर वो वैसा ही कर सकता है जैसा कि तुमने अभी बताया मुझे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"तो फिर यकीनन उसके दिमाग़ की दाद देनी पड़ेगी। हलाॅकि मुझे पहली बार में अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि वो ऐसा सोच सकता है मगर वर्तमान में मैने उसके बारे में जितना विचार किया है उससे यही पता चला है कि यकीनन वो ऐसा सोच भी सकता है और कर भी सकता है।"

"लेकिन डैड वो कमीना यहाॅ आया किस लिए है?" रितू ने जानबूझ कर ऐसा सवाल किया___"और आपको कैसे पता चला कि वो यहाॅ आया है?"
"हमारी हज़ारों ऑखें हैं बेटी।" अजय सिंह ने बड़े गर्व से कहा___"हमें सबकी ख़बर होती है। ख़ैर छोंड़ो ये सब। जाओ तुम भी आराम कर लो। पता नहीं कहाॅ कहाॅ ड्यूटी के चक्कर में घूमती रहती हो तुम? बेटा कुछ अपना भी ख़याल रखा करो। हमे हर वक्त तुम्हारी फिक्र रहती है।"

"जी डैड।" रितू ने कहने के साथ ही सोफे से उठ कर खड़ी हो गई___"पर आप तो जानते हैं न कि पुलिस की नौकरी का कोई टाइम टेबल नहीं होता। इस लिए कहीं न कहीं तो भटकना ही पड़ता है।"

ये कहने के साथ ही रितू लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाती हुई अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि वो तीनो उसे जाते हुए देखते रह गए। उसके जाने के बाद अजय सिंह ने एक नया शिगार सुलगा लिया और उसके दो तीन गहरे गहरे कश लेने के बाद उसका धुऑ ऊपर की तरफ उछाल दिया। चेहरे पर सोचो के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे थे उसके।

"तुम्हें क्या लगता है अजय?" सहसा प्रतिमा ने उसके चेहरे के भावों को रीड करते हुए कहा___"रितू की बातों में कितनी सच्चाई है?"
"मतलब तुम्हें भी इस बात का शक है कि हमारी बेटी हमसे झूॅठ बोल रही है?" अजय सिंह ने भावहीन स्वर में कहा___"ये भी कि उसने बड़ी सफाई से अपनी बात साबित भी कर दी।"

"ये बात तो मैं तुमसे पूछ रही हूॅ डियर।" प्रतिमा ने पहलू बदला___"तुमने ही तो उससे कहा था कि जीप में वही बैठी थी ऐसा तुम्हारे आदमी ने फोन पर तुमसे कहा था। अब जबकि रितू ने अपनी सफाई दे दी है तो तुम्हें क्या लगता है अब?"
"मुझे यकीन तो नहीं हो रहा प्रतिमा कि रितू ने विराज को प्रोटेक्ट किया होगा।" अजय सिंह ने कहा___"मगर उसके बदले हुए बिहैवियर की वजह से ऐसा सोचने पर मजबूर भी हो गया हूॅ। उसकी बातों में कितनी सच्चाई है इसका पता लगाना भी ज़रूरी है। इस लिए मैने सोच लिया है कि उस पर नज़र रखने के लिए अपने किसी आदमी को उसके पीछे लगा दूॅगा। इससे कोई न कोई सच्चाई तो पता चल ही जाएगी हमे।"

"हाॅ ये सही सोचा है तुमने।" प्रतिमा ने कहा___"इससे दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। ख़ैर, छोंड़ो ये सब। मेरा तो इस सबसे बहुत सिर दर्द कर रहा है अब। इस लिए मैं जा रही हूॅ अपने कमरे में।"
"ठीक है डियर।" अजय सिंह ने सोफे से उठते हुए कहा___"मैं भी फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ।"

ये कह कर अजय सिंह बाहर की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही प्रतिमा ने शिवा की तरफ गहरी नज़रों से देखा और मुस्कुरा दी। शिवा उसकी मुस्कुराहट का मतलब समझ कर खुद भी मुस्कुरा उठा। प्रतिमा सोफे से उठ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। उसके जाने के कुछ देर बाद शिवा भी उसी कमरे की तरफ बढ़ गया था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,

आशा करता हूॅ कि आज का ये अपडेट आप सबको पसंद आएगा और अगर न आए तो आप बेझिझक अपनी राय दे सकते हैं,,,,,,,,,,,,
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,714
354
Bhai bahut hi emotional update diya he. Meri aakno se to paani rukne ka naam hi nahi le raha tha. Ek sawal kulya raj ko vidhi ke sath kya hua tha wo pata chalega. Mere hisab se unlogo ko maut viraj ke hato hi dilwana wo bhi khatarnaak maut
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,

अपडेट दे दिया है,,,,,,
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,714
354
जबरदस्त अपडेट भाई
भावनाओं का भयंकर तूफान
बहुत ही खूबसूरत एवं भावुक करने वाला अपडेट
मेरे पास शब्द ही नहीं है
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,

अपडेट दे दिया है,,,,,,
 
Top